नई दिल्ली। केंद्रीय विदेश मंत्री सुब्रह्मण्यम जयशंकर ने भारत की विदेश नीति और विदेशी संस्थाओं द्वारा दी जा रही नकारात्मक रेटिंग को लेकर बड़ी बात कही है। उन्होंने ‘इंडिया टुडे कन्क्लेव‘ में राहुल कँवल के सवाल का जवाब दिया।
‘फ्रीडम हाउस’ नामक संस्था द्वारा भारतीय लोकतंत्र के ख़त्म होने की बात कही गई थी। इसी तरह स्वीडन के ‘फ्रीडम इंस्टिट्यूट’ ने भी इसी तरह की रेटिंग दी थी। कँवल का सवाल था कि संस्थाएँ भारत को लेकर ऐसा क्यों सोच रही?
केंद्रीय विदेश मंत्री ने जवाब देते हुए कहा कि अब जब ‘लोकतंत्र और एकतंत्र (डेमोक्रेसी एंड ऑटोक्रेसी)’ के रूप में भारत की व्यवस्था के लिए दो वर्गों में विभाजन कर के बातें की जा रही हैं, लेकिन, इसका सच्चा जवाब है – हिपोक्रिसी (दोहरा रवैया)। उन्होंने कहा कि दोहरा रवैया है कि दुनिया में कुछ संस्थाएँ हैं, जो खुद को विश्व का संरक्षक मानती हैं और उनके खुद के तय किए गए कुछ मापदंड हैं, जिसके आधार पर वो ऐसी टिप्पणियाँ करते हैं।
एस जयशंकर ने कहा कि ये संस्थाएँ इस चीज को नहीं पचा पा रही हैं कि भारत में कोई है, जो उनके अनुमोदन का मोहताज नहीं है और उनके द्वारा बताए गए खेल को खेलने से इनकार कर रहा है। उन्होंने कहा कि ये संस्थाएँ अपने नियम-कायदे बनाती हैं, खुद ही मापदंड तय करती हैं और खुद ही फैसले सुनाती हैं। बाद में यही संस्थाएँ ऐसा प्रदर्शित करती हैं, जैसे ये कोई बहुत बड़ी वैश्विक प्रक्रिया हो, जबकि ऐसा नहीं है।
एस जयशंकर ने कहा कि भारतीय जनता पार्टी (BJP) को वो लोग हमेशा ‘हिन्दू राष्ट्रवादी पार्टी’ कह कर सम्बोधित करते हैं और भाजपा नेताओं के लिए ‘नेशनलिस्ट’ कहा जाता है। उन्होंने याद दिलाया कि भारत के इन्हीं ‘राष्ट्रवादियों’ ने विश्व के 70 देशों को कोरोना वायरस की वैक्सीन मुहैया कराई है। उन्होंने कहा कि जब ‘नेशनलिस्ट’ ने 70 देशों को कोरोना वैक्सीन दी तो ‘इंटरनेशनलिस्ट’ देशों ने दुनिया को कितनी वैक्सीन दी है?
I am self assured about my country, I don’t need certificate from other countries who clearly have some agenda: @DrSJaishankar
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उन्होंने पूछा कि दुनिया के उन देशों में से किसी एक का नाम बताइए, जिसने ऐसा कहा कि वो अपने लोगों के लिए जो कर रहे हैं, वो अन्य देशों के लोगों के लिए भी करेंगे क्योंकि सभी को इसकी ज़रूरत है।
एस जयशंकर ने कहा कि अचानक से कुछ लोग आकर सिविल राइट्स के ख़त्म होने की बातें कर रहे हैं, जबकि इस देश में चुनाव पर सवाल नहीं उठते लेकिन क्या यही उन देशों के बारे में कहा जा सकता है?
उन्होंने कहा, “उन देशों की राजनीति को देखिए। आप कुछ भी कहिए, हम सब आस्था और मूल्यों में विश्वास रखते हैं लेकिन उन्हें अपने पद की शपथ लेने के लिए किसी धार्मिक पुस्तक के ऊपर हाथ नहीं रखना पड़ता। आप पता कर सकते हैं कौन सा देश ऐसा करता है। हम खुद पर विश्वास करते हैं। हमें बाहर से सर्टिफिकेट की ज़रूरत नहीं है। कम से कम उनसे तो निश्चित ही नहीं, जो एक एजेंडा लेकर चल रहे हैं।”
याद दिला दें कि स्वीडन स्थित वी-डेम (V-Dem) इंस्टीट्यूट ने अपनी रिपोर्ट में दावा किया है कि भारत अब ‘इलेक्टोरेल डेमोक्रेसी’ नहीं रहा, बल्कि ‘इलेक्टोरेल ऑटोक्रेसी’ बन गया है। कॉन्ग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गाँधी ने इसके आधार पर दावा कर डाला कि भारत अब लोकतांत्रिक देश नहीं रहा। उक्त संस्था में दो ऐसे भारतीय भी हैं, जो सीएए समेत मोदी सरकार की सभी नीतियों के हमेशा विरुद्ध रहते हैं।