अभिरंजन कुमार
इस पेंटिंग पर बहुत विवाद हो रहा है। इसमें जिस तरह से मोदी जी को विशाल रूप में और श्री राम प्रभु को लघु रूप में दर्शाया गया है, उसे “रामलला” का चित्रण कहकर जस्टिफाई भी किया जा रहा है। यह सही है कि अयोध्या में मंदिर “रामलला” का ही बन रहा है। नारा भी यही दिया गया था कि “रामलला हम आएंगे, मंदिर वहीं बनाएंगे”, लेकिन “रामलला” को इस मंदिर में “महामानव” मोदी जी अपनी उंगली पकड़ाकर इस तरह से ले जाएंगे, ऐसा दिखाना और कुछ नहीं, बल्कि राजनीतिक चापलूसी का एक सटीक नमूना है। वैसे ही जैसे “हर हर मोदी” नारे में भी चापलूसी का चरम दिखाई दिया था।
इसमें श्रद्धा, मान्यता और रचनात्मकता कम, चापलूसी अधिक दिखाई दे रही है। सच पूछिए, तो जिस भी नेता ने यह तस्वीर पोस्ट की है, उसे हड़बड़ी है, जल्द से जल्द मोदी जी की कृपा हासिल कर लेने की।
मुझे यकीन है कि भाजपा नेतृत्व या स्वयं नरेंद्र मोदी भी इस तरह की चापलूसी से सहज नहीं महसूस करते होंगे। मोदी जी को तो आज हमने भगवान श्री राम के सामने साष्टांग दंडवत देखा, इसलिए मुझे नहीं लगता कि सूक्ष्म रूप धरे श्री राम प्रभु को विराट रूप में दर्शन देने की उनकी कोई लालसा होगी।
इसलिए भाजपा नेतृत्व को चाहिए कि ऐसे चापलूसों को हतोत्साहित करें।