गुवाहाटी। असम में बीजेपी के सहयोगी असमगण परिषद ने सरकार का साथ छोड़ दिया है. सिटीजनशिप के मुद्दे पर पार्टी ने सरकार का साथ जोड़ दिया है. एजीपी के 14 विधायक हैं. ऐसे में अब सवाल उठ रहे हैं कि क्या असम में बीजेपी की सरकार स्थिर है. असम में विधानसभा की कुल 126 सीटे हैं. असम में सरकार बनाने का मैजिक नंबर 64 हैं. बीजेपी के पास अपने 61 विधायक हैं. एजीपी के समर्थन वापसी के बाद अब बीजेपी के पास कुछ नंबर कम हैं.
बीजेपी के पास एक और पार्टी बीपीएफ का समर्थन है. उसके पास 12 विधायक हैं. ऐसे में सर्वानंद सोनोवाल के पास बहुमत के लिए जरूरी आंकड़ा है. 2016 में भाजपा एनडीए के घटक दल के तौर पर असम गण परिषद् और बोडोलैंड पीपल्स फ्रंट के साथ गठजोड़ कर चुनाव लड़ी थी. भाजपा सबसे बड़े दल के रूप में 60 सीटों पर विजय होकर उभरी थी. असम गण परिषद् को 14 और बोडोलैंड पीपल्स फ्रंट को 12 विधान सभा सीटों पर जीत मिली थी.
2016 के असम विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी को 26 सीटों पर और मौलाना बदरुद्दीन अज़मल के नेतृत्व की आल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (एआईयूडीएफ) को 13 विधानसभा सीटों पर जीत हासिल की थी. लखीमपुर जिला के जनजाति आरक्षित जोनाइ विधान सभा सीट पर एक निर्दलीय उम्मीदवार की जीत हुई थी. बाद में एकमात्र जीते निर्दलीय विधायक भूबोंन पेगु एनडीए में शामिल हो गए थे.
सिटीजनशिप बिल के विरोध में आसू छात्र संगठन का नागरिकता संशोधन विधेयक के खिलाफ बंद का आह्वान किया. असम गण परिषद् के सोनोवाल सरकार से समर्थन वापसी पर कांग्रेसी नेता और भूतपूर्व मुख्यमंत्री तरुण गोगोई ने कहा की भाजपा के साथ केंद्र में भी जो भी सहयोगी दल हैं, वह एक-एक कर बाहर निकल रहे हैं. शुरुआत TDP ने की. इस कड़ी में एजीपी भी एनडीए छोड़कर बाहर आ गई हैं.
कांग्रेस पार्टी नागरिक संशोधन विधयक के खिलाफ है. इससे असमिया संस्कृति और असमिया समाज का अस्तित्व खतरे में पड़ जाएगा. हिन्दू बांग्लादेशियों को असम में शरण देने का मतलब असमिया समाज का अपना पहचान खोना होगा. इसलिए असम इस बिल के खिलाफ विरोध दर्ज कर रहा है.