लखनऊ। उत्तर प्रदेश की फिरोजाबाद लोकसभा सीट पर एक बार फिर चाचा-भतीजे की जंग देखने को मिल सकती है. क्योंकि प्रगतिशील समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष शिवपाल यादव ने फिरोजाबाद से चुनाव लड़ने की बात कही है. उन्होंने शनिवार को कहा कि 3 फरवरी को फिरोजाबाद में होनी वाली रैली के दौरान मैं वहां से चुनाव लड़ने का ऐलान करूंगा. फिलहाल इस सीट से उनके चचेरे भाई और समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव रामगोपाल यादव के बेटे अक्षय यादव सांसद हैं. यूपी विधानसभा से ठीक पहले यादव परिवार में जो जंग छिड़ी थी वह अब लोकसभा चुनाव में भी देखने को मिल सकती है. शिवपाल का फिरोजबाद सीट चुनना जाहिर तौर पर दिखाता है कि वह अपने भतीजे अखिलेश के खिलाफ फ्रंट फुट पर खेलने के मूड में हैं.
शनिवार को उन्होंने अखिलेश यादव पर जमकर हमला बोला. उन्होंने बसपा के साथ गठबंधन को लेकर अखिलेश पर निशाना साधते हुए कहा कि ना ही मैं और नेताजी (मुलायम सिंह यादव) मायावती को बहन मानते हैं. तो कैसे अखिलेश उनको बुआ बुला रहे हैं. उन्होंने कहा कि मायावती पर भरोसा नहीं किया जा सकता है. वह कभी सपा को ‘गुंडों की सरकार’ कहा करती थीं.
शिवपाल का अखिलेश को लेकर हमलावर रुख यहीं नहीं थमा. उन्होंने कहा अखिलेश ने अपने पिता और चाचा दोनों को धोखा दिया. शिवपाल ने फिरोजबाद सीट से लड़ने का एक ये भी कारण है क्योंकि माना जाता है कि फिरोजाबाद और आसपास के जिलों में शिवपाल का प्रभाव है. वे सांसद और उनके भतीजे अक्षय यादव को कड़ी टक्कर देने में सक्षम हैं. 2009 को लोकसभा चुनाव में सपा को यहां पर हार का सामना भी करना पड़ा था. कांग्रेस के राजबब्बर ने तब इस सीट पर जीत हासिल की थी.
बता दें कि शिवपाल यादव की पार्टी आगामी चुनाव में लोकसभा की सभी 80 सीटों पर चुनाव लड़ेगी. शिवपाल ने प्रगतिशील समाजवादी पार्टी का गठन भजीते अखिलेश यादव से मतभेद के बाद किया था. शिवपाल का यह कदम सपा-बसपा का खेल बिगाड़ने की कोशिश के रूप में देखा जा रहा है.
शिवपाल ने जब फिरोजाबाद से चुनाव लड़ने का ऐलान किया तो इसपर रामगोपाल यादव ने अपनी प्रतिक्रिया दी. उन्होंने कहा कि लोकतंत्र में किसी को कहीं से भी लड़ने का अधिकार है. शिवपाल लड़े, मुझे ऐतराज नहीं है.
प्रोफेसर रामगोपाल यादव ने कहा कि अक्षय तो पहले से सांसद हैं. अब सामने कौन लड़ता है, कौन नहीं लड़ता है इसमें हम क्या कह सकते हैं. हमें कोई एतराज नहीं है. लोकतंत्र में हर आदमी को अपना चुनाव लड़ने का हक होता है. इसमें हम क्या प्रतिक्रिया दें. तो ऐसे में साफ है उत्तर प्रदेश के लोगों को एक बार फिर यादव परिवार की जंग देखने को मिलेगी. इस जंग का विजेता कौन होगा यह तो जब चुनाव के नतीजे आएंगे तब ही मालूम पड़ेगा.
