नई दिल्ली। दो निर्दलीय विधायकों के कर्नाटक की कांग्रेस-जेडीएस गठबंधन सरकार से समर्थन वापसी बाद शुरू हुए सियासी नाटक पर पर्दा गिर गया है. पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा दो निर्दलीय विधायकों का तो जुगाड़ कर लिया, लेकिन कांग्रेस विधायकों को इस्तीफा देने के लिए राजी नहीं कर पाए. उनके तमाम प्रयास के बावजूद ऑपरेशन लोटस 3 फेल हो गया. कर्नाटक के इस राजनीतिक ड्रामा को ऑपरेशन लोटस 3 इसलिए कहा जा रहा है क्योंकि येदियुरप्पा इससे पहले सरकार बनाने की कोशिश दो बार और कर चुके हैं.
कांग्रेस विधायकों का इस्तीफा दिलाने में नाकाम रहे येद्दी
कांग्रेस द्वारा शुक्रवार को बुलाई गई विधायक दल की बैठक के लिए विधायक दल के नेता सिद्धारमैया की तरफ से सभी विधायकों के लिए व्हिप जारी किया गया है, जिसमें शामिल न होने वाले विधायक अयोग्य घोषित किए जा सकते हैं. व्हिप जारी होने के बाद कांग्रेस के नाराज विधायकों के सामने दो विकल्प बचे या तो पार्टी के साथ खड़े हों या अयोग्य घोषित होकर इस्तीफा दें और दोबारा ‘कमल’ के सिंबल पर चुनाव लड़ विधानसभा में आएं. लेकिन इन कांग्रेस विधायकों की संख्या इतनी नहीं थी कि येदियुरप्पा की सरकार बन जाती. इसलिए इन विधायकों के कांग्रेस खेमे में वापस लौटना मुनासिब समझा.
दो निर्दलीय विधायकों के समर्थन वापसी के बावजूद कर्नाटक की एचडी कुमारस्वामी सरकार के पास आंकड़े पूरे थे. 224 सदस्यीय विधानसभा में गठबंधन के पास विधायकों की संख्या 118 थी और सरकार पर वास्तव में कोई खतरा नहीं था. लेकिन माहौल ऐसा बना मानो सरकार गिरने वाली है. इस बीच हलचल और बढ़ गई जब पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा 104 बीजेपी विधायकों के साथ गुरुग्राम के रिजॉर्ट पहुंच गए और कांग्रेस के 4 विधायक अचानक पार्टी के संपर्क से बाहर हो गए.
आलाकमान ने साधी चुप्पी
बीएस येदियुरप्पा ने इस दौरान बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह से मिलने का समय भी मांगा. लेकिन पार्टी ने इंतजार करो और देखो की रणनीति अपनाई क्योंकि इससे ठीक 7 महीने पहले बीजेपी ने कर्नाटक में सरकार बनाने की नाकाम कोशिश की थी जिसमें उसकी खूब किरकिरी हुई थी. जाहिर है पार्टी का केंद्रीय नेतृत्व लोकसभा चुनाव से पहले अपनी छवि को लेकर कोई रिस्क नहीं लेना चाहता होगा.
येदियुरप्पा का खुद को प्रासंगिक रखने का प्रयास
विश्लेषकों की मानें तो सरकार बनाने का यह प्रयास 75 वर्षीय पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येदियरप्पा का एक तरफा प्रयास था. क्योंकि उन्हें पता है कि यदि अब मुख्यमंत्री नहीं बने तो साल 2023 में उनकी उम्र 80 साल की होगी और तब वे बीजेपी की परंपरा के मुताबिक इस पद के लिए अयोग्य हो जाएंगे. पिछले कुछ समय से येदियुरप्पा का रिकॉर्ड जीत का कम और हार का ज्यादा रहा है, जिसमें सबसे बड़ी पार्टी होने के बावजूद सरकार न बना पाना, पिछले अक्टूबर में हुए उपचुनाव में पांच सीटों में से चार सीटों पर हार और सरकार बनाने की 2 नाकाम कोशिशें प्रमुख हैं.
पिछले 6 महीनों में येदियुरप्पा की तरफ से सरकार बनाने की ये तीसरी नाकाम कोशिश थी. राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो येदियुरप्पा की इस कोशिश के पीछे उनका यह डर था कि यदि वे इस बार मुख्यमंत्री नहीं बने तो दोबारा नहीं बन पाएंगे. क्योंकि कांग्रेस-जेडीएस के पांच साल का कार्यकाल पूरा करने तक बीजेपी राज्य में दूसरी पंक्ति का नेतृत्व खड़ा करना चाहती है. लिहाजा, यदि वे कामयाब हो जाते तो अगले कुछ सालों तक खुद को राजनीतिक तौर पर प्रासंगिक रख पाएंगे.
लोकसभा चुनाव में बीजेपी को येदियुरप्पा की जरूरत
येदियुरप्पा की इस नाकामयाबी के बाद उनके लिए आगे के रास्ते बंद हो गए हैं ऐसा भी नहीं है, कम से कम लोकसभा चुनाव तक तो ऐसा नहीं होने वाला. पिछले कई सालों से बीजेपी की कर्नाटक इकाई में नया नेतृत्व खड़ा करने की चर्चा चल रही है. लेकिन अब तक येदियुरप्पा जैसा मास लीडर कोई दूसरा खड़ा नहीं हो पाया. लिहाजा भले ही वे सरकार बनाने के अपने प्रयास में असफल रहे लेकिन राज्य में पार्टी का एकमात्र चेहरा भी वही हैं. कर्नाटक में लोकसभा की 28 सीटें हैं. बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने 20 पर जीत का लक्ष्य रखा है. कांग्रेस और जेडीएस गठबंधन का एक साथ चुनाव लड़ना तय माना जा रहा है. ऐसे में लिंगायत समुदाय के सबसे प्रभावी नेता येदीयुरप्पा की जरूरत पार्टी को लोकसभा चुनाव में पड़ेगी.