नेताजी सुभाष चंद्र बोस (Subhash Chandra Bose) की मौत आज भी एक रहस्य बनी हुई है. कहा जाता रहा है कि 18 अगस्त 1945 को एक विमान दुर्घटना में नेताजी की मौत हो गई थी. ऐसा भी कहा जाता है कि रेंको जी मंदिर (Renkoji temple) में नेताजी की अस्थियां भी रखी हुईं हैं. ये मंदिर जापान की राजधानी टोक्यो में स्थित है.
रेंको जी मंदिर जापान के मशहूर पर्यटन स्थल में से एक हैं. दावा किया जाता है कि इसी मंदिर में नेताजी की अस्थियां रखी हुई हैं. हर साल इस मंदिर को 14 अगस्त को आम जनता के लिए खोला जाता है. 9 दिसंबर 2001 को तब के प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी भी इस मंदिर में आए थे.
यहां आकर वाजपेयी ने लिखा था, “मुझे रेंको जी दोबारा आकर प्रसन्नता हुई, जहां भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महान सेनानी नेताजी सुभाष चंद्र बोस की स्मृतियां सुरक्षित हैं.” इसी बात से समझा जा सकता है कि भारतीयों के लिए ये जगह कितनी महत्वपूर्ण है.
क्या सच में रेंको जी में हैं नेताजी की अस्थियां?
ये विवादित मुद्दा है, लेकिन दावा तो यही किया जाता है कि वहां नेताजी की अस्थियां रखी हुईं हैं. नेताजी बोस की मौत की जांच के लिए 1999 में अटल सरकार ने मुखर्जी आयोग का गठन किया था. आयोग के अध्यक्ष जस्टिस मनोज कुमार मुखर्जी रेंको जी टेम्पल गए थे और जिस लकड़ी के बॉक्स में नेताजी की अस्थियां रखी होने का दावा था, वो बॉक्स उनसे खुल नहीं सका. बताया जाता है कि उस दिन जापान में राष्ट्रीय छुट्टी थी, इसलिए कोई मैकेनिक भी उनकी मदद के लिए नहीं आ सका.
नेताजी के अंतिम संस्कार की देखरेख का जिम्मा निप्पोन आर्मी की ओर से मेजर नागातोमो को मिला था. उन्हें शाह नवाज कमेटी को बताया था, “बौद्ध परंपरा के अनुसार, मैंने पहले गले से एक हड्डी को दो चॉपस्टिक से उठाकर बॉक्स में रखा. फिर शरीर के हर हिस्से से हड्डी उठा-उठाकर बॉक्स में रखी.”
क्या सरकार भी मानती है ऐसा कुछ?
मार्च 2007 में एक आरटीआई के जवाब में विदेश मंत्रालय के अतिरिक्त सचिव अजय चौधरी ने बताया था कि रेंको जी मंदिर में एक अलमारी में दो मोमबत्तियों के बीच में एक बॉक्स में नेताजी की अस्थियां रखी हुईं हैं. उन्होंने बताया था कि 9X6 इंच के एक छोटे से बॉक्स में उनकी अस्थियां सहेज कर रखीं गईं हैं. उन्होंने ये भी बताया था कि रेंको जी मंदिर के मुख्य पुजारी ने 23 नवंबर 1953 को तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू को एक चिट्ठी लिखी थी, जिसमें उन्होंने बताया था कि उन्होंने 18 सितंबर 1945 से नेताजी की अस्थियां सहेज कर रखीं हैं.
हालांकि, इस मामले को लेकर कुछ साफ-साफ नहीं कहा जा सकता है. नेताजी के पड़पोते चंद्र बोस कई बार रेंको जी मंदिर में रखी अस्थियों का डीएनए टेस्ट कराने की मांग करते रहे हैं.