पंजाब सलटा नहीं, राजस्थान-छत्तीसगढ़ में भी बगावत की चिंगारी: पायलट और ‘महाराज’ इस बार बिगाड़ देंगे कॉन्ग्रेस का गेम?

अनुपम कुमार सिंह

राजस्थान में 2020 में वो जून-जुलाई का ही महीना था, जब अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच विवाद सार्वजनिक हो गया था। सचिन पायलट को जुलाई 2020 में राज्य के उप-मुख्यमंत्री के पद से हटा दिया गया था। तब उन्होंने सत्य के परेशान होने और पराजित न होने वाला ट्वीट भी किया था। अब इस साल में जून-जुलाई का महीना आते-आते सुगबुगाहट तेज़ हो रही है। राज्य में मंत्रिमंडल विस्तार और कुछ राजनीतिक नियुक्तियाँ अटकी पड़ी हैं। इसे लेकर पायलट कैम्प ने सीएम गहलोत को अल्टीमेटम दिया है।

पायलट कैम्प ने कहा कि अगर मंत्रिमंडल विस्तार और राजनीतिक नियुक्तियाँ नहीं की जाती हैं तो वो आगे फैसले लेने के लिए स्वतंत्र हैं। पिछले 2 दिन में सचिन पायलट के घर लगभग एक विधायकों की अलग-अलग बैठकें हुई हैं और उन्होंने अपने रुख से कॉन्ग्रेस आलाकमान को अवगत कराने का निर्णय लिया है। अगले महीने अध्यक्ष सोनिया गाँधी, पूर्व अध्यक्ष राहुल गाँधी और महासचिव प्रियंका गाँधी से मिलने का समय भी माँगा जा सकता है।

ये सब ऐसे समय में हो रहा है, जब दौसा से लगातार 4 बार सांसद रहे पूर्व केंद्रीय मंत्री राजेश पायलट की पुण्यतिथि भी शुक्रवार (जून 11, 2021) को आने वाली है। कभी राज्य के सबसे बड़े गुर्जर नेता माने जाने वाले राजेश पायलट की पुण्यतिथि को उनके बेटे सचिन पायलट का खेमा शक्ति-प्रदर्शन के मौके के रूप में भी इस्तेमाल कर सकता है। सचिन पायलट जिला प्रमुख, प्रधान, स्थानीय निकाय के प्रतिनिधियों और जिला स्तर के कॉन्ग्रेस नेताओं से संपर्क में हैं।

उधर अशोक गहलोत के इंटेलिजेंस ब्यूरो ने उन्हें एक बार फिर से संभावित बगावत को लेकर आगाह किया है, जिसके बाद दिल्ली, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और गुजरात से सटी सीमाओं पर चौकसी बढ़ा दी गई है। आशंका जताई गई है कि सचिन पायलट फिर दूसरे प्रदेश में विधायकों के साथ जाकर डेरा जमा सकते हैं। वहीं इस बार गहलोत कैम्प के विधायकों के भी उनसे संपर्क में होने की बात कही जा रही है।

राजस्थान में इंटेलिजेंस ब्यूरो राज्य का कम और पार्टी के लिए ज्यादा काम करने के आरोपों के लिए जाना जाता है। पिछले साल भी राजस्थान में सचिन पायलट सहित उनके खेमे के विधायकों फोन टैप किए जाने का मामला सामने आया था। अशोक गहलोत सरकार ने राजस्थान में फ़ोन-टैपिंग की बात स्वीकार तो की, लेकिन बताया नहीं कि किसका। अब फिर सरकारी मशीनरी का इस्तेमाल बगावत दबाने के लिए हो तो इसमें आश्चर्य नहीं होना चाहिए।

गहलोत के विश्वस्त संसदीय कार्यमंत्री शांति धारीवाल, कृषि मंत्री लालचंद कटारिया, राज्यमंत्री सुभाष गर्ग, विधानसभा में सरकारी मुख्य सचेतक महेश जोशी और उप मुख्य सचेतक महेंद्र चौधरी को गहलोत कैम्प ने अपने विधायकों का मन टटोलने का काम सौंपा है। कुछ से फोन पर बात हुई, कुछ से व्यक्तिगत मुलाकात की गई। पायलट के विश्वस्त विधायक रमेश मीणा, मुरारी मीणा व वेदप्रकाश सोलंकी अपने खेमे के विधायकों को एकजुट करने में लगे हैं।

6 विधायक ऐसे हैं जो बसपा से कॉन्ग्रेस में आए थे। साथ ही 12 निर्दलीय विधायकों का भी सरकार को समर्थन है। सचिन पायलट खेमे की नजर इन सब पर है। संगठन महासचिव केसी वेणुगोपाल और प्रदेश प्रभारी अजय माकन से बातचीत कर सचिन पायलट खेमे ने पूछा है कि पंजाब में सक्रियता दिखाने वाला आलाकमान राजस्थान पर ध्यान क्यों नहीं दे रहा है। पंजाब के नेताओं से लगातार बैठक हुई, लेकिन राजस्थान के लिए बनाई गई समिति की एक बार भी बैठक नहीं हुई।

