गोरखपुर। चार दशक से पूर्वांचल में अपना पांव पसारी इंसेफेलाइटिस (जेई/एईएस) बीमारी से हजारों बच्चों की जान चली गई. हर साल 500 और उससे अधिक की संख्या में बच्चे अकेले बीआरडी मेडिकल कालेज में दम तोड़ते रहे हैं. बिहार में चमकी बुखार यानी एईएस से बच्चों की मौतों के बाद एक बार फिर हड़कंप मचा हुआ है. यही वजह है कि यूपी और बिहार के एईएस प्रभावित इलाकों में एहतियात बरती जा रही है. एबीपी न्यूज ने गोरखपुर में आक्सीजन कांड की ट्रेजडी झेल चुके बीआरडी मेडिकल कालेज में यूपी, बिहार और नेपाल से आने वाले जेई/एईएस प्रभावित बच्चों का हाल जाना. यहां पर सीएम योगी आदित्यनाथ के पशेंट ऑडिट फार्मूला ने गेम चेंजर का काम किया है.
गोरखपुर के बीआरडी मेडिकल कालेज में यूपी के साथ बिहार और नेपाल से आने वाले जेई/एईएस पीडि़त बच्चों की संख्या हजारों में रही है. लेकिन, साल 2018 से यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ ने पेशेंट ऑडिट फार्मूला और पशेंट केयर फार्मूला लागू किया है. इस फार्मूले से यहां भर्ती होने वाले मरीजों और मौतों का आंकड़ा काफी कम हो गया है. बीआरडी मेडिकल कालेज के प्रिसिंपल डा. गणेश कुमार बताते हैं कि पिछले साल मई तक 168 मरीज आए थे, जिसमें 57 की मौत हो गई थी. इस साल 78 पेशेंट में 15 बच्चों को नहीं बचा पाए हैं.
डा. गणेश कुमार बताते हैं कि जापानी इंसेफेलाइटिस के टीकाकरण के कारण इसके मरीजों की संख्या में काफी कमी आई है. एईएस एक ग्रुप है. क्यूलेक्स प्रजाति के मादा मच्छर के सूअर के संपर्क में आने के बाद किसी बच्चें को काटने से होता है. एईएस फैलने का कारण दूषित जल का सेवन करना है. ऐसे में साफ-सफाई काफी जरूरी है. सीएम योगी आदित्यनाथ के यहां आने के होने के कारण वे भली-भांति यहां से परिचित रहे हैं. उन्होंने काफी काम किया है. गांव-गांव में शौचालय बनने और दस्तक अभियान की अहम भूमिका है. इसने लोगों को जागरूक किया है.
बुखार के कारण लोग परेशान
बीआरडी मेडिकल कालेज के वार्ड नंबर 11 और 12 इंसेफेलाइटिस वार्ड में देवरिया के सलेमपुर से छह माह की बच्ची को लेकर आई मनीषा बताती है कि उसे पांच दिन पहले सुबह झटके आने लगे. उसकी हालत काफी खराब थी. डाक्टरों ने जवाब दे दिया था. यहां आने पर उसकी तबियत में सुधार हुआ है. वहीं कुशीनगर के फाजिलनगर से आए नूर आलम ने अपने बच्चें को यहां पर काफी दिन से भर्ती किया है. उसे भी झटके के साथ बुखार आ रहा था. अभी हालत पहले से बेहतर है.
अंबेडकरनगर जिले से अपने बच्चे को लेकर यहां पर आई छाया को उसके ठीक हो जाने की उम्मीद है. वे बताती हैं कि झटके के साथ बुखार आ रहा था. यहां आने के बाद से आराम है. गोरखपुर के ग्रामीण इलाके की मीना ने 25 दिन की बच्ची को यहां पर भर्ती किया है. उसे झटके के साथ बुखार आ रहा है. उसे नहीं पता कि उसकी बच्ची ठीक हो पाएगी कि नहीं. देवरिया के आए असमुद्दीन और कुशीनगर के हाटा से आए अन्नूपूर्णा बताते हैं कि उनके बच्चें को झटके के साथ बुखार आ रहा है. यहां आने के बाद से आराम है.
ये है फॉर्मूला
अब जान लेते हैं सीएम योगी आदित्यनाथ का वो कौन सा फार्मूला और प्रयोग है, जिससे इन मरीजों की संख्या में एकाएक कमी आ गई. इसके साथ ही मौत के आंकड़े भी कम हो गए. जिस बीमारी ने साल 1978 से अब तक हजारों बच्चों को लील लिया और इस बीआरडी मेडिकल कालेज को बच्चों की कब्रगाह बना दिया, आखिर वहां पर गोरखपुर के पांच बार से सांसद रहे योगी आदित्यनाथ के सीएम बनने के बाद कैसे बदलाव आ गया. आखिरकार वो कौन सा फार्मूला है, जिसकी वजह से इंसेफेलाइटिस जैसी बीमारी दो साल में यूपी में घटकर आधी और गोरखपुर के बीआरडी मेडिकल कालेज में महज सात फीसदी रह गई है.
