विशेष संवाददाता
नई दिल्ली । स्वीडन ने कोविड-19 महामारी से निपटने के लिए लॉकडाउन लागू नहीं किया। अब दुनिया उसके देखा-देखी चरण-दर-चरण लॉकडाउन हटाने में लगी है। इसके पीछे की सोच है कि इससे अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने में मदद तो मिलेगी ही, इससे कोरोना वायरस के प्रति ‘हर्ड इम्यूनिटी’ विकसित करने की थिअरी को भी परखा जा सकेगा। भारत में भी लॉकडाउन 3.० की शुरुआत से ही कई तरह की कारोबारी गतिविधियों और सेवाओं की छूट दे दी गई है। ऐसे में यह गंभीर सवाल उठ रहा है कि क्या भारत भी ‘हर्ड इम्यूनिटी’ विकसित करने की राह पर चल पड़ा है? और, अगर ऐसा है तो क्या भारत इतना बड़ा रिस्क लेने का लायक भी है या नहीं?
इसकी पड़ताल के लिए एक स्कैंडेनेवियाई देश स्वीडन में कोरोना संकट में उठाए गए कदमों का जिक्र जरूरी है। स्वीडन ने कोविड-19 की धमक मिलते ही अपने यहां कॉलेज और हाई स्कूल बंद कर दिए, लेकिन 9वीं कक्षा तक के स्कूल खुल रखे। इतना नहीं, वहां रेस्त्रां, स्टोर, पब, बार और अन्य कारोबार कभी बंद नहीं हुए। वहां की सरकार ने सोशल डिस्टैंसिग गाइडलाइंस जारी की, लोगों को घरों से काम करने को प्रोत्साहित किया और गैर-जरूरी यात्रा करने से बचने की सलाह दी।
हमारे यहां करीब डेढ़ अरब की आबादी का 1०% हिस्सा भी संक्रमित हो गया तो उचित इलाज की तो छोड़ दीजिए, अस्पतालों में बेड तक नहीं मिल पाएंगे। तब देखभाल के अभाव में कोविड-19 मरीजों की लाशें बिछ सकती हैं।
वहां पाबंदी के नाम पर 7० साल से ऊपर के बुजुर्गों को घर से निकलने पर रोक लगी और 5० से ज्यादा लोगों के इकट्ठा होने को प्रतिबंधित किया गया। स्वीडन में कोविड-29 मरीजों की मृत्यु दर 12% से ज्यादा है। यही आंकड़ा भारत को डराने वाला है। अगर यहां स्वीडन की तरह ही आंशिक लॉकडाउन होता और स्वीडन की तरह ही यहां भी मृत्यु दर होती तो अब तक देश में करीब 7 हजार मौतें हो चुकी होतीं। शुक्र है कि भारत में 3० अप्रैल को कोविड मरीजों की मृत्यु दर 3.2 प्रतिशत थी जो मंगलवार को 3.4 प्रतिशत पर ही पहुंच पाई। हालांकि, ध्यान देने योग्य तथ्य है कि अगर संपूर्ण लॉकडाउन नहीं होता तो देश में मरीजों की तादाद अब तक 5० हजार के नीचे नहीं होती।
भारत में कोरोना वायरस के सोशल ट्रांसमिशन की अब तक पुष्टि तो नहीं हुई है, लेकिन अगर संस्थान खुले तो क्या वर्कप्लेस ट्रांसमिशन का खतरा पैदा नहीं होगा? स्वीडन में अगर हर्ड कम्यूनिटी विकसित होने की जगह वायरस ने तांडव कर भी दिया तो उसे संभालने के लिए वहां हमसे पांच गुना सुविधा है। स्वीडन में प्रत्येक 1,००० आबादी पर 2.4 गंभीर रोगों के इलाज की दृष्टि से हॉस्पिटल बेड हैं। हमारे यहां करीब डेढ़ अरब की आबादी का 1०% हिस्सा भी संक्रमित हो गया तो उचित इलाज की तो छोड़ दीजिए, अस्पतालों में बेड तक नहीं मिल पाएंगे। तब देखभाल के अभाव में कोविड-19 मरीजों की लाशें बिछ सकती हैं। उस मंजर की कल्पना भी नहीं की जा सकती है।
पर यह भी सोचिये कि हम स्वीडन नहीं हो सकते
स्वीडन की आबादी 1.25 करोड़ के आसपास है, वहां संपूर्ण लॉकडाउन नहीं होने की स्थिति में कोविड मरीजों की मृत्यु दर 12% के पार पहुंच सकती है तो भारत की हालत क्या होगी, इसकी कल्पना करके ही रूह कांप जाती है। ऐसा इसलिए क्योंकि स्वीडन में न केवल आबादी बहुत कम है बल्कि भारत के मुकाबले ज्यादा सजग भी है। वहां, सरकार के निर्देशों का बड़ै पैमाने पर पालन भी हुआ, लेकिन क्या भारत में ऐसा संभव है?