लखनऊ। प्रेस रूम का माहौल बहुत गरम था। हंस सरकार को पत्र लिखकर पत्रकारों का राज मांगने के बाद उड़ गया था और सरकार ने उसी पत्र के आधार पर मांगेराम शर्मा समेत तमाम मान्यताजीवियों से पत्रकार होने का सबूत मांग लिया था। मांगे इसी बात को लेकर आपे से बाहर था। मांगे पत्रकारों के नेता बेंजामिन टैंकची, टैंकची बेजामिन जी का तखल्लुस था जिसे उन्होंने अपने विरोधी नेता पीटर तोपची के कंप्टीशन में अपने नाम के पीछे लगा छोड़ा था, की भी बात आज मानने को तैयार नहीं था। अपनी फ्रेंचकट दाढ़ी और नाक पर नीचे तक सरक आये चश्मे के ऊपर से बेंजामिन में बहुत ही हरामीपना तरीके से मांगे को घूरा, लेकिन मांगे आज मारने-मरने पर उतारू था। वह किसी पर भी हमला कर सकता था। मार खाने का अनुभव होने के बावजूद माहौल भांपकर बेंजामिन ने अपनी घूरती आंखों की चौड़ाई कम कर दी, ऐसा लगा कि अनुभव होने के बाद भी वह इस वक्त मार खाने के मूड में कतई नहीं हैं।
मांगे फायर हो रहा था, ”पत्रकारिता में विनाश का दौर आ चुका है। पढ़ने-लिखने का सबूत मांगा जा रहा है। अरे जब लिखना पढ़ना ही होता तो फिर इस पेशे में आने की जरूरत ही क्या थी, फिर हम जज नहीं बन जाते? यह तो पत्रकारों और पत्रकारिता का सरासर अपमान है।” छबीले ने भी मांगे की हां में हां मिलाते हुए कहा, ”बताओ भला पूछा जा रहा है कि पत्रकारिता के अलावा और कौनो धंधा तो नहीं करते हो बे? अब तुम ही बताओ नेता जी हमारा धंधा देखकर ही तो मान्यता प्राप्त पत्रकार बनवाया था तुमने, आज उसी पर सरकार सवाल उठा रही है। हम कौन सा लिख पढ़कर किसी से सरकार होने का सवाल उठा रहे थे जो हमसे पत्रकार होने का सुबूत मांगा जा रहा है? हमने तो पत्रकारिता के पंद्रह साल के करियर में आज तक एक शब्द नहीं लिखा, खबर लिखना तो दूर की बात है, फिर भी सरकार को हमारे पत्रकार होने का सबूत चाहिए। यह हमसे ज्यादा तुम्हारा अपमान है गुरू बेंजामिन।”
इस चिल्ल पों में मांगे और छबीले से भी ज्यादा दुखी नजम भाई गुलदस्ता नजर आ रहे थे। बहुत ही कातर आवाज में उन्होंने कहा, ”हमने सरकार का क्या बिगाड़ दिया, जो हमलोगों की मान्यता पर सवाल उठाया जा रहा है? मैं अपने पत्रकारिता के बारह साल के करियर में बस लोगों का सम्मान ही करता आया हूं, खबर लिखकर किसी को अपमानित करने का काम कभी नहीं किया। ऐसा कोई नहीं बचा होगा जिसका मैंने सम्मान ना किया हो, यहां तक सूचना विभाग के चपरासियों तक को ‘सूचना भूषण’ से सम्मानित किया है। एक चपरासी सम्मान लेने को तैयार नहीं था तो हमलोगों ने पकड़ कर उसे ‘भारत सूचना रत्न’ से सम्मानित करने का काम किया। हमारा पत्रकार संगठन कभी सरकार के खिलाफ खड़ा नहीं हुआ। हमने शासन-प्रशासन द्वारा प्रताडि़त किये गये पत्रकारों के समर्थन में खड़ा होकर सरकार की खिलाफत करने की बजाय पत्रकार को ‘प्रताड़ना रत्न’ से सम्मानित करने का काम किया, फिर हमारे साथ ऐसा क्यों? हमारी एलआईयू जांच करा ली जाये, जो हमने सम्मान करना छोड़कर कभी खबर लिखी हो! हमने जब कभी खबर नहीं लिखी तो फिर हमसे मान्यता छीनने की कोशिश क्यों? यह सम्मान करने वाले पत्रकारों के सम्मान के साथ खिलवाड़ है।”
