न खाता न बही जो जय शर्मा चाहें वही सही

जनाब, यह खाद्य रसद विभाग हैं यहां शासनादेश नहीं जय शर्मा ही शासन हैं


छह साल से एक ही पटल पर जमें हैं आयुक्त के निजी सचिव

लखनऊ। प्रदेश के खाद्य एवं रसद विभाग में आयुक्त के निजी सचिव के पद पर तैनात जय शर्मा आखिर कौन सा शख्स है, उसके ऊपर किसका हाथ है, कौन उसका ख्ौरख्वाह है जो कि उसके ऊपर किसी भी नियमावली, किसी भी शासनादेश या फिर किसी शिकायत का असर नहीं पड़ता है। बल्कि उनकी भृकुटि जिस पर टेढ़ी हो जाती है उसकी सांसे अटक जाती है। जिस कर्मचारी को उन्होंने चाहा उसका तबादला जहां मनमर्जी हुआ करा दिया। लेकिन खुद लगभगत छह वर्षों से एक ही पटल पर जमें हैं। इन पर किसी भी शिकायत का असर नहीं होता।

जय शर्मा

जानकारी के मुताबिक जय शर्मा कार्यालय आयुक्त खाद्य एवं रसद विभाग लखनऊ उप्र में आयुक्त रणवीर प्रसाद के निजी शर्मा पद पद पिछले छह वर्षों से अधिक समयावधि से नियुक्त हैं, जबकि वर्ष 2०22 में पारित शासनादेश के मुताबिक सरकारी कार्यालयों में शुचिता बनाये रखने के दृष्टिगत निर्देशित किया गया था कि समूह ग के सभी कर्मियों का पटल प्रत्यके 3 वर्ष के उपरान्त अनिवार्य रूप से बदल दिया जाये। लेकिन जनाब यह जय शर्मा हैं इनके ऊपर कोई भी शासनादेश प्रभावी नहीं होता। लंबे समय से आयुक्त महोदय के साथ नियुक्त रहने के कारण श्री शर्मा ने कार्यालय समेत पूरे विभाग में अपनी पैठ बना ली है तथा खुलेआम भ्रष्टाचार कर रहे हैं। इसी प्रकार पिछले खाद्य आयुक्त सौरभ बाबू के समय भी इन्होंने कई कर्मचारियों का शोषण किया । कई लोगों ने इनके विरुद्ध शिकायतें की, जिसकी प्रतिलिपि सरिता प्रवाह के पास मौजूद है। लेकिन इन शिकायतों को इन्हीं के पास से गुजरना होता है तो जो दर्द दे रहा है, वह दवा कैसे देगा। इनकी शिकायतें संबंधित पटल या अधिकारी तक पहुंचती ही नहीं।
वर्ष 2०22 में 29 फरवरी को पत्रांक संख्या 21०7/29.०2.22 के द्बारा बस्ती निवासी शेर बहादुर सिंह ने भी इस संबंध में पत्राचार किया था । फाइल दौड़ी भी लेकिन वह भी जय शर्मा के प्रभाव के चलते दम तोड़ दी। हालांकि तत्कालीन मुख्य सचिव दुर्गा शंकर मिश्र ने इस संबंध में प्रमुख सचिव खाद्य रसद को कार्रवाई करने के लिए लिखा था लेकिन वह आदेश भी धूल फांक रहा है।
अभी बीते दिनों एक और शिकायत इनके विरुद्ध दर्ज करायी गयी है लेकिन वह भी लंबित है। आरोप है कि जय शर्मा की प्रताड़ना का शिकार अभी कई और कर्मचारी बन चुके हैं। जिसमें वरिष्ठ लिपिक के पद पर पूर्व में तैनात रहे जिया रिजवान का तो इतना उत्पीड़न किया गया कि बिना जांच उनका तबादला फूड सेल में इसलिए करा दिया गया कि शासन से टेलीफोन आया था। तो प्रधान सहायक के पद पर तैनात विभुम शर्मा को भी फूड सेल भ्ोज दिया गया, वह इस कार्यवाही के चलते डिप्रेशन के इतना शिकार हुए कि एक साल बाद ही उनकी मृत्यु हो गयी।
इसी तरह वैयक्ति सहायक के पद पर तैनात सुनीता रावत के विरुद्ध भी किसी रईस अहमद से फर्जी शिकायत करायी गयी और इस शिकायत के आधार पर उनका तबादला भी लेखा शाखा में करा दिया गया। कहा जा रहा है कि इन सब मामलों के पीछे इन्हीं जनाब का हाथ है।
जय शर्मा के वर्चस्व का आलम यह है कि अति उत्साह व अब तक अपनी साजिशों में सफल होने के चलते अब उनसे कोई पंगा नहीं लेना चाहता। लेकिन जय शर्मा हैं कि मानते ही नहीं। अब अगला शिकार भी उनका तैयार है। अगले शिकार के लिए भी उन्होंने पृष्ठभूमि तैयार कर ली है। उसके विरुद्ध भी किसी काल्पनिक श्याम लाल शर्मा को तलाश लिया गया है।
दिलचस्प तो यह है कि शासनादेश संचया 13/1/97-क-1/1997 दिनांक ०1.०8.1997 के मुताबिक समूह ग के किसी भी कर्मचारी के विरुद्ध किसी शिकायती पत्र पर तब तक कार्यवाही नहीं होती जब तक शिकायतकर्ता शिकायत के समर्थन में साक्ष्य व शिकायत शपथ पत्र के रूप में नहीं देता। लेकिन यह खाद्य विभाग है यहां जो जय शर्मा चाहेंगे वही होगा। यानि खाता न बही जो जय शर्मा चाहें वही सही। अब देखना है कि इन प्रभावशाली समूह ग के कर्मचारी के विरुद्ध कब कार्रवाई होती है। कब उनका पटल परिवर्तन होता है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *