पिछले कुछ समय में फर्जी खबरों को फैलाने में मुख्यधारा मीडिया ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इस बात के पर्याप्त सबूत हैं कि फेक न्यूज फैलाने के पीछे उनका मुख्य उद्देश्य द्वेष के अतिरिक्त कुछ नहीं हेता। द प्रिंट ने आज इसी बात को साबित करते हुए अपनी वेबसाइट पर एक लेख प्रकाशित किया है। जिसका लब्बोलुबाब यह है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को हराने के लिए विपक्ष फेक न्यूज फैलाए।
इस लेख में मुख्यत: इस बात पर जोर दिया गया कि लिबरलों को/विपक्षियों को नरेंद्र मोदी के खिलाफ़ छिड़ी जंग में किस प्रकार फेक न्यूज को बढ़ावा देना चाहिए। इस लेख में अपनी बातों को सही ठहराने के लिए द प्रिंट ने अमेरिकी थिंक-टैंक रैंड कॉर्पोरेशन के लिए लिखे गए क्रिस्टोफर पॉल और मिरियम मैथ्यूज के एक लेख का हवाला दिया है।
प्रिंट के लेख में तर्क दिया गया कि पूरे विश्व में आज झूठ को तेजी से फैलाना प्रोपेगेंडा फैलाने का सबसे शक्तिशाली उपकरण बनता जा रहा है। इसलिए जो लोग इस प्रोपेगेंडा को हराना चाहते हैं, उन्हें अपने झूठ को आग की तरह फैलाना होगा। जैसे हिंदी में कहते हैं कि लोहा ही लोहे को काटता है। जब जनता के मत को फर्जी खबरों और झूठों से बरगलाया जा रहा है, उस समय विपक्ष फैक्ट चेक करके पूरा खेल नहीं जीत सकता।
बता दें, इस लेख में हालाँकि, अपनी सारी बातें द प्रिंट ने सकारात्मक रूप से दर्शाने की कोशिश की है। लेकिन वास्तविकता में उनका क्या मतलब है इस बात को अच्छे से समझा जा सकता है।
द प्रिंट का ये लेख इतने बिंदुओं पर नहीं खत्म होता। लेख में अंत तक आते-आते अभिव्यक्ति की आजादी पर प्रतिबंध लगाने व राजनैतिक विरोधियों पर कार्रवाई करने का आह्वान की बात शामिल कर ली जाती है। साथ ही इस लेख में विपक्षियों को सुझाव दिया जाता है कि वे अपने विरोधियों के झूठ की श्रृंखला पर प्रहार करें।
लेखक चरणबद्ध तरीके से समझाता है कि कैसे विपक्षियों को हराया जा सकता है। वह कहता है कि अगर विपक्षी शासित राज्य अपने राज्यों में फर्जी खबरों और सांप्रदायिक घृणा फैलाने वालों पर शिकंजा नहीं कस रहे तो वह बहुत बड़ी गलती कर रहे हैं।
अब ये ध्यान देने वाली बात है कि ‘हेट स्पीच’ का मतलब जरूरी नहीं एक व्यक्ति के लिए जो हो, वहीं दूसरे व्यक्ति के लिए भी हेट स्पीच कहलाए। दरअसल, हर व्यक्ति अपने मतों के हिसाब से किसी की बातों को हेट स्पीच कहता है और सरकार भी अपना राजनैतिक पलड़ा देखते हुए इसकी परिभाषा तय करता है।
उदाहरण के लिए अर्नब गोस्वामी के केस में यही हुआ। जहाँ कॉन्ग्रेस पॉर्टी ने सोनिया गाँधी पर सवाल उठाए जाने को कम्यूनल वॉयलेंस यानी साम्प्रदायिक हिंसा करार दे दिया। साथ ही जहाँ-जहाँ कॉन्ग्रेस शासित राज्य थे, वहाँ उन पर शिकायत दर्ज हो गई और कार्रवाई की माँग उठने लगी। आज शेखर गुप्ता का द प्रिंट अपने इस लेख के जरिए जिन बातों को तर्कों में गढ़कर समझा रहा है, उसका निष्कर्ष यही है कि कैसे राजस्थान और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में नरेंद्र मोदी के समर्थकों को दबाया जाए।
यहाँ स्पष्ट तौर पर बता दें कि मुख्यधारा मीडिया जो पिछले समय से फर्जी की खबरें फैला रहा है, वे केवल राजनीति के एक धड़े को फायदा फहुँचाने के लिए है। जाहिर है वो धड़ा भाजपा का नहीं है। इस काम में पिछले कुछ समय में शेखर गुप्ता का द प्रिंट सबसे आगे रहा है और अब तो इसके पीछे की वजह भी साफ हो गई है।
द प्रिंट तमाम झूठ फैलाने के बाद अपनी नैतिक श्रेष्ठता पर इतना आश्वस्त है कि लेख से ऐसी बातें बताने की कोशिश कर रहा है कि विपक्ष के पास राजनैतिक उद्देश्यों को हासिल करने के लिए फेक न्यूज फैलाने की आज़ादी है और वे इसका इस्तेमाल कर सकते हैं।
याद दिला दें, द प्रिंट के लिए इस लेख को लिखने वाले शिवम विज वही पत्रकार हैं, जिन्होंने एक समय में कश्मीरी पंडितों के नरसंहार को व्हॉइटवॉश करने की कोशिश की थी। अब इस लेख को पढ़कर भी यही लगता है कि मीडिया गिरोह में शिवम से लेकर शेखर गुप्ता तक के लिए फर्जी न्यूज फैलाना तब तक उचित है, जब तक इसका उपयोग नरेंद्र मोदी और हिंदुत्व को हराने के लिए किया जाए।