नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने आज चुनाव आयोग और केंद्र सरकार को नोटिस जारी करके पूछा है कि अगर किसी जगह ज्यादातर लोग चुनाव के समय वोटिंग मशीन पर NOTA यानि इनमें से कोई नहीं का बटन दबाते हैं तो क्या उस सीट का चुनाव रद्द होना चाहिए और नए सिरे से चुनाव होना चाहिए.
फिलहाल NOTA का चुनाव में कोई असर नहीं होता है. वो सिर्फ वोटर की नाराजगी जताने के लिए होता है. वोटर इसके जरिये बताते हैं कि उन्हें कोई भी प्रत्याशी नहीं पसंद और उन्होंने किसी को भी वोट नहीं दिया. दरअसल ये मामला राइट टू रिजेक्ट यानी सभी को खारिज करने के अधिकार से जुड़ा है.
इसी सिलसिले में चुनाव में NOTA का विकल्प दिया गया था. यानी अगर किसी वोटर को कोई भी कैंडिडेट पसंद नहीं है तो वो NOTA पर बटन दबाकर अपना मत दे सकता है. लेकिन NOTA का कोई महत्व नहीं होता. आज हुई सुनवाई में याचिकाकर्ता की वकील मानेका गुरुस्वामी ने कहा कि अगर 99 फीसदी वोटर NOTA पर बटन दबाते हैं तो भी उसका कोई महत्व नहीं है. बाकी के 1 फीसदी वोटर के मत ये तय करते हैं कि चुनाव कौन जीतेगा.
इसलिए इस जनहित याचिका में मांग की गई है कि अगर सबसे ज्यादा मत NOTA को पड़ते हैं तो उस जगह का चुनाव रद्द होना चाहिए. लोगों के मत का सम्मान होना चाहिए. इस पर मुख्य न्यायाधीश जस्टिस एसए बोबड़े ने कहा कि अगर ऐसा होता है तो उस जगह से कोई भी उम्मीदवार नहीं जीतेगा. यानी वो जगह खाली रह जाएगी. फिर सांसद या विधानसभा का गठन कैसे होगा.
इसके जवाब में गुरुस्वामी ने कहा कि अगर NOTA का मत ज्यादा होता है और कोई भी उम्मीदवार नहीं जीतता है तो वहां समयबद्ध तरीके से दोबारा चुनाव हो सकता है. ऐसे में सब नए उम्मीदवार चुनाव लड़ेंगे. इन सभी सवालों पर सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग और केंद्र सरकार से जवाब मांगा है. अब सुप्रीम कोर्ट तय करेगा कि NOTA का चुनाव में कोई महत्व होगा या नहीं. अगर सुप्रीम कोर्ट याचिका के हक में फैसला देता है तो चुनाव सुधार में ये एक ऐतिहासिक कदम होगा.