लखनऊ। उत्तर प्रदेश विधान परिषद के लिए समाजवादी पार्टी ने भले ही अपने कैंडिडेट्स की लिस्ट जारी न की हो, लेकिन स्वामी प्रसाद मौर्य को हरी झंडी दे दी है. पूर्व कैबिनेट मंत्री स्वामी प्रसाद ने पर्चा खरीद लिया है और मंगलवार को अपना नामांकन दाखिल करेंगे. स्वामी प्रसाद यूपी विधानसभा चुनाव के दौरान बीजेपी छोड़कर सपा में आए थे, लेकिन कुशीनगर की फाजिलनगर सीट से जीत नहीं सके. ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर स्वामी प्रसाद पर अखिलेश यादव क्यों मेहरबान हैं और एमएलसी बनाकर क्या सियासी समीकरण साधने की रणनीति है?
यूपी के 13 विधान परिषद (एमएलसी) सदस्यों का कार्यकाल 6 जुलाई को खत्म हो रहा है, जिसके चलते 20 जून को चुनाव है. इन 13 एमएलसी सीटों के लिए 9 जून तक नामांकन होने हैं. सूबे की विधानसभा के सदस्यों के आधार पर बीजेपी को 9 और सपा को 4 सीटें मिलनी तय है. ऐसे में सपा के कोटे से स्वामी प्रसाद मौर्य और सोबरन सिंह यादव का विधान परिषद में जाना लगभग तय माना जा रहा है. इसके अलावा अखिलेश यादव एक सीट अपने सहयोगी ओम प्रकाश राजभर के बेटे को दे सकते हैं तो एक सीट पर किसी दलित को उच्च सदन भेजने की प्लानिंग है.
स्वामी प्रसाद को एमएलसी भेज रही सपा
बीजेपी छोड़कर सपा में आने वाले स्वामी प्रसाद मौर्य भले ही 2022 का विधानसभा चुनाव हार गए, लेकिन अखिलेश उन्हें किसी भी सूरत में अपने से दूर नहीं करना चाहते हैं. अखिलेश इस तरह स्वामी प्रसाद मौर्य को उच्च सदन भेजकर गैर-यादव ओबीसी समुदाय को बड़ा संदेश देंगे ताकि 2024 के लोकसभा चुनाव में पार्टी अपने गैर यादव ओबीसी की नई रणनीति का फायदा ले सकें. इसीलिए स्वामी प्रसाद को एमएलसी बनाने का दांव चला है.
बता दें कि स्वामी प्रसाद मौर्य ने यूपी की सियासत में 80 के दशक में कदम रखा है. स्वामी प्रसाद मौर्य ‘बुद्धिज्म’ को फॉलो करते हैं. डॉ. अंबेडकर और कांशीराम के राजनीतिक सिद्धांतों को मानने वाले नेताओं में स्वामी प्रसाद शामिल हैं, जिसके चलते उनकी पूरी सियासत दलित-ओबीसी केंद्रित रही. स्वामी प्रसाद ने लोकदल से अपना सियासी सफर शुरू किया और बसपा में रहते हुए राजनीतिक बुलंदियों को छुआ.
मौर्य समाज को साधने का सपा प्लान
पांच बार विधायक और एक बार एमएलसी रहे स्वामी प्रसाद बसपा से लेकर बीजेपी तक की सरकार में मंत्री रहे. बसपा में प्रदेश अध्यक्ष से लेकर राष्ट्रीय महासचिव और विधानसभा में प्रतिपक्ष के नेता तक रहे तो बीजेपी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में भी शामिल रहे. सूबे में मौर्य समाज के बड़े नेताओं में स्वामी प्रसाद को गिना जाता है, भले ही साइकिल की सवारी कर 2022 के चुनाव में मौर्य वोटों को सपा में न दिला सके हों, लेकिन अखिलेश उन्हें एमएलसी बनाकर मौर्य समाज को बड़ा सियासी संदेश देने की रणनीति है.
साल 1996 के बाद से 2022 के चुनाव तक स्वामी प्रसाद मौर्य लगातार यूपी की सियासत में बड़े ओहदे पर रहे हैं, जिसके जरिए उन्होंने अपने समाज के बीच अच्छी पकड़ बनाने में कामयाब रहे. मौर्य समाज की पकड़ का नतीजा है कि स्वामी प्रसाद मौर्य रहने वाले तो प्रतापगढ़ से हैं, लेकिन चुनाव वो कभी रायबरेली जिले से जीते तो अब पूर्वांचल के कुशीनगर को कर्मभूमि बना रखा है. वहीं, उनकी बेटी संघमित्रा मौर्य रुहेलखंड के बदायूं से सांसद हैं. सत्ता में रहते हुए स्वामी प्रसाद ने अपने करीबी नेताओं को खूब ओबलाइज किया था.
यूपी में मौर्य तीसरी गैर-ओबीसी जाति
दरअसल, उत्तर प्रदेश में यादव और कुर्मी के बाद मौर्य समाज ओबीसी समुदाय को तीसरी सबसे बड़ी आबादी वाली जाति मानी जाती है. काछी, मौर्य, कुशवाहा, शाक्य और सैनी जैसे उपनाम की जातियों का नाता इसी समुदाय से है. वैसे आबादी के लिहाज से देखें तो प्रदेश में इनकी संख्या तकरीबन 6 फीसदी है, लेकिन वोटबैंक के आंकड़ों के हिसाब से नजर डाली जाए तो राज्य में सबसे बड़ा वोट बैंक पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) को ही माना जाता है.
यूपी में मौर्य वोटों की ताकत
यूपी में करीब 6 फीसदी मौर्य-कुशवाहा की आबादी है, लेकिन करीब 15 जिलों में 15 फीसदी के करीब है. पश्चिमी यूपी के जिलों में सैनी समाज के रूप में पहचान है तो बृज से लेकर कानपुर देहात तक और बुंदेलखड में शाक्य समाज के रूप में जाने जाते हैं. बुंदेलखंड और पूर्वांचल में कुशवाहा समाज के नाम से जानी जाती है तो अवध और रुहेलखंड व पूर्वांचल के कुछ जिलों में मौर्य नाम से जानी जाती है.
पूर्वांचल के गोरखपुर, बस्ती, वाराणसी, कुशीनगर, देवरिया, आजमगढ़, वाराणसी, मिर्जापुर, प्रयागराज, अयोध्या मंडल की दो दर्जन से ज्यादा सीटों पर मौर्य बिरादरी निर्णायक भूमिका में है. बुंदेलखंड के बांदा, हमीरपुर, जालौन, झांसी, ललितपुर और चित्रकूट में कुशवाहा समाज काफी अहम है. फिरोजाबाद, एटा, मैनपुरी, हरदोई, फर्रुखाबाद, इटावा, औरैया, बदायूं, कन्नौज, कानपुर देहात और आगरा में शाक्य वोटर निर्णायक हैं. पश्चिम यूपी के मेरठ, सहारनपुर, मुजफ्फरनगर और मुरादाबाद में सैनी समाज निर्णायक है. वहीं, बरेली, बदायूं, शाहजहांपुर, रायबरेली, प्रतापगढ़ जिलों की एक दर्जन से ज्यादा सीटों में इस बिरादरी की बड़ी तादाद है.
गैर-यादव ओबीसी वोटर अहम
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के सियासी संग्राम को देखते हुए समाजवादी पार्टी को गैर यादव वोट के लिए काफी समय से बड़े चेहरे की तलाश थी. ऐसे में स्वामी प्रसाद मौर्य के आने से यह तलाश पूरी हुई, लेकिन मोदी-योगी की जोड़ी के सामने बेअसर रही. बीजेपी ने केशव प्रसाद मौर्य को सूबे में आगे कर रखा है. सिराथू विधानसभा सीट से हारने के बाद भी बीजेपी ने उन्हें डिप्टी सीएम बनाया, सदन से लेकर सड़क तक अखिलेश के खिलाफ मोर्चा खो रखे हैं. ऐसे में अखिलेश यादव भी अब स्वामी प्रसाद मौर्य को आगे कर बीजेपी के केशव मौर्य को काउंटर करने का प्लान बनाया है.
विधानसभा चुनाव के हार की समीक्षा बैठक में सपा ने तय किया कि विधानसभा चुनाव में मिले वोटबैंक को बचाए रखने के लिए हर स्तर पर सतर्कता बरतते हुए इस ग्राफ को बढ़ाया जाएगा. तय किया गया कि विधानसभा 2022 के चुनाव में जो कमियां दिखीं उनसे सबक लिया जाएगा. बैठक के दौरान सर्वे एजेंसी ने 300 सीटों पर अपनी रिपोर्ट दी. इसमें बताया गया कि 65 विधानसभा क्षेत्रों के तमाम बूथ ऐसे हैं, जहां सपा को बीजेपी से एक या दो वोट कम मिले हैं. इसमें गैर-यादव ओबीसी वाले बूथ ज्यादा है. इसीलिए अखिलेश यादव ने स्वामी प्रसाद को आगे बढ़ाने की रणनीति है.