भोपाल। ज्योतिरादित्य सिंधिया की राज्यसभा की राह रोकने के लिए अब प्रियंका कार्ड खेला जा रहा है। माना जा रहा है कि प्रियंका गांधी को मध्य प्रदेश से राज्यसभा भेजा जा सकता है। प्रियंका को राज्यसभा भेजने के सुझाव के पीछे ज्योतिरादित्य को पीछे रखने की राजनीति काम कर रही है। मुख्यमंत्री कमलनाथ और पूर्व केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के बीच कड़वाहट के दौर में राज्यसभा चुनाव पर राजनीतिक दांवपेंच शुरू हो गए हैं।
हालांकि पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह समेत अन्य कई और नेता भी इस कतार में हैं, जो सिंधिया की राह में रोड़े अटका सकते हैं। सिंधिया के सड़क पर उतरने के बयान के बाद प्रदेश कांग्रेस में उन्हें किनारे करने की कोशिश दिखाई दे रही है। सूत्र बताते हैं कि राज्यसभा चुनाव को टारगेट बनाकर यह प्रयास चल रहे हैं और प्रियंका गांधी का नाम मध्य प्रदेश की एक सीट से चर्चा में लाकर इन कोशिशों को परवान चढ़ाया गया।
बताया जाता है कि राज्यसभा की रिक्त होने वाली तीन सीटों में से कांग्रेस को दो सीटें मिलना तय हैं, जिनमें एक सीट को इस तरह सुरक्षित बताकर दूसरी सीट पर वैकल्पिक नामों में सिंधिया-दिग्विजय के बीच प्रतिस्पर्धात्मक स्थिति निर्मित करने का प्रयास है। संगठन से जुड़े वरिष्ठ नेताओं का मानना है कि इस स्थिति में प्रदेश व हाईकमान में दिग्विजय के नाम पर सहमति बनाकर सिंधिया को दौड़ से बाहर किया जा सकता है। वहीं, कुछ वरिष्ठ नेताओं का कहना है कि प्रियंका गांधी मध्य प्रदेश से राज्यसभा में नहीं जाएंगी, क्योंकि वे अपनी राजनीति का केंद्र उत्तर प्रदेश को ही रखना चाहेंगी।
गौरतलब है कि मध्य प्रदेश से राज्यसभा की तीन सीट खाली होने वाली हैं। इनमें से दो कांग्रेस और एक भाजपा के पास जाना तय है। कांग्रेस की 2 सीटों पर पहले ही दिग्गज नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया और दिग्विजय सिंह दावेदार हैं। लेकिन अब हाईकमान की तरफ से प्रियंका गांधी का नाम भी चर्चा में आ रहा है। ऐसी स्थिति में तीनों दिग्गज नेता में से किसी एक को फिलहाल सदन में जाने का मौका छोड़ना पड़ सकता है। फ़िलहाल इन सीट पर दिग्विजय सिंह, प्रभात झा और सत्यनारायण जटिया सदस्य हैं।
मतभेद नहीं, मनभेद भी नजर आए
प्रदेश में कांग्रेस सरकार बने सवा साल हो चुका है, लेकिन दिग्गज नेताओं और उनके समर्थकों की तल्ख बयानबाजी से लगता है कि पार्टी में भीतर सबकुछ ठीक नहीं है। नेताओं के बीच मतभेद ही नहीं, मनभेद भी नजर आने लगे हैं। प्रदेश के दिग्गज नेता, सिंधिया और उनके समर्थक कई बार सरकार के कामकाज व दिग्विजय सिंह की दखलंदाजी को लेकर तीखे तेवर भी दिखाते रहते हैं। वहीं, कमलनाथ के करीबी मंत्री सज्जन सिंह वर्मा हों या वरिष्ठ मंत्री डॉ. गोविंद सिंह, सिंधिया व उनके समर्थकों की बयानबाजी पर सरकार का बचाव करते दिखते हैं।
तीन खेमों में बंटी प्रदेश कांग्रेस
राजनीतिक गलियारों में कांग्रेस नेताओं की खेमेबाजी नई नहीं है। आज की स्थिति में माना जाता है कि प्रदेश कांग्रेस में प्रमुख रूप से कमलनाथ, दिग्विजय सिंह और ज्योतिरादित्य सिंधिया के खेमे हैं, जिनके ईर्द-गिर्द सियासत चलती है। इनके अलावा पूर्व नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह, प्रदेश कांग्रेस कमेटी के पूर्व अध्यक्ष अरण यादव के गुट भी प्रदेश कांग्रेस की सियासत को प्रभावित करते रहते हैं। इन सभी में सिंधिया सबसे अलग हैं और अन्य सभी मौका आने पर एक-दूसरे से समन्वय कर राजनीति करते रहते हैं।
राज्यसभा में सीट का गणित
तीन सीटों के लिए होने वाले चुनाव में हर प्रत्याशी को कम से कम 58 वोट की जरूरत होगी। एक फरवरी 2020 की स्थिति में जौरा व आगर विधानसभा सीट रिक्त हैं। कांग्रेस के 114 विधायक हैं तो भाजपा के पास 107 हैं। मगर कांग्रेस को दो बसपा व एक सपा विधायक सहित अन्य चारों निर्दलीय विधायकों का भी समर्थन है। इस तरह कांग्रेस के पास 121 विधायकों का समर्थन है।