नई दिल्ली। विदेश मंत्री एस जयशंकर ने गुरुवार को कहा कि SAARC को आतंकवाद तथा कारोबार एवं कनेक्टिविटी में बाधा उत्पन्न करने से जुड़ी तीन महत्वपूर्ण चुनौतियों का निपटारा करने की जरूरत है। विदेश मंत्री ने यह बात SAARC समूह की डिजिटल माध्यम से हुई अनौपचारिक बैठक में कही जिसे पाकिस्तान की आलोचना के रूप में देखा जा रहा है। SAARC विदेश मंत्रियों की अनौपचारिक बैठक को संबोधित करते हुए जयशंकर ने आतंक का पोषण, समर्थन और प्रोत्साहित करने वाली ताकतों सहित आतंकवाद की बुराई को परास्त करने के लिये सामूहिक संकल्प की जरूरत बताई।
विदेश मंत्री ने पड़ोस प्रथम की भारत की प्रतिबद्धता की पुन: पुष्टि की और एक दूसरे से जुड़े, समन्वित और समृद्ध दक्षिण एशिया की कामना की। इस बैठक में अन्य लोगों के अलावा पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने भी हिस्सा लिया। इसका आयोजन संयुक्त राष्ट्र महासभा की बैठक से इतर इस समूह के विदेश मंत्रियों के बीच विचारों के अनौपचारिक आदान प्रदान की परंपरा को जारी रखते हुए किया गया था। गौरतलब है कि संयुक्त राष्ट्र महासभा का 75वां सत्र अभी जारी है।
जयशंकर ने कहा कि SAARC ने पिछले 35 वर्षो में काफी प्रगति की है लेकिन सामूहिक सहयोग और समृद्धि की दिशा में प्रयास, आतंकवाद और राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरे से जुड़ी गतिविधियों के कारण प्रभावित हुए हैं। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अनुराग श्रीवास्तव ने उनका हवाला देते हुए कई ट्वीट के जरिये यह बात बताई। जयशंकर ने कहा कि ऐसे माहौल में पूर्ण क्षमता के अनुरूप हमारे सामूहिक प्रयास के जरिये साझा उद्देश्य हासिल करने में रूकावट आती है। इसलिये यह महत्वपूर्ण है कि हम आतंक का पोषण, समर्थन और प्रोत्साहिन करने वाली ताकतों सहित आतंकवाद की बुराई को परास्त करने के लिये सामूहिक संकल्प लें। विदेश मंत्री ने कहा कि ऐसे पहल से जरूरी विश्वास और भरोसा कायम होगा और मजबूत एवं समृद्ध दक्षेस का निर्माण किया जा सकेगा।
उन्होंने कहा कि सार्क को सीमापार आतंकवाद ,कारोबार एवं सम्पर्क में बाधा उत्पन्न करने से जुड़ी तीन महत्वपूर्ण चुनौतियों का निपटारा करने की जरूरत है। इसके बाद ही हम दक्षिण एशिया में टिकाऊ शांति, समृद्धि और सुरक्षा देख सकेंगे। गौरतलब है कि पाकिस्तान ने छह वर्ष पहले दक्षेस ढांचे के तहत महत्वपूर्ण सम्पर्क पहल तथा समूह के सदस्य देशों के बीच कारोबार के मार्ग को बाधित कर दिया था। SAARC 2016 के बाद से उतना प्रभावी नहीं रहा है और इसकी अंतिम बैठक 2014 में काठमांडो में हुई थी।