प्रभात रंजन दीन
शाहीनबाग सुनियोजित षड्यंत्र है… पूरे देश को यह समझ में आ गया है… देश को टुकड़ों में बांटने की तकरीरें आप सुन रहे हैं न..! यही है इनकी असलियत। यह है भारतीय संविधान के प्रति उनका सम्मान। और यह है बाबा साहब अम्बेडकर की तस्वीरें लेकर धरना पर बैठने की उनकी धूर्त-रणनीति। संविधान की हिफाजत के नाम पर देश तोड़ने का षड्यंत्र। देश के एक हिस्से (असम) को मुर्गी की गर्दन बता कर उसे तोड़ने का सार्वजनिक ऐलान… यह है संविधान का सम्मान..! स्वधर्मी-स्वार्थ और परधर्मी घृणा में रोम-रोम लिप्त अधिसंख्य मुसलमानों की तो बात ही छोड़ दीजिए… खंड-खंड पाखंड में पगे नस्लदूषित प्रगतिशीलों पर जरूर ध्यान दीजिए। इस जमात के किसी भी व्यक्ति को सुना आपने, जिसने देश तोड़ने का सार्वजनिक ऐलान करने वाले को धिक्कारा हो..? नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) की संविधान-सम्मत मानवीय-अनिवार्यता के बारे में कुछ कहिए तो दुर्बुद्धिजीवी बिलबिलाने लगते हैं, लेकिन असम को मुर्गी की गर्दन की तरह तोड़ डालने की सार्वजनिक बकवास करने वाले राष्ट्रद्रोही-जेएनयू के पूर्व छात्र षड्यंत्रकारी शरजील इमाम के बयान पर इनकी शातिराना चुप्पी देखिए… हम आम लोग यह देख सकते हैं और इस पर कुछ बातें लिख-बोल सकते हैं। लेकिन जिनके हाथ में न्याय है, जिनके हाथ में सत्ता है, राष्ट्रद्रोह रोकना जिनकी जिम्मेदारी है, वे भी देश के खिलाफ खुलआम हो रही गद्दारी को सियासत के तराजू पर ही तौलने में लगे हैं। हम आप कुछ बोलें तो फौरन कार्रवाई, फौरन मुकदमा, फौरन जेल… लेकिन सड़क पर उनका खुला राष्ट्रद्रोह, आम लोगों के अधिकार का खुला हनन और सार्वजनिक सम्पत्ति पर खुलेआम कब्जा और नुकसान पर भी अदालत से लेकर सरकार तक मौन..! अदालत का रवैया देखिए, छोटी-छोटी बातों पर संज्ञान लेकर आदेश जारी करने वाली अदालत शाहीनबाग-षड्यंत्र पर किस तरह ‘डिप्लोमैट’ हो जाती है… इसे पूरे देश ने देखा और दिल्ली वाले तो इस न्यायिक-कूटनीतिक-विरोधाभास को भोग ही रहे हैं। अदालत और सरकार की इसी संदेहास्पद ‘डिप्लोमैसी’ से शह पाए लोग लखनऊ का घंटाघर, पटना का सब्जीबाग, कलकत्ता का पार्क-सर्कस घेर कर बैठ गए और देशविरोधी सर्कस करने लगे।
हम एक विचित्र काल-खंड से गुजर रहे हैं। इस युग में सारी नकारात्मक ताकतें एक मंच पर प्रपंच करती मिल जाएंगी, लेकिन सकारात्मक ताकतें एकजुट नहीं हो रहीं। अब सत्ता और सरकारों से उम्मीद छोड़िए। अब खुद तय करिए कि भारतवर्ष को एक रहना है या कि फिर एक और पाकिस्तान बनने देना है। आप गौर करिए, जबसे कश्मीर से अनुच्छेद-370 हटा और पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (पीओके) पर कब्जे की बात होने लगी… तबसे धर्मांध मुसलमान भारत के खिलाफ माहौल बनाने लगे और नस्लदूषित-प्रगतिशील तत्व इन्हें उकसावा देने लगे। आप ध्यान से इस बात पर सोचिए… ये जो सीएए पर छाती पीटते अंध-धर्मी मुसलमान दिख रहे हैं, उनके बारे में किसी गलतफहमी में मत रहिए, यह डरी हुई या नासमझ जमात नहीं है। यह बहुत शातिर और धूर्त जमात है… उसे पता है कि सीएए से भारत में रहने वाले मुसलमान-नागरिकों का कोई लेना-देना नहीं। उसे पता है कि सीएए पाकिस्तान-बांग्लादेश-अफगानिस्तान