मुस्लिम युवाओं को कट्टरपंथी बना रहे PFI और SDPI: तीस्ता सीतलवाड़ और नोमानी ने निजी बातचीत में कबूली

नई दिल्ली। तीस्ता सीतलवाड़ और स्वराज अभियान से जुड़े वामपंथी कार्यकर्ता जिया नोमानी निजी तौर पर स्वीकार करते हैं कि पीएफआई और एसडीपीआई जैसे संगठन देश के मुस्लिम युवाओं को कट्टरपंथी बनाते हैं।

समाचार चैनल टाइम्स नाउ द्वारा एक्सेस किए गए एक टेप में, स्वराज अभियान से जुड़े कार्यकर्ता जिया नोमानी को कट्टरपंथी इस्लामिक संगठनों द्वारा उत्पन्न खतरे को लेकर चिंता जताते हुए सुना जा सकता है।

टाइम्स नाउ द्वारा एक्सेस किए गए टेप में, ज़िया नोमानी तीस्ता सीतलवाड़ से कहते हैं, “मुझे पूरा यकीन है कि आप सभी को बेंगलुरु में होने वाली दुर्भाग्यपूर्ण घटनाओं को लेकर देश में सेट हो रहे नैरेटिव से काफी चिंता होगी। हम आरएसएस से लड़ने की बात करते हैं और अगर हम मुस्लिम समुदाय से आने वाले दक्षिणपंथियों से नहीं लड़ते हैं, तो हमें उनसे लड़ने का नैतिक अधिकार नहीं है। क्योंकि यह ढोंग है।”

जिया नोमानी ने आगे कहा, “अगर हम SDPI और PFI जैसे संगठनों से नहीं लड़ते हैं। अब हमारे बीच मतभेद हो सकते हैं और हम इस पर बहस कर सकते हैं कि इस तरह के संगठनों पर प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए या नहीं, लेकिन युवाओं के कट्टरता के लिए उन पर मुकदमा जरूर चलाया जाना चाहिए।” जिया नोमानी का यह भी कहना है कि एसडीपीआई और पीएफआई अपने वैचारिक उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए हिंसा का उपयोग करने के लिए तैयार रहते हैं।

नोमानी ने यह भी कहा, “उन्हें (मुस्लिमों) गलत बताया जाता है। उन्हें सिर्फ इतना बताया जाता है कि बाबरी मस्जिद टूट गया। अब हमें बदला लेना है, क्योंकि न्यायिक व्यवस्था हमारे समर्थन में नहीं है।”

तीस्ता सीतलवाड़ ने जवाब दिया, “जहाँ कहीं भी मुस्लिम समुदाय में इस तरह की प्रवृत्ति विकसित हो रही है, इसके खिलाफ कड़े बयान नहीं दिए जाते हैं और यह गलत है … मैं केवल इतना कहूँगी कि एसडीपीआई और पीएफआई हमारे जैसे लोगों और हमारे संगठनों के लिए के समस्यात्मक है। हमने उनके साथ सार्वजनिक मंच साझा नहीं करने के लिए एक सार्वजनिक स्टैंड लिया है।” इस बातचीत में वे दोनों निजी तौर पर इस बात से सहमत दिखाई देते हैं कि एसडीपीआई और पीएफआई वाकई खतरनाक हैं।

कट्टरपंथी इस्लामी संगठन पीएफआई का हिंसा का इतिहास है। उनके सदस्य हिंसा के कई मामलों में जाँच के घेरे में हैं। दिल्ली दंगों की जाँच और नागरिकता संशोधन कानून के मद्देनजर देश भर में हुई हिंसा के दौरान पीएफआई की भूमिका संदिग्ध रही है और पीएफआई के कई सदस्यों को दंगों में शामिल होने के आरोप में गिरफ्तार भी किया गया है। हालाँकि, वामपंथी संगठन सार्वजनिक रूप से उनका विरोध करने में बहुत हिचकिचा रहे हैं, हालाँकि वे निजी तौर पर मानते हैं कि ये खतरनाक संगठन हैं।