नई दिल्ली। कांग्रेस की वरिष्ठ नेता और दिल्ली कांग्रेस अध्यक्ष शीला दीक्षित का शनिवार दोपहर लंबी बीमारी के बाद निधन हो गया. शीला दीक्षित के निधन से कांग्रेस को बड़ा झटका लगा है. तीन बार दिल्ली की मुख्यमंत्री रहने वाली शीला दीक्षित की कांग्रेस के आलाकमान यानी गांधी परिवार से काफी करीबी थी. 31 मार्च 1938 को पंजाब के कपूरथला में जन्मी शीला दीक्षित ने 80 के दशक में अपने राजनीतिक सफर की शुरुआत की थी. उन्होंने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत अपने ससुर उमा शंकर दीक्षित के सानिध्य में की.
उमाशंकर दीक्षित को मिला वफादारी का इनाम
राजनीतिक गलियारों में शीला दीक्षित की गांधी परिवार से करीबी किसी से छिपी हुई नहीं थी. उनके ससुर उमाशंकर दीक्षित भी कांग्रेस के बड़े नेताओं में से एक थे. 1969 में जब इंदिरा गांधी को कांग्रेस से निकाला गया तो उनका साथ देने वालों में उमाशंकर दीक्षित शामिल थे. जब इंदिरा गांधी की सत्ता में वापसी हुई तो उमाशंकर दीक्षित उनकी वफादारी का इनाम मिला और वह 1974 में देश के गृहमंत्री बनाए गए. संजय गांधी युवा कांग्रेस कार्यकर्ताओं पर जोर देते थे. ऐसे में उस समय शीला दीक्षित एक अच्छा विकल्प बनीं.
कन्नौज सीट से लोकसभा में पहुंची
80 के दशक में एक रेल यात्रा के दौरान शीला दीक्षित के पति की मौत हो गई. इसके बाद उन्होंने अपने परिवार के साथ ही राजनीतिक विरासत को पूरी जिम्मेदारी से संभाला. 1984 के आम चुनावों में शीला दीक्षित ब्राह्मण बहुल कन्नौज सीट से चुनाव जीतकर लोकसभा में पहुंचीं. गांधी परिवार से उनकी कितनी नजदीकियों थी, इसका अंदाजा इससे ही लगाया जा सकता है कि जब इंदिरा गांधी की हत्या की खबर सुनकर राजीव गांधी कोलकाता से दिल्ली के लिए जा रहे थे तो उनके साथ उस विमान में प्रणब मुखर्जी के अलावा शीला दीक्षित भी थीं. शीला ने ही राजीव गांधी को प्रधानमंत्री बनाए जाने की रणनीति बनाई थी.
राजीव गांधी के प्रधानमंत्री बनने के बाद शीला दीक्षित राज्यमंत्री बनीं. 1991 में ससुर उमाशंकर दीक्षित का देहांत होने के बाद शीला पूरी तरह से दिल्ली में बस गईं. 1998 में शीला दीक्षित ने पूर्वी दिल्ली से चुनाव लड़ा, लेकिन यहां उन्हें जीत नहीं मिल सकी. लोकसभा हारने के बाद उन्होंने विधानसभा चुनाव लड़ा और वह गोल मार्केट से विधायक चुनी गईं. इसके बाद शीला दीक्षित लगातार तीन बार दिल्ली की मुख्यमंत्री चुनी गईं.