दयानंद पांडेय
आप मत मानिए लेकिन मेरा स्पष्ट मानना है कि तीसरा विश्वयुद्ध शुरू हो चुका है। चीन ने बिस्मिल्ला कर दिया है। कोरोना इस तीसरे विश्वयुद्ध की पूर्व पीठिका है। भारत में पहले तबलीगियों और मज़दूरों के मार्फत अस्थिरता का माहौल बनाने में वह पूरी तरह कामयाब रहा है। भाजपाई पाकिस्तान , मुसलमान करते रह गए। लेकिन कम्युनिस्टों के मार्फत चीन ने यह अस्थिरता बिलकुल ब्रिटिशर्स की तरह बड़ी संजीदगी से की है। बिना किसी शोर शराबे के। नेपाल को वह टूल बना ही चुका है जिस का ऐलान भारत के कम्युनिस्ट बड़ी शान से कर भी रहे हैं। कांग्रेस इस पूरे दृश्य में अब कठपुतली सरीखी है। ट्रेन-ट्रेन , बस-बस खेलने लायक। हमारे मज़दूर , तुम्हारे मज़दूर का लूडो खेलने लायक। मुख्य मीडिया में खबरें खामोश हैं लेकिन चीनी सीमा पर फ़ौज दोनों तरफ से मुस्तैद हो रही हैं। लेकिन युद्ध सिर्फ फ़ौज के बूते तो नहीं जीते जाते। हवा , पानी , केमिकल , जैविक , आदि-इत्यादि तमाम फैक्टर आ चुके हैं। परमाणु वगैरह का बाहुबल अलग है।
अमरीका और चीन आमने-सामने हैं। मूल में कोरोना ही है लेकिन लक्ष्य पर व्यवसाय है। दोनों ही व्यवसायी हैं। लेकिन अमरीका के साथ यह है कि वह सब कुछ बर्दाश्त कर सकता है लेकिन अपने नागरिकों और सैनिकों की मौत नहीं। किसी कीमत नहीं। अमरीका लगभग मान बैठा है कि कोरोना , चीन ने अमरीका को तबाह करने के लिए ही तैयार किया है। बाकी दुनिया तो गेहूं में घुन की तरह पिस रही है। सो अमरीका , चीन को जैसे भी हो सबक सिखाने पर आमादा है। सबक सिखाने के लिए वह चीन से सीधे लड़ने के बजाय भारत के कंधे पर बंदूक रख कर लड़ने की मनोवैज्ञानिक कसरत पर अभी लगा हुआ है। लेकिन ट्रंप के शब्दों में हो जो कहें तो नरेंद्र मोदी जैसे टफ़ निगोशिएटर से उस का पाला पड़ा है। आप ध्यान दीजिए कि तमाम मुश्किलों और तबाही के बावजूद मोदी ने भूल कर भी चीन के खिलाफ एक भी लफ्ज नहीं कहा है। मोदी अमरीका के साथ भी हैं और चीन के साथ दुश्मन हो कर भी दुश्मन नहीं बन रहे।
आप की दिल्ली में ही जब गद्दार बैठे पड़े हैं और खुल्ल्मखुल्ला विज्ञापन दे कर दिल्ली की प्रदेश सरकार सिक्किम को भारत से बाहर बता देती है तो कुछ कर लेंगे आप ? कायदे से इतने पर तो दिल्ली की प्रदेश सरकार बर्खास्त कर दी जानी चाहिए थी। लेकिन दिल्ली सरकार के खिलाफ कोई कुछ बोला क्या ? अच्छा दिल्ली सरकार ने भी संबंधित कर्मचारी को जेल भेजा क्या ? सिर्फ निलंबन ही इस की सज़ा होती है क्या ? नहीं जानते तो जान लीजिए कि कानून की राय में निलंबन कोई सजा नहीं होती। तो मुश्किलें एक नहीं , अनेक हैं। दुनिया कोरोना की गोद में ही नहीं , सचमुच विश्व युद्ध के मुहाने पर