लखनऊ। लोकसभा चुनाव 2019 के लिए भाजपा ने अपना ठोस ‘प्लान’ तैयार कर लिया है. प्लान के तहत भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने मिशन 2019 फतह करने के लिए देशभर में बूथ लेवल पर फोकस करने का निर्णय लिया है. इसकी शुरुआत उत्तर प्रदेश से होगी, जहां अमित शाह अगले कुछ दिनों में ही राज्य के सभी बूथ प्रभारियों और सह प्रभारियों से सीधे संवाद करेंगे. उनका लक्ष्य यूपी के सभी जिलों के बूथ प्रभारियों से मुलाकात करना और उन्हें अपने प्लान से रुबरु कराना है, ताकि हर जिले में बूथ लेवल पर पार्टी को और ज्यादा मजबूती मिल सके. पार्टी सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक, प्रियंका गांधी की बतौर कांग्रेस महासचिव और पूर्वी उत्तर प्रदेश प्रभारी ताजपोशी और बसपा-सपा गठबंधन की काट के लिए पार्टी अध्यक्ष अपने इस प्लान पर तेजी से काम करेंगे.
पार्टी के एक सूत्र ने बताया कि बसपा-सपा गठबंधन के बाद प्रियंका गांधी को कांग्रेस का पूर्वी उत्तर प्रदेश का प्रभारी बनाए जाने के बाद भाजपा यूपी पर और ज्यादा फोकस करना चाहती है. 2014 के चुनावों में भाजपा को प्रदेश की 71 सीटों पर जीत हासिल हुई थी.
हालांकि अब धुर विपक्षी दल बसपा-सपा के एक साथ आने और कांग्रेस के नए सियासी पैतरे के बाद भाजपा अध्यक्ष अपनी रणनीति के तहत बूथ लेवल पर पार्टी की मजबूती पर तेजी से काम करना चाहते हैं. आगामी आम चुनावों से पहले ही वह उत्तर प्रदेश के सभी 75 जिलों पर बूथ प्रभारियों और सह प्रभारियों से सीधे संवाद करेंगे और उन्हें अपने प्लान से रुबरु कराएंगे कि कैसे वह अपने बूथ में घर-घर जाकर मतदाताओं से मुलाकात करें और भाजपा की रणनीतियों से उन्हें अवगत कराएं.
बूथ प्रभारियों को करना होगा इस प्लान पर काम…
-घर-घर जाकर मतदाताओें की लिस्ट तैयार की जाए.
-बूथ प्रभारी अपने बूथों में घर-घर जाकर कम से कम दो बार नॉक करेंगे, यानि मतदाताओें से मुलाकात करेंगे.
-बूथ प्रभारियों और सह प्रभारियों को लक्ष्य दिया जाएगा कि वह चुनाव से पहले कम से कम पांच बार हर घर तक जरूर अपनी पहुंच बनाएं.
-इसके अलावा रूठे हुए कार्यकर्ताओं को मनाने की सभी कोशिशें की जाएं.
-यहां तक की रूठे कार्यकर्ताओं की लिस्ट भी बनाने को कहा जा सकता है.
उल्लेखनीय है कि इसी माह दिल्ली में आयोजित भाजपा के दो दिवसीय राष्ट्रीय सम्मेलन में अमित शाह ने कहा था कि “हम उत्तर प्रदेश में 50 फीसदी से अधिक वोट हासिल करने के लिए जंग लड़ने को तैयार हैं. हमें 74 (भाजपा और उसकी सहयोगियों को जितनी सीतें 2014 में मिली थीं, उससे एक अधिक) से कम सीटें नहीं मिलेंगी.