लखनऊ। लोकसभा चुनाव 2019 में उत्तर प्रदेश में बीजेपी के खिलाफ सपा-बसपा और कांग्रेस के संभावित महागठबंधन को लेकर तस्वीर अभी भी साफ नहीं हो पाई है. कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने पिछले माह दावा किया था कि उत्तर प्रदेश, बिहार और महाराष्ट्र में पार्टी एक मजबूत गठबंधन बनाकर बीजेपी को 2019 के चुनाव में सत्ता से बाहर कर देगी. हालांकि धरातल पर कांग्रेस की कोई ठोस पहल अभी तक नजर नहीं आई है. उधर, बीएसपी सुप्रीमो मायावती ने साफ कह दिया है कि सम्मानजनक सीट मिलने पर ही उनकी पार्टी गठबंधन करेगी. इस पूरे मसले पर सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव का बयान जरूर गंभीर है. उन्होंने कहा कि है कि पार्टी आगामी लोकसभा चुनाव में गठबंधन करेगी चाहे उसे कुछ भी करना पड़े. सपा-बसपा और कांग्रेस में एकजुटता अभी भी नजर नहीं आ रही.
इसी बीच, बसपा सुप्रीमो मायावती ने छत्तीसगढ़ में अजीत जोगी की अगुवाई वाली जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ (जे) के साथ गठबंधन करके आगामी विधानसभा चुनाव लड़ने की घोषणा कर दी है. कांग्रेस, बसपा से बातचीत होने का दावा ही करती रही लेकिन बात नहीं बनी. गुरुवार को मायावती ने एक बार फिर दोहराय कि गठबंधन को लेकर उनकी राय स्पष्ट है कि उनकी पार्टी किसी भी दल के साथ तभी गठबंधन करेगी जब उसे समझौते के तहत सम्माजनक संख्या में सीटें मिलें. साथ ही उसकी सोच बसपा की ‘सर्वजन हिताय, सर्वजन सुखाय‘ की सोच से भी मेल खाती हो.
सीट शेयरिंग पर नहीं बन रही बात
संभावित महागठबंधन में शामिल होने वाली तीनों पार्टियों के बीच सीट शेयरिंग को लेकर सहमति नहीं बन पा रही है. यह भी तय नहीं हो पा रहा कि 2009 या 2014 में से किस लोसभा चुनाव को सीट शेयरिंग का आधार माना जाए. कांग्रेस ने 2009 में शानदार प्रदर्शन करते हुए उत्तर 21 सीटें जीती थीं. वहीं समाजवादी को 23 और बीएसपी को 22 सीटें मिली थीं. आरएलडी के खाते में 5 सीटें आई थीं. बात 2014 लोकसभा चुनाव की बात करें तो कांग्रेस को सिर्फ दो सीटें मिली थी. कांग्रेस 2009 के चुनाव को बेंचमार्क मानकर सीटें मांग रही है लेकिन यह बीएसपी-एसपी को स्वीकार नहीं है. उधर, एसपी-बीएसपी पिछले तीन चुनावों की औसत जीत को आधार मानकर सीटों का बंटवारा करना चाहते हैं. लेकिन कांग्रेस इस पर सहमत नहीं है क्योंकि उसका प्रदर्शन 1989 से कुछ खास नहीं है.
बीजेपी की जबर्दस्त तैयारी
उधर, बीजेपी ने संभावित महागठबंधन से निपटने के लिए सघन संपर्क अभियान कई स्तरों पर शुरू कर दिया है. बीजेपी के स्मार्ट बाइकर्स बूथों का दौरा करके पार्टी को मजबूती देने में जुटे हैं. बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने संभावित महगठबंधन की चुनौती को बहुत गंभीरता से लिया है. यही वजह है कि पार्टी ने व्यापक स्तर पर संपर्क अभियान छेड़ दिया है. फरवरी अंत तक पार्टी लगभग 4 करोड़ लाभार्थियों से व्यक्तिगत स्तर पर संपर्क करने का लक्ष्य बनाए हुए है.
उधर, सीटों के बंटवारे के लेकर स्पष्टता न होने के चलते विपक्ष में संयुक्त नेतृत्व का अभी अभाव साफ नजर आ रहा है. समाजवादी पार्टी एक बार फिर से पारिवारिक अंतर्कलह से जूझ रही है. एसपी सुप्रीमो अखिलेश यादव के चाचा शिवपाल यादव ने अपनी अलग पार्टी समाजवादी सेक्युलर मोर्चा बनाकर उन्हें मुश्किल में डाल दिया है. बसपा सुप्रीमो मायावती ने अपना कैंपेन देर से शुरू किया है.