350 चीनी, बिहार रेजिमेंट के 100 जवान: बरसते पत्थरों के बीच 3 घंटे, उखाड़ फेंके चीन के तम्बू

नई दिल्ली। कहते हैं- एक बिहारी सौ पर भारी। भारत और चीन के बीच गलवान वैली में हुए हिंसक संघर्ष में ये कहावत एक बार फिर से चरितार्थ हुई। बिहारियों ने दिल्ली और पंजाब से लेकर गुजरात और मुंबई तक की आर्थिक प्रगति में लगातार योगदान दिया ही है। अब उन्होंने एक बार फिर से दिखाया है कि सीमा पर देश की सुरक्षा करने में भी उनका कोई तोड़ नहीं है। बिहार रेजिमेंट ने एक बार फिर से बिहार का सिर गर्व से ऊँचा किया है।

ये कहानी शुरू होती है सोमवार (जून 15, 2020) की शाम से, जब भारत के 3 इन्फेंट्री डिवीजन कमांडर अन्य अधिकारियों के साथ श्योक और गलवान रिवर वैली के वाई जंक्शन पर मौजूद थे। ईस्टर्न लद्दाख में दोनों ही देशों के बीच बातचीत होनी थी, लेकिन चीन ने पीठ में छुरा घोंप दिया। भारतीय सशस्त्र बलों को ये जिम्मेदारी दी गई थी कि वो वहाँ से चीनियों पर नज़र रखें कि वो पोस्ट को खाली कर रहे हैं या नहीं।

16 बिहार रेजिमेंट को भी इसी काम में लगाया गया था। चाइनीज ऑब्जरवेशन पोस्ट में 10-12 सैनिक थे, जिन्हें भारतीय सेना ने वहाँ से जाने कह दिया था, क्योंकि दोनों ही देशों के सैन्य अधिकारियों के बीच हुई बातचीत में यही समझौता हुआ था। भारतीय सेना के कहने के बावजूद वो लोग वहाँ से नहीं हट रहे थे। इसके बाद कर्नल संतोष बाबू लगभग 50 सैनिकों के साथ वहाँ चीनियों को ये कहने गए कि वे भारतीय सरजमीं को खाली करें।

चीनियों ने गलवान रिवर वैली में पीछे एक बैकअप टीम तैयार रखी थी। उसमें कम से कम 300-350 सैनिक थे। जब भारतीय पेट्रोलिंग यूनिट वहाँ से लौटी, तब तक उन्होंने बैकअप टीम को बुला लिया। जब भारतीय गश्ती दल वहाँ लौटा तो चीनियों ने पहले ही एक ऊँचे स्थान को देख कर वहाँ हथियारों संग डेरा जमा लिया था। वो हमले के लिए एकदम तैयार बैठे थे। उनके पास पत्थर, लोहे के रॉड्स, लाठी-डंडे व अन्य नुकीले हथियार थे।

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Country is proud of the sacrifice made by our braves in Ladakh. Today when I am speaking to people of Bihar, I will say the valour was of Bihar Regiment, every Bihari is proud of it. I pay tributes to the braves who laid down their lives for the nation: PM Narendra Modi

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दोनों ही देशों की सेनाओं के बीच जब बातचीत शुरू हुई तो जिद्दी चीनियों ने वापस जाने से इनकार कर दिया और बहस करने लगे। इसके बाद भारतीय सेना के जवानों ने उनके टेंट्स और अन्य संरचनाओं को उखाड़ना शुरू कर दिया, क्योंकि वो भारतीय ज़मीन कब्जा कर बैठे हुए थे। वो हमले के लिए तैयार थे, आक्रामक थे, उन्होंने अचानक से हमला कर भी दिया। बिहार रेजिमेंट के सीओ और एक हवलदार पर पहले हमला किया गया।

समाचार एजेंसी एएनआई के अनुसार, जैसे ही सीओ नीचे गिरे, बिहारी रेजिमेंट के जवान क्रोधित हो गए। भले ही उनकी संख्या चीनियों से काफ़ी कम थी, भले ही चीनी पहले ही उचित स्थान देखकर हमले के लिए बैठे थे, भले ही चीनियों के पास जानलेवा हथियार थे- जब बिहारी रेजिमेंट ने बदले की कार्रवाई की तो उनके छक्के छूट गए। जवानों पर लगातार पत्थर बरस रहे थे, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी।

इसे संघर्ष या युद्ध कह लीजिए, ये लगभग तीन घंटों तक चला। बिहारी रेजिमेंट ने चीनी सेना को नाकों चने चबवा दिए। उनमें से कई मारे गए, कई घायल हुए। हमारे 20 जवान भी वीरगति को प्राप्त हुए। हमारे कुल 100 जवान थे, जिन्होंने 350 चीनी सैनिकों को परास्त किया। आखिरकार बिहारी रेजिमेंट ने भारत की ज़मीन पर स्थापित चीनी तम्बुओं को उखाड़ फेंका। हमारे बलिदानियों के बारे में पीएम मोदी ने ठीक ही कहा था- “वो मारते-मारते मरे हैं।”

हाल ही में पूर्व सेनाध्यक्ष जनरल वीके सिंह ने खुलासा किया है कि भारत ने चीन के कई सैनिकों को पकड़ा था लेकिन बाद में उन्हें छोड़ दिया गया। वीके सिंह ने गलवान घाटी संघर्ष को लेकर जानकारी दी कि इस झड़प में चीन के दोगुने सैनिक मारे गए हैं। उन्होंने कहा कि हमारे 20 सैनिक वीरगति को प्राप्त हुए हैं तो चीन के इससे ज्यादा सैनिक मारे गए हैं। लेकिन चीन कभी भी सार्वजनिक रूप से इस बात को स्वीकार नहीं करेगा।