कई सरकारी अभियान भी चलाए गए. लेकिन इसके पीछे की असल वजह मुख्यमंत्री का ‘पेशेंट ऑडिट और केयर’ फार्मूला है, जो एक साल में गेमचेंजर बन गया. दो दशक से बीमारी और इलाज को नजदीक से देख रहे मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इसे सख्ती से लागू किया, तो सालभर में नतीजे भी सामने आने लगे. गोरखपुर के बीआरडी मेडिकल कालेज में जहां हर साल सैकड़ों मासूम इंसेफेलाइटिस की चपेट में आकर असमय ही काल के गाल में समा जाते रहे हैं. साल 2016 में बीआरडी मेडिकल कालेज में इंसेफेलाइटिस के 4353 मामले आए थे. इसमें 715 की मौत हो गई थी.
मौत के आंकडे
2017 में 5400 मरीजों में 748 की मौत हुई थी. बीआरडी मेडिकल कालेज के प्रिसिंपल डा. गणेश कुमार बताते हैं कि साल 2017 में जनवरी माह से अगस्त माह तक भर्ती हुए इंसेफेलाइटिस के 744 मरीजों में 180 की मौत हुई थी. साल 2018 में जनवरी से अब तक भर्ती इंसेफेलाइटिस के 380 मरीजों में 80 की मौत हुई थी. साल 2018 के अगस्त माह में पिछली बार के 409 मरीजों में 80 की मौत की अपेक्षा इस बार 80 मरीज भर्ती हुए उसमें सिर्फ 6 की मौत हुई.
साल 2019 में जनवरी माह से अब तक भर्ती जेई/एईएस के 57 मरीजों में 15 की मौत हुई है. डा. गणेश कुमार कहते हैं कि स्वास्थ्य के लिए हम सभी को जागरूक रहने की जरूरत है. सभी विभागों के सामान्जस्य और सहयोग के साथ आमजन को भी जागरूक रहने की जरूरत है. जेई-एईएस को लेकर जो व्यापक प्रसार-प्रसार किया गया है. दस्तक जैसा अभियान और सभी के सहयोग से ये संभव हो सका है.
दी थी चेतावनी
बता दें, साल 2018 में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने सीजन की शुरुआत में ही प्रभावित जिलों के अधिकारियों को चेतावनी दी थी कि गांवों से सीधे कोई मरीज बीआरडी मेडिकल कालेज आया, तो यही माना जाएगा कि पीएचसी-सीएचसी और जिला अस्पताल में इलाज नहीं किया गया. मरीजों को बीआरडी कालेज रेफर करने वाले डाक्टरों से भी पेशेंट ऑडिट के तहत मरीज भेजने के कारण पूछने शुरू कर दिए गए. हर मरीज के ऐसे ऑडिट ने नीचे के तंत्र को सक्रिय कर दिया. यही वजह है कि साल 2018 के अगस्त माह में पहुंचे 409 मरीजों की संख्या घटकर 80 हो गई. जबकि अगस्त में पिछले साल 80 मौतों की संख्या महज 6 रह गई.
एक साल पहले तक पूर्वांचल के 38 जिलों और पड़ोसी राज्य बिहार और नेपाल देश के इंसेफेलाइटिस पीडि़त मरीज बीआरडी मेडिकल कालेज पर ही निर्भर रहे हैं. लेकिन, अब ऐसा नहीं है. साल 2018 में इंसेफेलाइटिस को लेकर मार्च के बाद से ऐसी जागरूकता पहले देखने को नहीं मिली थी. योगी सरकार के निर्देश पर दस्तक अभियान की शुरुआत अप्रैल माह शुरू होते ही कर दी गई. वहीं जिलाधिकारी के साथ विभिन्न विभागों के अधिकारी भी इंसेफेलाइटिस की रोकथाम के लिए रैलियां निकाली गई.
इन रैलियों में शामिल हुए. ऐसा पहली बार हुआ जब इंसेफेलाइटिस के बुखार पर वार के लिए स्लोगन के साथ स्वास्थ्य विभाग के साथ पांच अन्य विभागों की टीम भी एकजुट थी. चिकित्सा शिक्षा, महिला कल्याण, बाल विकास, पंचायती राज और नगर निगम की टीमों ने मिलकर लगातार पेयजल, स्वच्छता, टीकाकारण और जागरूकता के ऐसे कार्यक्रम चलाए, जिसका असर अस्पताल से लेकर गांवों तक महसूस होने लगा.
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सकारात्मक सोच का नतीजा ये रहा कि चार दशक से पूर्वांचल में अपना पांव पसारी इस बीमारी में उनके फार्मूले ने गेम चेंजर का काम किया. जहां बीआरडी में पिछले साल तक हर बेड पर चार-चार मरीज भर्ती होते रहे हैं. लेकिन, अब हालात ऐसे नहीं हैं. उनका ‘पेशेंट ऑडिट फार्मूला’ और ‘पेशेंट केयर’ फार्मूला इतना कारगर हुआ, जिसने चौंकाने वाले नतीजे सामने ला दिए और असमय हो रही बच्चों की मौत को काफी हद तक कम कर दिया. अब इस फार्मूले को अन्य जेई/एईएस प्रभावित राज्यों के साथ दूसरे देश भी एडाप्ट करना चाहते हैं.