विधानसभा चुनाव से पहले हुई थी पहली ‘जंग’
यह कोई पहली बार नहीं है कि जब यादव परिवार की लड़ाई देखने को मिलेगी. इससे पहले चाचा-भतीजे की जंग तब शुरू हुई थी जब सपा ने तीन युवा नेताओं को पार्टी विरोधी गतिविधियों के कारण निष्कासित कर दिया. निष्कासित किए गए नेता सुनील सिंह यादव और आनंद भदौरिया अखिलेश यादव के करीबी के तौर पर जाने जाते हैं. यह फैसला शिवपाल के इशारे पर लिया गया, जिसकी घोषणा तब प्रदेश अध्यक्ष रहे अखिलेश यादव ने भी की थी. इसके बाद कौमी एकता दल का समाजवादी पार्टी में विलय हो गया.
इसके दो शीर्ष तीन नेताओं को औपचारिक रूप से मुलायम सिंह की पार्टी में शामिल किया गया. विलय के लिए शिवपाल को जिम्मेदार माना जाता रहा. अखिलेश पार्टी में विवादित नेताओं को नहीं चाहते थे. बाद में अखिलेश ने कैबिनेट मंत्री और वरिष्ठ नेता बलराम यादव को बर्खास्त कर दिया. बता दें कि कौमी एकता दल के नेता मुख्तार अंसारी की आपराधिक पृष्ठभूमि है, हालांकि उनके समर्थक उन्हें रॉबिन-हुड के रूप में पेश करते हैं. हालांकि पार्टी ने तब यू-टर्न लिया और विलय रद्द हो गया.
कौमी एकता दल ने इस दौरान अखिलेश पर अपमान करने का आरोप लगाया. इस पूरे झगड़े में लोगों के बीच अखिलेश की एक साफ छवि दिखाने की कोशिश की गई. अखिलेश ने इसके बाद बलराम यादव को कैबिनेट में शामिल कर लिया. इन सभी फैसलों से शिवपाल को लग रहा था कि उनकी पार्टी में नहीं सुनी जा रही. उन्होंने इस्तीफा देने की भी धमकी दी. इसके बाद 15 अगस्त की रैली में मुलायम ने कहा अगर शिवपाल इस्तीफा देते हैं तो सपा दो हिस्सों में टूट जाएगी. यह सभी ‘ड्रामा’ चलता रहा.
2017 में उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव से ठीक पहले यह जंग और बढ़ गई. जब अखिलेश ने कांग्रेस के साथ गठबंधन किया. शिवपाल यादव कांग्रेस के साथ गठबंधन के बिल्कुल पक्ष में नहीं थे. उन्होंने सार्वजनिक मंचों से ये बयान दिया था. बावजूद इसके अखिलेश यादव ने राहुल गांधी से हाथ मिलाया. शिवपाल मानते थे कि सपा को खड़ा करने में उनका अहम योगदान रहा और आज उन्हीं की नहीं सुनी जा रही है.
यह लड़ाई एक अहम की लड़ाई हो गई. इस पूरे झगड़े में मुलायम के चचेरे भाई रामगोपाल अखिलेश यादव के साथ थे. वह लगतार उनका समर्थन करते रहे. इस दौरान विधानसभा चुनाव में करारी हार के बाद भी सपा का पारिवारिक झगड़ा कायम रहा.
शिवपाल पड़ गए थे अलग-थलग
अखिलेश यादव से विवाद के चलते शिवपाल यादव परिवार में अलग-थलग पड़ गए. भतीजे से विवाद के बीच शिवपाल ने कभी अपने बड़े भाई मुलायम पर हमला नहीं किया. मुलायम ने भी शिवपाल को मनाने की हर संभव कोशिश की. लेकिन सीधे तौर वह शिवपाल के समर्थन में कभी नहीं आए. इस कारण शिवपाल यादव परिवार में भी गुमनामी में पहुंच गए. सियासी अस्तित्व बचाए रखने की मजबूरी ने उन्हें अलग राह पकड़ने को मजबूर किया.