नजम भाई गुलदस्ता की बात सुनकर हसन भाई फकफका कर रो पड़े। उनकी रुलाई से प्रेस रूम का कमरा गूंज उठा। वहां मौजूद पत्रकारों की आंखें नम हो गई। तभी छबीले ने मोबाइल में ‘आंख हुई नम’ वाला गाना लगा दिया, माहौल और गमगीन हो गया। कुछ लोग छाती पीटते इसके पहले ही मांगे ने हसन भाई की आंख पोंछी, और दिलासा देते हुए कहा, ”हसन भाई घबराना नहीं है। यह विपरीत वक्त है कट जायेगा। अच्छी खबर भी आयेगी।” हसन भाई खुद को संभालते हुए कहा, ”अच्छी खबर की बात करते हैं मांगे भाई। हमें तो लिखना पढ़ना तक नहीं आता है, अच्छी-बुरी खबर क्या लिखेंगे, जांच करा ली जाये ईडी, सीबीआई से। अल्ला कसम खाकर कह रहा हूं कि दोजख मिले जो आज बीस साल के करियर में एक भी खबर लिखी हो तो। मान्यता या पत्रकारिता का मैंने कभी खबर लिखकर दुरुपयोग नहीं किया। मैं तो अधिकारी और नेताओं के साथ सेल्फी लेने के अलावा इसका कहीं प्रयोग ही नहीं किया। साल का साल विज्ञापन जुटाने के चक्कर में चला जाता है, खबर लिखने की फुरसत किसे है, फिर सरकार हम जैसों को निशाना क्यों बना रही है?”
हसन भाई की बात सुनकर हर कोई दुखी हो गया। प्रेस रूम में मुर्दानी शांति छा गई। इस शांति को चीरते हुए छबीले की आवाज गूंजी, ”भाइयों यह सरकार पत्रकार विरोधी है। उसने मान्यता जांचने के लिये कमेटी बनाई है, जिसमें प्रिंट, इलेक्ट्रानिक, एजेंसी के पत्रकारों को तो शामिल किया गया है, लेकिन हम जैसे सेल्फीबाज पत्रकार, लिखने पढ़ने से परहेज करने वाले पत्रकार, सालभर सम्मान करने वाले पत्रकार तथा पत्रकारिता छोड़ दूसरे धंधे करने वाले पत्रकारों में से किसी को प्रतिनिधत्व नहीं दिया गया है। आखिर हम जैसे पत्रकारों की क्वालिटी को पहचानेगा कौन? हमारी बात कौन रखेगा? उन पत्रकारों को कौन पहचानेगा, जो अपना काम धंधा छोड़कर केवल बेंजामिन भाई को वोट देने आते हैं? हमारे नेता बेंजामिन टैंकची और पीटर तोपची जैसे पत्रकारों को भी इस कमेटी में शामिल नहीं किया गया है, जो हमलोगों के सरगनाओं का भी अपमान है।” छबीले की इस बात पर बल्लम मिश्रा, तोप सिंह, चक्कू तिवारी, कट्टा अवस्थी, भाला श्रीवास्तव, गड़ासा अग्निहोत्री, मिसाइल यादव, तनजुदा अहमद समेत तमाम पत्रकारों ने हाथ उठाकर सहमति जताई, – ”प्रत्येक प्रेस कांफ्रेंस में शामिल होकर भी कुछ नहीं लिखने-पढ़ने वाले पत्रकारों का अपमान है यह।” तय किया गया कि सरकार यदि मान्यता लेती है तो नजम भाई अपना दिया गया सम्मान अधिकारियों-नेताओं-मंत्रियों से वापस लेंगे, यहां तक ‘भारत सूचना रत्न’ भी।
(वरिष्ठ पत्रकार अनिल अनिल सिंह की फेसबुक वॉल से)