पाकिस्तान के परमाणु वैज्ञानिक और प्रोफेसर परवेज हुदाबोय ने पाकिस्तान के परमाणु कार्यक्रम को लेकर कई चौंकाने वाले खुलासे किए हैं. उन्होंने कहा है कि पाकिस्तान ने जो परमाणु बम बनाया था, उसका डिजाइन चीन से आया था. उन्होंने कहा कि इस बात का खुलासा तब हुआ जब अमेरिका ने पाकिस्तान के एक जहाज को पकड़ा जिसमें बम का डिजाइन मौजूद था.
उन्होंने आगे कहा, ‘ये बातें मैंने बनाई नहीं है…ये बातें आपको अमेरिका से भी पता लग जाएंगी. क्योंकि जब वो डिजाइन जहाज से बरामद हुआ तो उसमें चीनी भाषा में लिखा हुआ था. बम का पुर्जा-पुर्जा उस ब्लू प्रिंट में दिखाया गया. बीबीसी कार्गो उस जहाज का नाम था.’
परवेज हुदाबोय ने कहा कि यह बात उन्हें 1995 में ही पता चल गई कि चीन पाकिस्तान को परमाणु बम का डिजाइन दे रहा है.
उन्होंने कहा, ‘एटॉमिक एनर्जी कमीशन के उस वक्त के चेयरमैन मुनीर अहमद खान अक्सर मुझे घर बुलाया करते थे. वो उन दिनों बेहद दुखी रहा करते थे कि देश में परमाणु या फिर किसी क्षेत्र में कोई रिसर्च नहीं हो रही है. एक दिन उन्होंने मुझे बुलाकर कहा कि कुछ अमेरिकी सीनेटर आए थे और उन्होंने मुझे खूब सुनाया और कहा कि हमें पता है कि आप बम बना रहे हैं. आप कहते हैं कि आप नहीं बना रहे लेकिन हम जानते हैं कि आप बम बना रहे हैं. इसके बाद उन्होंने मेज पर एक कागज रखा और कहा कि ये वो डिजाइन है जो आपको चीन से मिला है और ये सबूत है कि आप बम बना रहे हैं.’
भारत से मुकाबला करने के लिए पाकिस्तान ने बनाया परमाणु बम
पाकिस्तान ने अपना परमाणु कार्यक्रम भारत को टक्कर देने के लिए शुरू किया था. साल 1960 में अयूब खान की सरकार ने जुल्फिकार अली भुट्टो को अपना खनिज और प्राकृतिक संसाधन मंत्री बनाया. भुट्टो भारत के परमाणु कार्यक्रम से बेहद चिंतित थे. साल 1965 में उन्होंने कहा था, ‘अगर भारत बम बनाता है तो हम घास या पत्ते खा लेंगे, भूखे भी सो लेंगे लेकिन हम अपना बम जरूर बनाएंगे. इसके अलावा हमारे पास कोई रास्ता नहीं है.’
पाकिस्तान को उसका पहला परमाणु बम 1998 में डॉ अब्दुल कादिर खान के नेतृत्व में मिला था. अब्दुल कादिर खान को ही पाकिस्तानी परमाणु बम का जनक कहा जाता है.
अब्दुल कादिर खान ऐम्सटरडैम में फिजिक्स डायनैमिक्स रिसर्च लैबोरेटरी में साल 1972 से 1975 तक काम कर चुके थे जहां पर उन्होंने यूरेनियम को लेकर कई अहम जानकारियां जुटा ली थीं. इसके बाद अब्दुल कुछ गोपनीय दस्तावेज लेकर नीदरलैंड छोड़कर पाकिस्तान आ गए. पाकिस्तान लौटते ही खान लैब ने यूरेनियम संवर्धन प्लांट विकसित किया. 1983 में खान पर चोरी का आरोप भी लगा. इसके बाद खान का नाम उत्तर कोरिया, ईरान, ईराक और लीबिया को न्यूक्लियर डिजाइन्स और सामग्री की बिक्री से भी जुड़ा.
1983 की यूएस स्टेट डिपार्टमेंट की एक रिपोर्ट में भी खुलासा हुआ था कि चीन ने पाकिस्तान के परमाणु कार्यक्रम में मदद की है और परमाणु बम के लिए पूरा ब्लूप्रिंट भी पाकिस्तान को दिया. 1984 तक पाकिस्तान हथियारों के स्तर तक यूरेनियम संवर्धन में सक्षम हो चुका था. हालांकि, 80 के दशक के आखिरी वर्षों में काम तेजी से आगे बढ़ा था और इसकी वजहें थीं- भारत या इजरायल की स्ट्राइक का डर और अमेरिका का बढ़ता दबाव. इस दौरान पाकिस्तान ने अपने परमाणु हथियार कार्यक्रम की दिशा में काम करना जारी रखा. 1998 में पाकिस्तान ने आखिरकार पहला परमाणु परीक्षण किया. यह परीक्षण इसी साल किए गए भारतीय परमाणु परीक्षण के जवाब में था.