प्रयागराज/लखनऊ। इलाहबाद हाई कोर्ट ने एक हिन्दू महिला की वो याचिका ख़ारिज कर दी है जिसमें उसने मुस्लिम युवक के साथ लिव इन रिलेशनशिप में रहने के चलते खुद पर अपनी माँ द्वारा दर्ज केस ख़ारिज करने की माँग की थी। याचिका में महिला ने अपनी माँ की शिकायत पर पुलिस द्वारा खुद को प्रताड़ित किए जाने का आरोप लगाया था।
उच्च न्यायलय ने यह याचिका ख़ारिज करते हुए लिव इन रिलेशनशिप को ‘इस्लाम में हराम’ बताया। कोर्ट ने अपनी टिप्पणी में कुरान का हवाला देते हुए इस्लाम में निकाह से पहले छूना और किस करना भी गलत बताया। जस्टिस संगीता चंद्रा और जस्टिस नरेंद्र कुमार जौहरी की बेंच ने यह फैसला 28 अप्रैल 2023 को सुनाया था।
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक इस केस में याचिकाकर्ता लखनऊ के हसनगंज थानाक्षेत्र की रहने वाली 29 वर्षीया एक लड़की है। उसने मोहम्मद रिज़वान नाम के एक 30 वर्षीय युवक के साथ खुद को लिव इन रिलेशनशिप में बताया था।
लड़की का आरोप था कि उनकी माँ दोनों के रिश्ते से खुश नहीं हैं। लड़की की माँ ने पुलिस में FIR दर्ज करवा के आरोप लगाया था कि पुलिस उन्हें और रिज़वान को प्रताड़ित कर रही है। याचिका में लड़की ने खुद को बालिग और अपने निर्णय को पूरी तरह से सोच-समझ कर लिया गया बताया था।
कुरान का हवाला देते हुए न्यायाधीशों ने कहा कि इस्लाम में निकाह से पहले सेक्स, छूना और यहाँ तक कि किसिंग भी हराम मानी जाती है। अदालत द्वारा बताया गया कि इस्लाम में एक्स्ट्रा मैरिटल सेक्स और पैरामेट्रियल सेक्स पर पुरुष को 100 कोड़े और महिला को मौत की सजा का प्रावधान है।
कोर्ट ने इस्लाम में शादी से पहले बनाए गए संबंध को ‘जिना’ बताया है। जिना का जिक्र कुरान में है। अपनी टिप्पणी में हाई कोर्ट ने यह भी बताया कि याचिकाकर्ता ने कहीं भी इस बात का जिक्र नहीं किया है कि दोनों निकट भविष्य में शादी करने वाले हैं। याचिकाकर्ता पक्ष कोर्ट में स्पष्ट रूप से यह भी साबित नहीं कर पाया कि पुलिस द्वारा उनका उत्पीड़न किया जा रहा है। अदालत ने याचिकाकर्ता को यह भी सलाह दी कि अगर उन्हें परिजनों से किसी प्रकार का खतरा है तो वो पुलिस में आवेदन दे सकते हैं।