नई दिल्ली। सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में अगड़ी जातियों (सवर्ण वर्ग) के गरीबों को 10 प्रतिशत आरक्षण देने वाले संविधान संशोधन विधेयक को आज लोकसभा में पेश किया गया. केंद्रीय सामाजिक न्याय व अधिकारिता मंत्री थावर चंद गहलोत सदन में इस बिल को पेश किया. लोकसभा में इस बिल पर दोपहर 2 बजे से बहस होगी. राजनीतिक जानकारों की मानें तो केंद्र सरकार की कोशिश रहेगी कि आज ही इस संशोधन को लोकसभा में पास करवा लिया जाए और इसके बाद इसे राज्यसभा में पेश किया जाए. इसी वजह से अब बुधवार तक के लिए ऊपरी सदन के सत्र को बढ़ा दिया गया है.
बता दें कि केंद्रीय कैबिनेट ने सोमवार को सवर्ण जातियों के गरीबों के लिए शिक्षा और रोजगार में 10 प्रतिशत का आरक्षण देने का फैसला किया है. लेकिन इस फैसले को लागू करने के लिए सरकार को संविधान में संशोधन करना होगा क्योंकि प्रस्तावित आरक्षण अनुसूचित जातियों (एससी), अनुसूचित जनजातियों (एसटी) और अन्य पिछड़ा वर्गों (ओबीसी) को मिल रहे आरक्षण की 50 फीसदी सीमा के अतिरिक्त होगा, यानी ‘‘आर्थिक रूप से कमजोर’’ तबकों के लिए आरक्षण लागू हो जाने पर यह आंकड़ा बढकर 60 फीसदी हो जाएगा.
इस प्रस्ताव पर अमल के लिए संविधान संशोधन विधेयक संसद से पारित कराने की जरूरत पड़ेगी, क्योंकि संविधान में आर्थिक आधार पर आरक्षण का कोई प्रावधान नहीं है. इसके लिए संविधान के अनुच्छेद 15 और अनुच्छेद 16 में जरूरी संशोधन करने होंगे.
विधेयक एक बार पारित हो जाने पर संविधान में संशोधन हो जाएगा और फिर सामान्य वर्गों के गरीबों को शिक्षा एवं नौकरियों में आरक्षण मिल सकेगा. बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने इंदिरा साहनी मामले में अपने फैसले में आरक्षण पर 50 फीसदी की सीमा तय कर दी थी. सरकारी सूत्रों ने बताया कि प्रस्तावित संविधान संशोधन से अतिरिक्त कोटा का रास्ता साफ हो जाएगा. सरकार का कहना है कि यह आरक्षण आर्थिक रूप से कमजोर ऐसे लोगों को दिया जाएगा जो अभी आरक्षण का कोई लाभ नहीं ले रहे.
प्रस्तावित कानून का लाभ ब्राह्मण, राजपूत (ठाकुर), जाट, मराठा, भूमिहार, कई व्यापारिक जातियों, कापू और कम्मा सहित कई अन्य अगड़ी जातियों को मिलेगा. सूत्रों ने बताया कि अन्य धर्मों के गरीबों को भी आरक्षण का लाभ मिलेगा.
कांग्रेस ने मोदी सरकार के इस फैसले को लोगों को बेवकूफ बनाने का ‘‘चुनावी पैंतरा’’ करार दिया और कहा कि यह लोकसभा चुनाव हारने के भाजपा के ‘‘डर’’ का प्रमाण है. कांग्रेस प्रवक्ता अभिषेक सिंघवी ने सरकार पर आरोप लगाया कि वह देश को गुमराह कर रही है, क्योंकि संसद में संविधान संशोधन पारित कराने के लिए जरूरी बहुमत उसके पास नहीं है.
संविधान संशोधन विधेयक के जरिए संविधान के अनुच्छेद 15 और 16 में एक धारा जोड़कर शैक्षणिक संस्थाओं और सरकारी नौकरियों में आर्थिक रूप से कमजोर तबकों के लिए आरक्षण का प्रावधान किया जाएगा.अब तक संविधान में एससी-एसटी के अलावा सामाजिक एवं शैक्षणिक तौर पर पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण का प्रावधान है, लेकिन इसमें आर्थिक रूप से कमजोर लोगों का कोई जिक्र नहीं है. संसद में संविधान संशोधन विधेयक पारित कराने के लिए सरकार को दोनों सदनों में कम से कम दो-तिहाई बहुमत जुटाना होगा.
भाजपा का मानना है कि यदि विपक्षी पार्टियां इस विधेयक के खिलाफ वोट करती हैं तो वे समाज के एक प्रभावशाली तबके का समर्थन खो सकती है. राज्यसभा में सरकार के पास बहुमत नहीं है. पिछले कुछ सालों में मराठा, कापू और जाट जैसे प्रभावशाली समुदायों ने सड़क पर उतर कर आरक्षण की मांग की है. कई बार उनके प्रदर्शन हिंसक रूप ले चुके हैं.
हरियाणा, राजस्थान और महाराष्ट्र जैसे राज्यों ने इस बाबत कानून बनाए हैं, लेकिन इंदिरा साहनी मामले में उच्चतम न्यायालय की ओर से 50 फीसदी की सीमा तय करने के फैसले का हवाला देकर अदालत ने उन कानूनों को खारिज कर दिया है. उच्चतम न्यायालय जोर देकर कह चुका है कि संविधान में आर्थिक आधार पर आरक्षण देने का प्रावधान नहीं है और सिर्फ शैक्षणिक एवं सामाजिक पिछड़ेपन के आधार पर ही आरक्षण दिया जा सकता है.