में मुसलमानों ने गैर-मुस्लिमों पर जो कहर ढाए उन पीड़ितों को भारत की नागरिकता दिलाने वाला कानून है। यह जमात जानती है कि पाकिस्तान, बांग्लादेश और म्यांमार में गैर-मुस्लिमों पर अनाचार करके भारत में अवैध तरीके से आकर रह रहे मुसलमान घुसपैठियों को जाना होगा। जिन पाकिस्तानियों, बांग्लादेशियों और रोहिंगियाओं को उन्होंने इतने दिन अपने घरों-मोहल्लों में शरण देकर रखा, उन्हें पाला-पोसा, अपना रिश्तेदार बनाया, उन्हें अब भारत छोड़ कर जाना ही होगा… यह छाती दरअसल इसीलिए पीटी जा रही है। भारत पूरी दुनिया में पाकिस्तान विरोधी माहौल बनाने में जुटा है तो भारत का मुसलमान पूरी दुनिया में भारत विरोधी माहौल बनाने में जुटा है… इस शातिर षड्यंत्र को ठीक से समझिए। भारत का धर्मांध मुसलमान किसी भ्रम में नहीं है, भारत का देशभक्त आम नागरिक भ्रम में है। बताया ठीक उल्टा जा रहा है।
देश को धर्मांधता से अधिक दुर्बौद्धिकता से खतरा है… यही दुर्बुद्धिजीवी तत्व हैं जो इतिहास से लेकर संविधान तक की दूषित-व्याख्या परोसते रहे हैं और पीढ़ी दर पीढ़ी को दिग्भ्रमित करते रहे हैं। ये अलग-अलग किस्म की खाल ओढ़े दिखते हैं, लेकिन इनकी नस्ल एक जैसी है। ये मानवाधिकार की बातें करेंगे, लेकिन कश्मीरी पंडितों, सिखों और गैर-मुस्लिमों के संहार और बलात्कार पर चुप्पी साधे रहेंगे। ये सर्वहारा के हित की बात करेंगे, लेकिन सत्ता-दलालों के साथ मिल कर खदानों के पट्टे हथियाएंगे, बेशकीमती वस्त्र और घड़ियां पहन कर फोटो खिंचवाएंगे और समता की तकरीरें गढ़ कर सोशल मीडिया के जरिए समाज में विष फैलाएंगे। सच बोलने-लिखने वालों को ये तत्व कभी सत्ताई तो कभी भाजपाई कह कर उन्हें अलग-थलग (isolate) करने का कुचक्र करेंगे, पर खुद सत्ताधारी नेताओं के साथ फोटो खिंचवा कर गौरवान्वित होंगे। ये संविधान को ढाल बनाएंगे, लेकिन संविधान का ही सार्वजनिक मान-मर्दन करेंगे। ये देश-विरोधी शक्तियों के धन पर पलेंगे और भारत को छिन्न-भिन्न करने का उपक्रम करते रहेंगे। इन्हीं नस्लदूषित दुर्बुद्धिजीवियों ने शाहीनबाग-षड्यंत्र में संविधान और बाबा साहब अम्बेडकर की फोटो को ढाल बनाने की रणनीति अपनाई। इन षड्यंत्रकारियों ने अपने इस अभियान में धर्मांध मुसलमानों के साथ-साथ दलितों का भी साथ लेने का तानाबाना बुना। लेकिन नाकाम रहे। ठीक उसी तरह जैसे समझदार शिया मुसलमानों ने अपने आपको इस षड्यंत्र से अलग रखा।
आप संविधान-सम्मत कोई बात करें तो सारे महामूर्खाधपति मिल कर आपके संविधान-ज्ञान को चुनौती देने लगेंगे। आज 26 जनवरी है… आज ही के दिन 1950 को भारत का संविधान लागू किया गया था। 26 जनवरी की तारीख इसलिए चुनी गई क्योंकि वर्ष 1930 में इसी दिन कांग्रेस ने भारत को पूर्ण-स्वराज घोषित करने का प्रस्ताव पारित किया था। धर्म के नाम पर देश बांटने पर आमादा मुस्लिमों और मुस्लिम-लीग ने पूर्ण-स्वराज के प्रस्ताव का विरोध किया था। वही नस्लें अपनी सुविधा के कुछ शब्द संविधान से चुन कर बाबा साहब अम्बेडकर की फोटो लेकर शाहीनबाग षड्यंत्र में मुब्तिला हैं। ये खुद धर्मांध और कट्टर हैं, लेकिन इन्हें संविधान की प्रस्तावना से ‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्द चुन कर