लखनऊ। उत्तर प्रदेश की सियासत में करीब 14 साल बाद ब्राह्मण समाज को एक बार फिर से जोड़कर बसपा प्रमुख मायावती सोशल इंजीनियरिंग फॉर्मूले को जमीन पर उतारने की कवायद में जुट गई हैं. ब्राह्मणों को बसपा से जोड़ने की जिम्मेदारी पार्टी के महासचिव सतीष चंद्र मिश्रा के कंधों पर है, लेकिन 2007 को दोहराने बसपा के लिए आसान नहीं है. हालात उस समय से मौजूदा वक्त में बहुत अलग है. बसपा के तमाम ब्राह्मण नेता 14 सालों में मायावती का साथ छोड़कर बीजेपी या दूसरे दलों का दामन थाम चुके हैं.
2007 में BSP से जीते थे 41 ब्राह्मण विधायक
सतीश चंद्र मिश्रा हर ब्राह्मण सम्मलेन यह बताने की कोशिश कर रहे हैं कि बीएसपी के साथ अगर 13 फीसदी ब्राह्मण जुड़ता है तो 23 फीसदी दलित समाज के साथ मिलकर जीत सुनिश्चित है. ऐसा ही नारा 2007 में भी बसपा ने दिया था और पार्टी से 41 ब्राह्मण विधायक जीतकर आए थे, लेकिन एक-एक कर पार्टी छोड़ते गए. मौजूदा समय में बसपा के पास ब्राह्मण चेहरे के तौर पर सतीष चंद्र मिश्रा, नकुल दूबे, विनय तिवारी, रत्नेश पांडेय और हाल ही में पार्टी में वापसी करने वाले पवन पांडेय शामिल हैं.
बृजेश पाठक ने थाम लिया था बीजेपी का दामन
बता दें कि बसपा में एक समय अवध क्षेत्र में बृजेश पाठक ब्राह्मण चेहरा हुआ करते थे, लेकिन 2017 के चुनाव से पहले मायावती का साथ छोड़कर बीजेपी का दामन थाम लिया. मौजूदा समय में योगी सरकार में मंत्री हैं. यूपी के बृज क्षेत्र में बीजेपी के ब्राह्मण चेहरा रामवीर उपाध्याय हुआ करते थे. मायावती सरकार में रामवीर उपाध्याय हाई प्रोफाइल मंत्री रहे हैं, लेकिन अब बसपा से उनका मोहभंग हो गया है और बीजेपी का दामन थाम लिया है. रामवीर उपाध्याय की पत्नी बसपा से सांसद रह चुकी हैं और उनके भाई जिला पंचायत अध्यक्ष रहे चुके हैं.
फूलपुर से पूर्व सांसद कपिल मुनि करवरिया और उनके छोटे भाई पूर्व एमएलसी सूरजभान करवरिया एक समय प्रयागराज में बसपा के ब्राह्मण चेहरा हुआ करते थे, लेकिन मायावती ने एक झटके में उन्हें पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया था. इसके बाद सूरजभान करवरिया ने बीजेपी का दामन थाम लिया और मौजूदा समय में उनकी पत्नी नीलम करवरिया प्रयागराज के मेजा से बीजेपी की विधायक हैं.
साल 2007 में बसपा की पूर्ण बहुमत की सरकार बनी तो उच्च शिक्षा मंत्री की जिम्मेदारी प्रयागराज के डॉ. राकेशधर त्रिपाठी को मिली थी. बसपा सुप्रिमों मायावती के काफी करीबी माने जाते थे, लेकिन एक समय ऐसा आया की राकेशधर त्रिपाठी और उनके भतीजे पंकज त्रिपाठी को बसपा से निकाल दिया गया है.
पूर्वांचल के अयोध्या जिले में इंद्रपताप तिवारी उर्फ खब्बू तिवारी एक समय बीएसपी का ब्राह्मण और कद्दावर चेहरा माने जाते थे. गोसाईगंज सीट से बसपा के टिकट पर खब्बू तिवारी दो चुनाव लड़े और 2017 में उन्होंने हाथी का साथ छोड़कर बीजेपी का दामन थाम लिया और मौजूदा समय में पार्टी से विधायक हैं. ऐसे ही साल 2007 में मायावती सरकार में बिनगा सीट से जीते ददन मिश्रा चिकित्सा शिक्षा मंत्री थे. पूर्वांचल में उनकी सियासी तूती बोलता थी, लेकिन 2012 में उन्होंने बसपा का साथ छोड़कर बीजेपी का दामन थाम लिया और 2014 में श्रावस्ती से सांसद चुने गए. मौजूदा समय में श्रावस्ती के जिला पंचायत अध्यक्ष बने हैं.
