370 और PAK पर फोकस, हरियाणा में BJP को महंगी पड़ी स्थानीय मुद्दों की अनदेखी

चंडीगढ़। लोकसभा चुनाव में हरियाणा की सभी सीटें जीतने वाली भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) को पांच महीने बाद ही हुए विधानसभा चुनाव में करारा झटका लगा है. बढ़ती आर्थिक मंदी, बेरोजगारी और कृषि संकट के बीच हुए चुनाव में न सिर्फ पार्टी का जनाधार खिसक गया, बल्कि वह बहुमत से दूर भी रह गई.

बीजेपी शासित हरियाणा में जनता ने ऐसा जनादेश दिया जिससे बीजेपी को झटका लगा है. बीजेपी राज्य में सबसे बड़ी पार्टी तो है, लेकिन वह बहुमत से थोड़ी दूर रह गई. राज्य में विधानसभा की 90 सीटों में से बीजेपी को 40, कांग्रेस को 31, जननायक जनता पार्टी को 10 और सीटें मिली हैं. बेरोजगारी, सत्ता​ विरोधी लहर, कृषि संकट और जनता की नाराजगी के चलते मनोहर लाल खट्टर के नेतृत्व वाली सरकार दोबारा सत्ता में लौटने के लिए पूर्ण बहुमत नहीं जुटा पाई.

15 सीटों से 31 पर पहुंची कांग्रेस

कांग्रेस नेता भूपिंदर सिंह हुड्डा को श्रेय दिया जा रहा है कि उन्होंने पार्टी को 2014 में मिली 15 सीटों से 31 पर पहुंचा दिया, लेकिन जननायक जनता पार्टी के के दुष्यंत चौटाला ने दोनों पार्टियों का खेल खराब कर दिया और 10 सीटें हासिल कर लीं.

बीजेपी को निर्दलीय चुनाव जीते अपने बागियों के सहारे सत्ता में लौटने की उम्मीद है, लेकिन केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के उस प्रचार अभियान को गहरा धक्का लगा है​, जिसमें उन्होंने 75 से ज्यादा सीटें पाने का लक्ष्य रखा था.

बीजेपी से सिर्फ 4 जाट कैंडिडेट को मिली जीत

बीजेपी ने 20 जाट उम्मीदवार उतारे थे जिसमें से सिर्फ चार को जीत मिली है. यहां त​क कि जाट नेता और हरियाणा बीजेपी अध्यक्ष सुभाष बराला खुद चुनाव हार गए. खट्टर कैबिनेट के 10 सदस्यों में से सिर्फ तीन चुनाव जीतने में सफल हो सके.

राज्य के वित्त मंत्री कैप्टन अभिमन्यु अपनी सीट हार गए. इसके अलावा राम बिलास शर्मा और ओपी धनखड़ जैसे दिग्गज भी चुनाव हार गए.

सिरसा, रोहतक, झज्जर, दादरी और मेवात इन पांच जिलों में एक भी सीटें नहीं मिलीं. करनाल जो खुद मुख्यमंत्री के शहर के रूप में जाना जाता है. वहां से भी बीजेपी को निराशा हाथ लगी. यहां की पांच सीटों में से पार्टी सिर्फ तीन सीटें जीत सकी. सीएम खट्टर खुद करनाल सिटी से जीते हैं, वहीं उनकी पार्टी के प्रत्याशी घरौंदा और इंद्री से जीते हैं.

सिरसा डेरा के समर्थकों में भी बीजेपी के प्रति नाराजगी ने भी पार्टी को प्रभावित किया. दो साल पहले बाबा राम रहीम को सजा के मामले के दौरान समर्थकों पर गोली चलवाने ने भी चुनाव में अहम भूमिका निभाई.

कांग्रेस की वापसी

इस विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने जबरदस्त वापसी की है. पार्टी को 2014 के चुनाव में बुरी हार का सामना करना पड़ा था और कांग्रेस इंडियन नेशनल लोकदल से भी पीछे चली गई थी.

चुनाव के कुछ ही सप्ताह पहले कांग्रेस आलाकमान ने पूर्व मुख्यमंत्री भूपिंदर सिंह हुड्डा को राज्य की कमान सौंपी थी. उन्हें पार्टी की प्रचार समिति का अध्यक्ष बनाया गया था.

चंडीगढ़ में इंडिया टुडे टीवी के डिप्टी एडिटर मंजीत सहगल मानते हैं कि कांग्रेस की इस वापसी के पीछे जाट समुदाय के बीच हुड्डा की अपील काम आई. इसके अलावा कांग्रेस ने कृषि संकट और बेरोजगारी को दूर करने का वादा किया, जिसके कारण उसे समर्थन मिला.

वे कहते हैं, ‘दुर्भाग्य से कांग्रेस पूरी ताकत से अपने मेनीफेस्टो को राज्य में प्रचारित नहीं कर पाई.’ पार्टी ने 40 स्टार प्रचारकों की लिस्ट बनाई थी लेकिन बाद में 26 गायब कर दिए गए. बीजेपी का प्रचार पूरी तरह राष्ट्रीय मुद्दों पर केंद्रित था, जैसे कश्मीर का विशेष दर्जा समाप्त करने और बालाकोट स्ट्राइक और मोदी का जादुई नेतृत्व.

सहगल का मानना है, ‘हरियाणा क तमाम मतदाताओं को यह महसूस हुआ कि खट्टर सरकार उनके मुद्दों पर गौर नहीं कर रही है. इसके अलावा, भूपिंदर सिंह हुड्डा की मौजूदगी ने जाट वोटों को प्रभावित किया जिसका बीजेपी को नुकसान हुआ.’

चुनाव प्रचार में राष्ट्रवाद और 370 का तड़का

लोकसभा चुनाव की तरह इन दो राज्यों में भी बीजेपी ने राष्ट्रवाद का जोरदार तड़का लगाया, इसमें नरेंद्र मोदी सरकार का बहुचर्चित फैसला; जम्मू- कश्मीर से अनुच्छेद 370 की समाप्ति का जिक्र भी शामिल था. लेकिन इकोनॉमी में सुस्ती की आहट, पॉकेट में नगद नारायण की कमी से जूझ रही जनता ने मतदान के दौरान अपनी आर्थिक सुरक्षा और स्थानीय मुद्दों को तवज्जो दी और बीजेपी को वोट देने में कंजूसी कर दी.

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