इसका इस्तेमाल मुफीद लगता है। इसे वे बाबा साहब से जोड़ते हैं। ऐसा उनके दुर्बुद्धिजीवी ‘मेंटर्स’ ने उन्हें सिखाया है। जबकि कोई सामान्य पढ़ा-लिखा व्यक्ति भी यह जानता है कि ‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्द बाबा साहब का दिया हुआ नहीं है। यह मूल संविधान का शब्द नहीं है। संविधान लागू होने के 25 वर्ष बाद इसे 42वें संशोधन के जरिए संविधान की प्रस्तावना से जोड़ा गया। धर्मनिरपेक्षता शब्द का भाव बहुत पवित्र है, लेकिन तभी जब वह सब पर समान रूप से लागू हो। लेकिन इस शब्द को धर्मांध मुसलमान और नस्लदूषित-प्रगतिशील अपने फायदे का ‘कॉपीराइट’ माने बैठे हैं। सवाल है कि संविधान प्रारूप समिति के अध्यक्ष रहे बाबा साहब अम्बेडकर ने संविधान की प्रस्तावना में ‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्द क्यों नहीं जोड़ा था..? धर्म के नाम पर देश बांटने का निर्णय पारित हो जाने के बाद कटे हुए हिस्से के संविधान में ‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्द जोड़ने पर बाबा साहब अम्बेडकर बिल्कुल असहमत थे। धर्म के नाम पर देश के विभाजन के बाद यह ‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्द गहरे जख्म पर नमक की तरह था। इस्लाम के नाम पर देश तोड़ने के बाद भी मुसलमानों के हिन्दुस्तान में रहने के सख्त खिलाफ थे बाबा साहब अम्बेडकर। उन्होंने इसका पुरजोर विरोध किया, लेकिन गांधी-नेहरू की फासिस्ट-जिद के आगे बाबा साहब की एक नहीं चली। वर्ष 1946 में कॉन्सटिट्यूएंट-असेम्बली में भारत के संविधान को लेकर निर्णायक बहस हो रही थी। इस्लाम के नाम पर भारत के बंटवारे का राजीनामा पहले ही हो चुका था। 1940 में मुस्लिम लीग के लाहौर अधिवेशन में यह पारित हो गया था कि हिन्दुस्तान से अलग होकर एक मुस्लिम राष्ट्र बनेगा। खैर, कॉन्सटिट्यूएंट-असेम्बली की उस बहस में केटी शाह ने संविधान में ‘धर्मनिरपेक्ष, संघीय, समाजवादी’ (Secular, Federal, Socialist) शब्द जोड़ने का प्रस्ताव रखा था। इस पर बाबा साहब ने कहा था, ‘संविधान में धर्मनिरपेक्ष जैसे शब्द जोड़ना लोकतांत्रिक नैतिकता के विरुद्ध है। समाज किस तरह का होगा, इसे तय करना समाज का काम है। संविधान के जरिए समाज का वह अधिकार कतई छीना नहीं जाना चाहिए। संविधान देश के लोगों को एक निश्चित दिशा में रहने और जीने के लिए क्यों बाध्य करे..? इससे तो अच्छा है कि लोग अपने बारे में खुद निर्णय लें कि उन्हें किस धारा में रहना है। (why the Constitution should tie down the people to live in a particular form and not leave it to the people themselves to decide it for themselves?)’ दरअसल बाबा साहब अम्बेडकर ही भारतवर्ष को लेकर एक राष्ट्रपिता की तरह चिंतित और संवेदनशील रहते थे, लेकिन राष्ट्र ने उन्हें नहीं समझा। राजनीतिक दलों से लेकर मौका-परस्त लोगों और दुर्बुद्धिजीवियों ने बाबा साहब का केवल साधन की तरह इस्तेमाल किया। उनके विचार को अपनी सुविधा से चुना और उसे बेचा। बाबा साहब के विचार समग्रता से समझे जाते तो देश की ऐसी हालत थोड़े ही होती..! संविधान में ‘समाजवाद’ शब्द जोड़े जाने के प्रस्ताव पर बाबा साहब ने कहा था, ‘यह अतिरंजित और अनावश्यक है। पूरे संविधान में समाजवादी सिद्धांत निहित हैं। मौलिक अधिकारों और नीति-निर्देशक तत्वों (डायरेक्टिव प्रिंसिपल्स) का समावेश समाजवादी दिशा को ही तो पुष्ट करता है। इसके बाद भी अलग से ‘समाजवाद’ शब्द जोड़ने का क्या औचित्य है..?’ बाबा साहब ने महात्मा गांधी और जवाहरलाल नेहरू की मुस्लिम तुष्टिकरण की नीति को देश के विभाजन की मूल वजह माना था। बाबा साहब यह मानते थे कि मुस्लिमों की मांग कभी खत्म नहीं होने वाली भूख की तरह है। बाबा साहब ने ‘कम्युनल अवार्ड’ के जरिए मुसलमानों को उनकी आबादी से अधिक असंतुलित लाभ देने और उसके विपरीत हरिजनों को लाभ देने के मसले पर कन्नी काटने की कांग्रेस की दोगली नीति पर तीखा प्रहार किया था। उन्होंने कहा था, ‘हिन्दुओं के अधिकार पर कुठाराघात कर कांग्रेस ने मुसलमानों को पहले ही अधिक अधिकार दे दिए हैं। जबकि अछूतों को ज्यादा लाभ देने की बात आती है तो कांग्रेस उसे पचा नहीं पाती है।’ बाबा साहब ने कहा था, ‘मुझे पता है कि जूता कहां काट रहा है, कांग्रेसियों को भी काटने का अनुभव हो रहा है, लेकिन अभी वे दूसरे ही मुगालते में हैं। मुसलमानों को अलग देश ले ही लेना चाहिए, क्योंकि मतांतरण देर सबेर राष्ट्रांतरण करा ही देता है। जिन्ना देश के लिए खतरा साबित होंगे। सैकड़ों साल की मुस्लिम गुलामी में जिन्होंने अपना मजहब बदला था, वो ही अब काटने लगे हैं।’ बाबा साहब अपनी किताब ‘थॉट्स ऑफ पाकिस्तान’ में लिखते हैं, ‘कांग्रेस ने हिन्दुओं के अधिकार पर कुठाराघात करते हुए मुसलमानों को पहले ही अधिक अधिकार दे दिए हैं। विधानसभा में मुसलमानों का प्रतिनिधित्व उनकी संख्या से कहीं अधिक है। क्या इससे मुसलमानों पर कोई प्रभाव पड़ा..? क्या इससे उनका दिमाग बदला..? भारत सरकार के अधिनियम-1935 के मुताबिक केंद्रीय विधानसभा के निचले सदन में कुल 187 सीटों में 105 सीटें हिन्दुओं और 82 सीटें मुसलमानों की हैं जो कि मुस्लिम जनसंख्या के अनुपात से कहीं ज्यादा है। इसके बाद भी मुसलमान धर्म के आधार पर देश का बंटवारा क्यों चाहते हैं..? धर्म के आधार पर अगर अदला-बदली हो रही है तो पूरी तरह होनी चाहिए।’
अपनी किताब ‘पाकिस्तान ऑर पार्टिशन ऑफ इंडिया’ में भारतीय संविधान के पितृ-पुरुष बाबा साहब अम्बेडकर इस्लाम के भाईचारे को ‘ढक्कन-बंद सहयोगिता’ बताते हैं, जो सम्पूर्ण मानवता का नहीं बल्कि मुसलमान-केंद्रित भाईचारा है। बाबा साहब कहते हैं कि इस्लाम असंगत सामाजिक स्वशासन की एक प्रणाली है। मुस्लिमों की निष्ठा उनके जन्म के देश के लिए नहीं बल्कि उनकी आस्था में निहित है। ऐसे परिदृश्य में, मुसलमानों में हिन्दुओं के बराबर स्तर की देशभक्ति और अखंड भारत के लिए बेचैनी और प्रतिबद्धता की उम्मीद करना संभव नहीं है। मुसलमान भारत-राष्ट्र के भीतर एक राष्ट्र की तरह रहेंगे।’
अब आप मौजूदा परिदृश्य देखिए, शाहीनबाग-षड्यंत्रकारियों के हाथ में बाबा साहब अम्बेडकर की फोटो के इस्तेमाल और उनके मुंह से संविधान की रुदालियों के निहितार्थ समझिए… इसके खिलाफ मुखर होकर बोलिए… और बाहर निकलिए… हम भारतवर्ष को बहु-सांस्कृतिक, बहु-धार्मिक, बहु-भाषिक, बहु-वैचारिक किन्तु एकल राष्ट्रीय प्रतिबद्धता वाला देश बनाने के लिए समवेत बोलें और करें…