नई दिल्ली। बीजेपी में पिछले 13 वर्षों से राष्ट्रीय महासचिव (संगठन) का पद संभाल रहे रामलाल की विदाई के बाद अब बीएल संतोष को यह जिम्मेदारी मिली है. बीजेपी की ओर से रविवार को यह जानकारी सार्वजनिक की गई. बीएल संतोष अब तक रामलाल के सहयोगी के तौर पर न सिर्फ पार्टी में संयुक्त महासचिव की जिम्मेदारी संभाल रहे थे, बल्कि दक्षिण भारत के प्रभारी के तौर पर संबंधित राज्यों में बीजेपी के प्रसार की ज़िम्मेदारी भी उन पर रही.
कर्नाटक में संघ के हार्डलाइनर प्रचारक की छवि रखने वाले संतोष चुनावों के दौरान वार रूम के कुशल संचालन के लिए जाने जाते हैं. रहते लो प्रोफाइल हैं, लेकिन परदे के पीछे रणनीतियां बनाने में माहिर माने जाते हैं. हालांकि उनकी साफगोई कई बार बीजेपी को असहज भी कर जाती है. बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह को भी कर्नाटक में येदियुरप्पा से उनकी सियासी मुठभेड़ को लेकर अतीत में कई बार दखल देना पड़ा है.
इंजीनियर, अविवाहित और प्रचारक
कर्नाटक के शिवमोगा जिले से नाता रखने वाले बी एल संतोष पेशे से केमिकल इंजीनियर रहे हैं. आरएसएस की विचारधारा इस कदर मन में रच बस गई कि इस इंजीनियर ने गृहस्थ जीवन बसाने का इरादा ही छोड़ दिया. अविवाहित रहते हुए बीएल संतोष संघ के पूर्णकालिक प्रचारक बन गए. कर्नाटक सहित दक्षिण भारत के आधे दर्जन राज्यों में संघ और अनुषांगिक संगठनों में भूमिकाएं निभाते रहे.
बीजेपी में आए तो BSY सुहाए
आरएसएस ने प्रचारक के रूप में काम करने वाले बीएल संतोष को बाद में बीजेपी में भेज दिया. तब वह कर्नाटक प्रदेश संगठन में आरएसएस कोटे से संगठन महामंत्री बने. 2008 के विधानसभा चुनाव में बीएल संतोष ने पर्दे के पीछे रहकर पूरी रणनीति तैयार की थी. जिसका नतीजा रहा कि बीजेपी को चुनाव में जीत मिलने पर दक्षिण के इस सूबे में सत्ता नसीब हुई. मगर बाद में बीएल संतोष की येदियुरप्पा से खटपट शुरू हो गई. वह येदियुरप्पा की छवि को पार्टी के लिए खतरा मानते रहे.
जब 2011 में जमीन विवाद में येदियुरप्पा फंसे तो उन्हें सीएम पद से इस्तीफा देना पड़ा था. बताया जाता है कि येदियुरप्पा को बीएल संतोष की ओर से केंद्रीय नेतृत्व के सामने भूमिका बांधने और दबाव डालने की वजह से ही इस्तीफा देना पड़ा था. तब से दोनों के बीच दूरियां और बढ़ गईं. खटपट ज़्यादा बढ़ने पर बीजेपी ने बीएल संतोष को राष्ट्रीय टीम में बतौर संयुक्त महासचिव बुला लिया.
सूत्रों का कहना है कि बीएल संतोष भले ही अब बीजेपी की राजनीति में हैं, लेकिन वह विभिन्न मुद्दों पर स्टैंड प्रचारक वाला ही लेते हैं. कर्नाटक में येदियुरप्पा की पॉलिटिक्स को पार्टी की इमेज ख़राब करने वाला बताते हुए कई बार नाराजगी ज़ाहिर कर चुके हैं.
यहां तक कि बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह जब लोकसभा चुनाव के पहले बेंगलूरु के तीन दिवसीय दौरे पर पहुंचे थे तो उन्होंने संतोष और येदियुरप्पा को एक साथ बैठाकर उनसे मिलकर काम करने का वादा लिया था. लेकिन फिर भी दोनों नेताओं के बीच की दूरियां कम नहीं हुईं.
सोशल मीडिया पर सक्रिय रहने वाले संतोष का चुनाव के दौरान एक फेसबुक पोस्ट भी चर्चा में रहा था, जिसमें उन्होंने कहा था कि टीम भावना से काम न करने वाले सफल नहीं होते. इस कमेंट को येदियुरप्पा से जोड़कर देखा गया था. हालांकि येदियुरप्पा कैंप आरोप लगाता रहा है कि भले ही बीएल संतोष राष्ट्रीय टीम में हैं, मगर निगाह उनकी कर्नाटक पर ही रहती हैं, वह बीजेपी में येदियुरप्पा की जगह खुद को सीएम पद का दावेदार होते देखना चाहते हैं, जबकि बीएल संतोष कैंप के लोग इस बात को ख़ारिज करते हुए कहते हैं, ‘वह पूर्णकालिक प्रचारक हैं, कर्नाटक में बीजेपी संगठन की चिंता करने का मतलब सीएम पद की महत्वाकांक्षा नहीं है.’
क्यों अहम होता है महासचिव संगठन का पद?
भारतीय जनता पार्टी में राष्ट्रीय महासचिव भले ही कई हो सकते हैं, लेकिन महासचिव संगठन का पद एक होता है. अध्यक्ष के बाद यह दूसरा सबसे ताकतवर पद होता है. इस पद पर आरएसएस से प्रतिनियुक्ति पर आए किसी प्रचारक की ही नियुक्ति होती है. इसी तरह प्रदेशों में भी संगठन मंत्री का पद सिर्फ आरएसएस प्रचारक या पृष्ठिभूमि से जुड़े व्यक्ति को ही मिलता है. संगठन महासचिव का काम बीजेपी और आरएसएस के बीच समन्वय का होता है. एक तरह से देखें तो बीजेपी की नीतिगत बैठकों में महासचिव संगठन आरएसएस का प्रतिनिधित्व करता है.