बैठी है। यक़ीन मानिए कि भारत देश में अगर इस समय लालबहादुर शास्त्री जैसा कोई ईमानदार लेकिन कमज़ोर दिल वाला , अनुभवहीन और नान डिप्लोमेट प्राइम मिनिस्टर होता तो अमरीका अब तक भारत के कंधे पर अपनी बंदूक़ रख कर चीन की तरफ चला चुका होता। और भारत तीसरे विश्व युद्ध का कुरुक्षेत्र बन चुका होता। कहिए कि देश का सौभाग्य है मोदी जैसा कठोर हृदय वाला , एक परम घाघ किस्म का प्राइम मिनिस्टर है जो न सिर्फ बतर्ज ट्रंप , टफ़ निगोशिएटर है बल्कि सामरिक और आर्थिक रूप से दोनों से ही कमज़ोर होने के बावजूद एक ही तराजू पर ट्रंप और शी जिनपिंग को बड़ी शालीनता से नाप-तौल रहा है। और यह बात ट्रंप और शी जिनपिंग दोनों ही को मालूम है। पर डिप्लोमेसी के तराजू पर दोनों को नाप-तौल कर , इस तरह सीधे-सीध तीसरे विश्व युद्ध में भारत को औजार और ज़मीन बनने से बचाए हुए है। भारत का कंधा अमरीकी बंदूक चलाने के लिए नहीं पेश कर रहा है। तो दूसरी तरफ देश में कांग्रेस , कम्युनिस्ट और मुस्लिम समाज के औरंगजेबी गठबंधन को तार-तार करता हुआ देश को गृह युद्ध में झोंकने की साज़िश से भी बचाए हुए है।
मोदी की डिप्लोमेसी को आप चाहे जैसे देखें , आप का अपना विवेक है। पर हम तो ऐसे ही देखते हैं जैसे किसी ऊंची पर्वतमाला पर तन कर खड़ा हुआ देवदार वृक्ष। देवदार वृक्ष की तरह पर्वत पर तन कर खड़ा रहना नहीं जानते नरेंद्र मोदी और उन की डिप्लोमेसी तो कांग्रेस , कम्युनिस्ट और मुस्लिम समाज के नापाक औरंगजेबी गठबंधन की साज़िशों से भले वह बारंबार बच कर निकल आते पर अमरीका और चीन जैसी महाशक्तियों के हाथ अब तक साफ़ ज़रूर हो गए होते। तो इस विकल , विरल समय और संयोग को एक साथ प्रणाम कीजिए कि गृह युद्ध और विश्व युद्ध की दुरभि संधियों की पर्वतमाला में देवदार की तरह तन कर खड़े भारत को नरेंद्र मोदी जैसा प्रधान मंत्री बना कर उपस्थित किया है। जिसे डिप्लोमेसी का न सिर्फ डंक मारना आता है बल्कि बड़े-बड़ों को नाथ कर उन को अपनी लगाम में बांधना भी आता है। उन का जहर उतारना भी आता है। कालिया नाग को जिस तरह श्रीकृष्ण ने अपने बाल्य-काल में भी काबू किया था और उस का जहर उतारा था। ठीक उसी तरह। सिर्फ देश के मज़दूर और लोग ही नहीं , देश भी सचमुच बहुत कठिन दौर में है। कोरोना से भी बड़ी कठिनाइयों में घिरा हुआ है देश। इस बात को भी समझने की बहुत ज़रूरत है। इस कठिन दौर से निकलने में समूचे देश को साथ एकजुट हो कर चलना होगा। लेकिन लोग इस बात को समझना कहां चाहते हैं भला। अभी कुछ छिटपुट गिरफ्तारियां इस कोरोना काल में भी शुरू हुई हैं। तो अनायास नहीं समझिए इसे। समझिए कि किसी तैयारी को तार-तार करने के लिए हुई हैं। अभी और हो सकती हैं।