नई दिल्ली। भारत और चीन (India and China) के सैनिकों के बीच पूर्वी लद्दाख में भीषण तनातनी के बीच रूस ने उम्मीद जताई है कि दोनों देश विवाद को शीघ्र हल कर लेंगे और दोनों देशों के बीच ‘रचनात्मक’ संबंध क्षेत्रीय स्थिरता के लिए बेहद जरूरी है.
रूसी दूतावास के उपप्रमुख रोमन बाबुश्किन ने कहा कि रूस को पूर्वी लद्दाख में सीमा विवाद का ‘सकारात्मक हल’ निकलने की उम्मीद है.
बाबुश्किन ने कहा,’ दो महान सभ्यताओं के बीच शांतिपूर्ण पड़ोस के खातिर हम सकारात्मक घटनाक्रम की उम्मीद करते हैं. स्थिरता और सतत विकास पर क्षेत्रीय संवाद को बढ़ावा देने के लिए हमारे भारतीय और चीनी दोस्तों के बीच रचनात्मक संबंध बेहद महत्वपूर्ण हैं.’
उन्होंने कहा कि रूस शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ),ब्रिक्स और रूस-भारत-चीन त्रिपक्षीय फोरम की आने वाली बैठकों में भारत और चीन के बीच अपने संवाद को और बढ़ाने की उम्मीद करता है.
भारत और चीन के सैनिकों के बीच करीब एक माह से पूर्वी लद्दाख में वास्तवित नियंत्रण रेखा पर गहरा तनाव चल रहा है. दोनों देश विवाद को हल करने के लिए सैन्य और कूटनीतिक स्तर पर बातचीत कर रहे हैं.
यह पूछे जाने पर कि क्या रूस में कोरोना वायरस संकट के कारण भारत को एस-400 मिसाइल प्रणाली मिलने में और देरी हो सकती है, बाबुश्किन ने कहा कि महामारी को देखते हुए सैन्य अनुबंधों के क्रियान्वयन में कुछ विलंब हो सकता है.
उन्होंने कहा,’ जब बात सैन्य और प्रौद्योगिकी सहयोग सहित अनुबंधों पर क्रियान्वयन की आती है तो कोविड-19 पाबंदियों के कारण कुछ देर होना लाजमी है. हालांकि दोनों पक्ष सभी वर्तमान समझौतों के समयबद्ध क्रियान्वयन के लिए प्रतिबद्ध हैं, जिसमें भारत को एस-400 प्रणाली की आपूर्ति शामिल है.’
भारत ने ट्रम्प प्रशासन की चेतावनी के बावजूद अक्टूबर 2018 में रूस के साथ एस-400 हवाई रक्षा मिसाइल प्रणाली की पांच इकाइयों की खरीद के लिए रूस के साथ पांच अरब डॉलर के समझौते पर हस्ताक्षर किए थे.
पिछले साल भारत ने मिसाइल प्रणाली के लिए रूस को पहली किस्त के रूप में लगभग 80 करोड़ डॉलर का भुगतान किया था.
रूस के ‘फेडरल सर्विस फॉर मिलिट्री-टेक्निकल कोऑपरेशन (एफएसएमटीसी) के उपनिदेशक व्लादिमीर ड्रोज़ज़ोव ने फरवरी में कहा था कि मास्को 2021 के अंत तक भारत को सतह से हवा में मार करने वाली एस-400 मिसाइल प्रणाली की आपूर्ति शुरू कर देगा और परियोजना के क्रियान्वयन में कोई देरी नहीं होगी.
भारत, रूस, ऑस्ट्रेलिया और दक्षिण कोरिया को शामिल करते हुए जी7 समूह के विस्तार के अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प के विचार के बारे में पूछे जाने पर, बाबुश्किन ने कहा कि यह समूह अपना वक्त पूरा कर चुका है और जी20 जैसे समूह विश्व के सामने जो प्रमुख चुनौतियां हैं उनसे निपटने के सक्षम हैं.
उन्होंने कहा,’राष्ट्रपति ट्रम्प के इस प्रस्ताव के संबंध में हाल ही में उनके और राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के बीच टेलीफोन पर चर्चा हुई थी. इस पहल पर गौर करते हुए हमारी राय यह है कि जब बात वैश्विक चुनौतियों और वैश्विक शासन की आती है, तो ऐसा प्रतीत होता है कि जी7 अब पुराना हो गया है और जी20 जैसे अधिक प्रतिनिधियों वाले तंत्र की आवश्यकता है.’