मायावती की सरकार में प्रतापगढ़ में राजा भैया के खिलाफ मोर्चा खोलने वाले शिवप्रसाद सेनानी जिले के ब्राह्मण चेहरा हुआ करते थे. सेनानी तीन चुनाव कुंडा में राजा भैया के खिलाफ लड़े, लेकिन जीत नहीं सके. 2019 के लोकसभा चुनाव से ठीक पहले उन्होंने बसपा का दामन छोड़कर बीजेपी की सदस्यता ग्राहण कर ली. ऐसे ही प्रतापगढ़ के रानीगंज से 2007 में बसपा से विधायक बनने वाले शिरोमणि शुक्ला भी पार्टी छोड़कर चले गए थे, लेकिन एक बार फिर पार्टी में उनकी वापसी सतीश चंद्र मिश्रा ने हाल ही में कराई है.
मथुरा जिले के कद्दावर नेता पंडित श्याम सुंदर शर्मा जिले की मांट सीट से बसपा के टिकट पर विधायक रहे हैं, लेकिन उन्हें भी बाहर का रास्ता मायावती ने दिखा दिया था. बसपा सरकार में कानपुर से लेकर फर्रुखाबाद तक अंटू मिश्रा की सियासी तूती बोलती थी. अंटू मिश्रा बसपा के महासचिव सतीष चंद्र मिश्रा के रिश्तेदार थे. 2007 में हारने के बाद भी मायावती ने अंटू मिश्रा को स्वास्थ्य मंत्री बनाया था, लेकिन एनएचआरएम घोटाले में नाम आने के चलते उनकी कुर्सी छीन ली थी. इसके बाद अंटू मिश्रा ने पार्टी छोड़ दी थी.
सतीष चंद्र मिश्रा के रिश्तेदार पंडित रमेश शर्मा झांसी में बसपा के कद्दावर नेता माने जाते थे. मायावती सरकार में मंत्री भी रहे और लोकसभा चुनाव में भी किस्मत आजमाया. पंडित रमेश शर्मा और उनके बेटे अनुराग शर्मा का बसपा से मोहभंग हो गया और उन्होंने बीजेपी का दामन थाम लिया. हालांकि,रमेश शर्मा का निधन हो गया है, लेकिन अनुराग शर्मा झांसी से बीजेपी के सांसद हैं.
यूपी में 2014 से लेकर अभी तक बीजेपी को ब्राह्मण का समर्थन खूब मिल रहा है. यूपी में करीब 11 फीसदी ब्राह्मण हैं. साल 2017 यूपी विधानसभा में बीजेपी को 80 फीसदी ब्राह्मणों ने वोट किया था. यूपी में कुल 58 ब्राह्मण विधायक जीते, जिनमें 46 बीजेपी से जीते थे. सूबे के 56 मंत्रियों के मंत्रिमंडल में 9 प्रतिनिधि ब्राह्मण समुदाय से हैं. वहीं, 2012 विधानसभा में जब सपा ने सरकार बनायी थी तब बीजेपी को 38 फीसदी ब्राह्मण वोट मिले थे. सपा के टिकट पर 21 ब्राह्मण समाज के विधायक जीतकर आए थे.
बता दें कि 1993 में बसपा से महज एक ब्राह्मण विधायक था, लेकिन चुनाव दर चुनाव यह आंकड़ा बढ़ता गया. 2007 के यूपी चुनाव में सीएसडीएस की रिपोर्ट के मुताबिक सिर्फ 17 फीसदी ब्राह्मणों ने ही मायावती को वोट दिया था और इसमें से भी अधिकतर वोट बसपा को वहां मिले थे जहां उसने ब्राह्मण उम्मीदवार खड़े किए थे. बसपा ने 86 ब्राह्मणों को टिकट दिया था, जिनमें 41 बसपा से जीते थे और 15 मंत्री बने थे.
हालांकि, 2007 विधानसभा में बीजेपी को 40 फीसदी ब्राह्मण वोट मिले थे. ऐसे में ब्राह्मण बीजेपी से दूर जाने का फैसला करते हैं, तब भी बीएसपी को सपा और कांग्रेस से प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ेगा. कांग्रेस और सपा भी ब्राह्मण को लुभाने की कोशिश कर रही है तो बीजेपी उन्हें अपने पाले में रखने की हरसंभव कोशिश में जुटी हैं.