बता दें कि पंजाब में मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह के खिलाफ नवजोत सिंह सिद्धू ने मोर्चा खोल रखा है, जिसके बाद राज्य के सभी विधायकों को दिल्ली बुला कर उनसे बात की गई। खुद सीएम और सिद्धू को तलब किया गया। तीन सदस्यीय कमिटी ने सभी कैबिनेट मंत्रियों की भी राय ली। पंजाब में 2022 में विधानसभा चुनाव होने हैं, ऐसे में उससे पहले सीएम अमरिंदर ने अपना खेमा मजबूत करने के लिए AAP के 3 विधायकों को भी अपने पाले में किया है।

पंजाब में तो अब पोस्टर वॉर भी शुरू हो गया है। सिद्धू के क्षेत्र अमृतसर में जहाँ उनके ‘गायब’ होने के पोस्टर लगे, सीएम अमरिंदर के गढ़ पटियाला में किसानों ने विरोध प्रदर्शन किया। अब ‘कैप्टेन कौन’ पोस्टर के जवाब में ‘कैप्टेन एक ही होता है’ जैसे पोस्टर-वॉर चल रहे हैं। सिद्धू को उप-मुख्यमंत्री बनाए जाने की अटकलों के बीच सीएम अमरिंदर के पक्ष में पोस्टर-बैनर लगा कर पार्टी आलाकमान को सन्देश दिया गया है।

छह बार विधायक रहे पूर्व मंत्री हेमाराम चौधरी ने मई में अपना इस्तीफा विधानसभा अध्यक्ष को भेज दिया था, जिसके बाद विधायक वेदप्रकाश सोलंकी ने कहा था कि केवल चौधरी ही पीड़ित नहीं हैं, बल्कि बहुत से विधायकों की ऐसी हालत है। उन्होंने कहा था कि कई विधायक अंदर ही अंदर घुट रहे हैं, लेकिन कई मजबूरी के कारण चुप हैं, चौधरी सहन नहीं कर सके तो वे खुलकर बोल गए। उन्होंने चौधरी को ईमानदार और स्वच्छ छवि का नेता बताते हुए कहा कि अशोक गहलोत की सरकार में कॉन्ग्रेस विधायकों की ही सुनवाई नहीं हो रही है।

सचिन पायलट खेमे के विधायक हेमाराम चौधरी, रमेश मीणा, पीआर मीणा, राकेश पारीक ने विधानसभा के बजट सत्र के दौरान दलित और अल्पसंख्यक विधायकों की आवाज दबाने का मुद्दा उठाया था। सोलंकी ने कहा था कि भाजपा सरकार में लाठियाँ खाने वाले आंदोलनकारी नेता परेशान हैं और तब 5 साल AC में बैठने वाले मजे ले रहे हैं। भाजपा भी कह रही है कि राजस्थान कॉन्ग्रेस की नाव में छेद हो गया है। खुद पायलट ने अपने एक हालिया बयान में कहा था कि विधायकों की बात सुनी जानी चाहिए।

खुद दलित समाज से आने वाले वेदप्रकाश सोलंकी ने कहा था कि दलित समाज जो कि कॉन्ग्रेस का मजबूत वोट बैंक है उसके बावजूद भी उस समाज से आने वाले मंत्रियों को महत्वपूर्ण समितियों में तवज्जोह नहीं देना समझ से परे है। किसी भी मंत्रिमंडलीय समिति में दो दलित मंत्रियों टीकाराम जूली और भजनलाल जाटव को शामिल नहीं किया गया है। पहली बार विधायक बनने वाले राष्ट्रीय लोकदल के सुभाष गर्ग को सीएम का खास बताते हुए इन फैसलों के लिए उन्हें भी दोषी ठहराया जा रहा है।

उधर छत्तीसगढ़ में सीएम भूपेश बघेल के ढाई साल पूरे हो गए हैं, जिसके बाद सरगुजा राजपरिवार के मुखिया टीएस सिंह देव ने कहा कि आलाकमान जैसी जिम्मेदारी देगा, निभाते रहेंगे। वो राज्य में स्वास्थ्य मंत्री हैं और सीएम पद के दावेदार भी। ढाई-ढाई साल के फॉर्मूले की चर्चा राज्य के सियासी महकमों में है। उन्होंने कहा कि राजनीति में कुछ भी लिखित नहीं होता है। लेकिन, साथ ही कहा कि छत्तीसगढ़, पंजाब नहीं है और ये अपने हिसाब से चलेगा।

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