नई दिल्ली। बीती रात भारतीय क्षेत्र गलवन में चीन के जवानों से हुई झड़प के बाद दो भारतीय जवानों के शहीद होने के बाद सीमा पर तनाव बढ़ गया है। ये सब कुछ ऐसे समय में हुआ है जब कुछ ही दिन पहले चीन ने अपने जवानों को इस क्षेत्र से करीब डेढ़ किमी पीछे बुला लिया था। इन बदले हालातों के बाद केंद्र में उच्चस्तरीय बैठकों का दौर भी चल रहा है। आपको बता दें कि जिस क्षेत्र में यह घटना हुई है वो पूरा इलाका सामरिक दृष्टि से बेहद संवेदनशील है। हालांकि ये पहली बार नहीं है कि चीन की तरफ से भारतीय सीमा में घुसपैठ की कार्रवाई की गई हो, वह पहले भी इस तरह की कार्रवाई को अंजाम दे चुका है, जिसका भारत ने भी हर बार मुंह तोड़ जवाब दिया है।
आपको बता दें कि गलवन क्षेत्र इस पूरे इलाके में सबसे ऊंचाई पर है। यहां से काफी दूरी तक नजर रखी जा सकती है। इसके अलावा यहां से उस सड़क को भी आसानी से निशाना बनाया जा सकता है जहां से भारतीय सेना के जवान और रसद आदि की सप्लाई होती है। इसके उत्तर में दौलत बेग ऑल्डी सेक्टर है, जो भारतीय सीमा के अंदर का क्षेत्र है और जहां पर पहले भी चीन की तरफ से घुसपैठ की कोशिश हो चुकी है। ये यहां से करीब 102 किमी की दूरी पर स्थित है और यहां के बीच की दूरी करीब 3-4 घंटे के बीच तय होती है। इससे कुछ दूर उत्तर में भारत की सीमा चीन के शिजिंयाग प्रांत से लगती है। इसके दक्षिण में पैंगॉन्ग शॉ मौजूद है जो करीब 200 किमी दूर है और ये रास्ता करीब 6-7 घंटे का है। पैंगॉन्ग शॉ भी उन्हीं जगहों में से एक जगह है जहां पर चीनी जवानों ने पहले भी कई बार घुसपैठ की कोशिशों को अंजाम देने की कोशिश की है। आपको यहां पर ये भी बता देते हैं कि यहां स्थित पैंगॉन्ग लेक का एक हिस्सा भारत में है तो दूसरा हिस्सा चीन में आता है। गलवन से हॉट पनामिक हॉट स्प्रिंग की दूरी भी करीब 130 किमी है। ये तीनों ही जगह वो हैं जो सामरिक दृष्टि से काफी अहम हैं।
गलवन की ऊंचाई इतनी अधिक है कि यहां पर हर वक्त सैनिकों की मौजूदगी नहीं रहती है। सर्दियों में जब यहां पर पूरे क्षेत्र में भीषण बर्फबारी होती है तब भारतीय सैनिक वहां से निचले इलाकों में आ जाते हैं। रिटायर्ड मेजर जनरल जीडी बख्शी के मुताबिक यहां पर हर रोज जवानों की पेट्रोलिंग भी नहीं होती है। इसका ही फायदा चीन की तरफ से इस बार उठाया गया था और वो भारतीय सीमा के अंदर दाखिल हो गए थे। उनकी मंशा यहां पर कब्जा कर इस पूरे इलाके में भारतीय सेना की आवाजाही पर निगाह रखना था। चीन की तरफ से इस खतरनाक प्लान को अंजाम दिया गया उसके मुताबिक वे कारगिल की ही तर्ज पर काम कर रहे थे1