क्या चीनी राष्ट्रपति के ड्रीम प्रोजेक्ट का भविष्य अधर में है? क्या एक ट्रिलियन डॉलर वाली बेल्ट एंड रोड योजना का रास्ता बंद हो चुका है? ऐसे कई सवाल हैं जो इस हफ्ते होने वाली तीसरी बेल्ट एंड रोड फोरम से पहले उठने लगे हैं। बता दें कि यह प्रोजेक्ट चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के दिमाग की उपज की है। इसके लिए जिनपिंग ने साल 2017 में दुनिया भर के नेताओं को इकट्ठा किया था। बेल्ट एंड रोड के जरिए उनकी मंशा इंफ्रास्ट्रक्चर का जाल बिछाकर चीनी ताकत को दुनिया भर में फैलाना था। जिनपिंग ने इसे ‘प्रोजेक्ट ऑफ द सेंचुरी’ का नाम दिया था।
पहले दशक के लिए बीआरआई प्रोजेक्ट को एक ट्रिलियन डॉलर की रकम मिल चुकी है, लेकिन हालिया वर्षों में इसको लेकर उत्साह में गिरावट आई है। बीआरआई कंट्रीज में चीन की एक्टिविटी में 2018 के बाद 40 फीसदी की कमी आई है। ऐसा इसलिए हुआ है क्योंकि दुनिया की दूसरे नंबर की अर्थव्यवस्था में गिरावट दर्ज की गई है। बीजिंग के ऊपर एक गैर जिम्मेदार नेता होने का आरोप लगा था। कहा गया कि वह प्रोजेक्ट में शामिल देशों को डिफाल्टर बना रहा है। वहीं, अमेरिका से रिश्तों में खटास के बाद प्रोजेक्ट की मुश्किलें और ज्यादा बढ़ गईं। वहीं, इटली भी इस साल के अंत तक इस प्रोजेक्ट से बाहर होने वाला है।
नए जीवनदान की उम्मीद
चीन के एक अधिकारी ने भी बीआरआई को डेड बताया है। उसका कहना है कि पहले कोविड और फिर चीन के आर्थिक हालात ने भी इस प्रोजेक्ट की मुश्किलें बढ़ाई हैं। टाइम्स ऑफ इंडिया के मुताबिक इस अधिकारी ने बताया कि चीनी सरकार को उम्मीद है कि बीआरआई की दसवीं एनिवर्सरी पर आयोजित हो रहा यह फोरम इसे एक नया जीवनदान देगा। एक वरिष्ठ अमेरिकी अधिकारी के मुताबिक अमेरिका मानता है कि बीआरआई गहरे संकट में है। उन्होंने कहा कि बीजिंग के पास लोन पर लेने के लिए पैसे नहीं हैं और पहले से लिए गए लोन का भी दबाव बढ़ता जा रहा है।
इन सारी चीजों के बीच चीन के राष्ट्रपति के पास मौका होगा कि वह बैठक में बड़े नेताओं के सामने खुद को साबित करें। इस बैठक में रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन, हंगरी के प्रधानमंत्री विक्टर ओरबान, इंडोनेशिया के राष्ट्रपति जोको विडोडो, अर्जेंटीना के राष्ट्रपति अल्बर्टो फर्नांडेज और थाई प्रधानमंत्री हैं। गौरतलब है कि कोविड ने चीन के इंफ्रास्ट्रक्चर और व्यापारिक पहल पर ब्रेक लगा दिया था। ग्लोबल स्लोडाउन ने प्रोजेक्ट में शामिल देशों को इस लायक न छोड़ा कि वह अपने लोन चुका सकें। जांबिया पहला अफ्रीकी देश था जो पैंडेमिक के दौरान 2020 के आखिर में सबसे पहले डिफाल्ट हुआ।