नंबर-4 का बेस्ट बल्लेबाज बताए जाने के बाद बुरी तरह नजरअंदाज किए गए अंबाती रायडू (Ambati Rayudu) ने आखिरकार इंटरनेशनल क्रिकेट को ही अलविदा कह दिया. इसके साथ ही उनके पांच साल के करियर का अचानक अंत हो गया. रायडू के इस तरह संन्यास लिए जाने के लिए बीसीसीआई और उसके चयनकर्ताओं की आलोचना हो रही है. गौतम गंभीर ने तो इस पूरे मामले पर चयनकर्ताओं को आड़े हाथों लिया और इस पूरे घटनाक्रम को शर्मनाक करार दिया. क्या अंबाती रायडू का संन्यास भारतीय क्रिकेट की इतनी बड़ी घटना है कि गंभीर को इसे भारतीय क्रिकेट का बुरा वक्त कहना पड़ रहा है. इसके लिए हमें एक साल पीछे जाना होगा.
भारतीय वनडे टीम 2018 की शुरुआत में दो समस्याओं से जूझ रही थी. पहली यह कि नंबर-4 पर कौन बैटिंग करेगा. इसके लिए सही विकल्प कौन है. दूसरी समस्या तीसरे स्पेशलिस्ट तेज गेंदबाज को लेकर थी. अक्टूबर 2018 में कप्तान विराट कोहली और कोच रवि शास्त्री दोनों ने माना कि नंबर-4 की समस्या सुलझ गई है. अंबाती रायडू इस नंबर पर सबसे सही बल्लेबाज हैं. वे परिस्थितियों के मुताबिक तेज या संयत होकर खेलने में सक्षम हैं. एमएसके प्रसाद की अध्यक्षता वाली चयनसमिति भी भारतीय कप्तान व कोच से सहमत थी.
अंबाती रायडू के करियर का दूसरा चैप्टर 2019 की शुरुआत में आता है. भारतीय टीम इस साल जनवरी-फरवरी में ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड में वनडे सीरीज खेली. उन्होंने ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ दो और न्यूजीलैंड के खिलाफ पांच मैच खेले. रायडू इनमें से एक ही मैच में बड़ी पारी (90 रन) खेल सके. उन्होंने 40 और 47 रन की पारियां भी खेलीं. लेकिन माना गया कि उन्हें तेज गेंदबाजी खेलने में समस्या आ रही है.
इसके बाद मार्च में ऑस्ट्रेलिया की टीम भारत खेलने आई. तब तक टीम प्रबंधन यह मन बना चुका था कि रायडू नंबर-4 पर पूरी तरह फिट नहीं हैं. अब नए नंबर-4 की तलाश शुरू हुई. रायडू इस सीरीज में भी नाकाम रहे. लगभग तभी यह तय हो गया था कि रायडू से भरोसा उठ चुका है.
दिलचस्प बात यह है कि रायडू का करियर छह महीने से भी कम वक्त में ही अर्श से फर्श आया. जो रायडू अक्टूबर-2018 में नंबर-4 पर बेस्ट बल्लेबाज थे, वे विश्व कप में नहीं चुने गए. लेकिन उन्हें रिजर्व बल्लेबाजों में रखा गया. इसका मतलब यह था कि यदि कोई बल्लेबाज चोट के कारण टीम से बाहर होता है तो रायडू उसकी जगह चुने जाएंगे. लेकिन यहां भी रायडू कप्तान और कोच का भरोसा नहीं जीत पाए.
इसके साथ ही एक बात साफ हो गई कि चयनकर्ता भले ही टीम चुन रहे हों और ऐसा करते वक्त यकीनन उनकी कोई दूरदृष्टि और रणनीति होगी. लेकिन कप्तान और कोच उनसे अलग सोच रहे हैं. अब अगर अंबाती रायडू के नजरिए से देखा जाए तो जिस खिलाड़ी को छह महीने पहले बेस्ट कहा गया हो. जिस खिलाड़ी को विश्व कप की टीम में रिजर्व में रखा गया हो. यानी, उन्हें यह उम्मीद लगातार बंधाई गई कि वे विश्व कप खेल सकते हैं. लेकिन जब-जब इसका मौका आया तो दूसरे खिलाड़ी को चुन लिया गया.
अब 33 साल के अंबाती रायडू का करियर बहुत लंबा तो बचा नहीं था. अगर वे संन्यास नहीं लेते तब भी यह जरूरी नहीं था कि उन्हें दोबारा वनडे टीम में जगह मिले. क्योंकि अक्सर यह होता है कि विश्व कप के बाद चयनकर्ता और कोच-कप्तान नए खिलाड़ियों को टीम में शामिल करना शुरू करते हैं. शायद रायडू को भी अहसास रहा होगा. इसीलिए उन्होंने कुछ और मैच खेलने की बजाय संन्यास लेकर चयनकर्ताओं को कड़ा संदेश देना बेहतर समझा.