उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की सरकार ने समान नागरिक संहिता (यूसीसी) को लागू करने के लिए कानूनी जामा पहनाना शुरू कर दिया है। बिल को उत्तराखंड विधानसभा में रखा गया है। सीएम धामी ने खुद इस बिल को विधानसभा के पटल पर रखा। विधानसभा में UCC पेश करते ही यहाँ मौजूद विधायकों ने वन्दे मातरम और जय श्रीराम के नारे लगाए।
समान नागरिक संहिता बिल में विवाह, तलाक और लिव-इन रिलेशनशिप से जुड़े अहम बिंदु भी शामिल किए गए हैं। इसमें उत्तराधिकार के महत्वपूर्ण मामले पर भी जोर दिया गया है। इस बिल में लिव-इन रिलेशनशिप को लेकर जो खास प्रावधान किए गए हैं, उसके बारे में हम यहाँ विस्तार से बता रहे हैं।
उत्तराखंड की धामी सरकार ने लिव-इन रिलेशनशिव को कानून के दायरे में ला दिया है। उत्तराखंड सरकार ने लिव-इन रिलेशनशिप का रजिस्ट्रेशन अनिवार्य कर दिया है। इसके लिए दोनों (पुरुष और महिला) को अपना स्टेटमेंट जमा कराना होगा। इसमें दो बिंदु हैं।
I – उत्तराखंड में लिव-इन रिलेशनशिप में रहने वालों के लिए रजिस्ट्रेशन जरूरी है, भले ही वो बाहर के रहने वाले हों। इसके लिए जिले के रजिस्ट्रार से संपर्क करना होगा।
II – अन्य राज्यों में रहने वाले उत्तराखंड के निवासी उस रजिस्ट्रार के यहाँ संपर्क कर सकता है, जिसके अधिकार क्षेत्र में वह राज्य में आमतौर पर निवास करता है।
बच्चे को कानूनी वैधता: लिव-इन रिलेशनशिप के दौरान यदि बच्चा पैदा होता है तो उस बच्चे को अवैध नहीं कहा जाएगा। उस बच्चे को कानूनी संरक्षण मिलेगा। वो उस कपल का कानूनी बच्चा रहेगा।
किन परिस्थितियों में लिव-इन रिलेशनशिप का रजिस्ट्रेशन नहीं होगा?: लिव-इन रिलेशनशिप का रजिस्ट्रेशन नहीं किया जा सकता, अगर..
I- जिन रिश्तों को कानूनी रूप से लिव-इन रिलेशिनशिप धारा 3 के उपधारा (1) के खंड डी के तहत प्रतिबंधित किया गया हो। इनमें 74 नजदीकी रिश्तों की सूची है।
हालाँकि जिन लोगों की स्थानीय प्रथाएँ या मान्यताएँ इसका (लिव-इन रिलेशनशिप) का विरोध नहीं करते, वैसे लोगों को अनुमति दी जाएगी। बस, ये लोकनीति और नैतिकता के खिलाफ न हो।
II- ऐसे लोग लिव-इन रिलेशनशिप में नहीं जा सकते, जिनमें से एक-से-कम एक व्यक्ति शादीशुदा है या पहले से किसी के साथ लिव-इन रिलेशनशिप में रह रहा है, लेकिन उससे अलग नहीं हुआ है।
III- लिव-इन रिलेशनशिप के लिए पहुँचे जोड़ों में कोई नाबालिग होगा तो इसका रजिस्ट्रेशन नहीं हो पाएगा।
IV- जोड़ों में से कोई एक भी व्यक्ति किसी भी तरह से दबाव में हो या उससे झूठ बोला गया हो या किसी तरह के पहचान की समस्या हो (पहचान छिपाने का मामला), वह लिव-इन रिलेशन के योग्य नहीं है।
लिव-इन रजिस्ट्रेशन को कैसे रजिस्टर्ड कराएँ, इसके लिए चार महत्वपूर्ण बिंदुओं में बताया गया है कि किस तरह से इसका रजिस्ट्रेशन होगा।
1-लिव-इन रिलेशनशिप में रह रहे, या लिव-इन रिलेशनशिप शुरू करना चाहते हैं, तो आपको रजिस्ट्रार ऑफिस में स्टेटमेंट जमा कराना होगा। यानी इसका रजिस्ट्रेशन कराना होगा।
2- रजिस्ट्रार स्टेटमेंट की जाँच करेगा और उसके सही पाए जाने पर आगे की प्रक्रिया को बढ़ाएगा। इसमें सेक्शन 380 (प्रतिबंधित रिश्तों) के तहत बताए रिश्तों को मान्यता नहीं मिलेगी।
3- रजिस्ट्रार दावों की पुष्टि के लिए आवेदक को बुला सकता है। सभी कागजातों की जाँच करने और संतुष्ट नहीं होने पर अधिकारी अन्य साक्ष्य या कागजात की माँग कर सकता है।
रजिस्ट्रार को मेनटेन करना होगा रजिस्टर : लिव-इन रिलेशनशिप के रजिस्ट्रेशन से लेकर संबंध विच्छेद तक की पूरी जानकारी रजिस्ट्रार को रखनी पड़ेगी। इसके लिए कानूनी व्यावधान किए गए हैं।
लिव-इन रिलेशनशिप का रिश्ता खत्म करने का फैसला: लिव-इन रिलेशनशिप में रह रहे युगल, या उनमें से कोई भी एक रजिस्ट्रा ऑफिस में स्टेटमेंट जमा करके इस रिस्थे को खत्म करने की अपील कर सकता है। अगर एक व्यक्ति ऐसा कर रहा है, तो उसे रजिस्ट्रार के साथ ही दूसरे साथी को भी इसकी एक प्रति देगा, यानी लिखित में उसे लिव-इन रिलेशनशिप से बाहर निकलने की जानकारी देनी होगी।
लिव-इन रिलेशनशिप से जुड़ी रजिस्ट्रार की जिम्मेदारियाँ
1-इस कानून के लागू हो जाने के बाद रजिस्ट्रार की जिम्मेदारियाँ बढ़ जाएँगी, क्योंकि उसे स्थानीय पुलिस थाने में इसकी सूचना देनी पड़ेगी। अगर युगल की उम्र 21 वर्ष से कम होगी, तो उनके माता-पिता को भी सूचना देनी पड़ेगी।
2- अगर लिव-इन पार्टनर द्वारा रजिस्ट्रार को दी गई जानकारी गलत पाई जाती है या कोई शक होता है तो रजिस्ट्रार तुरंत इसकी सूचना स्थानीय थाना अधिकारी को देंगे।
3-अगर लिव-इन रिलेशनशिप का रिश्ता तोड़ने के लिए एक पक्ष आगे बढ़ता है तो रजिस्ट्रार के सामने अपना स्टेटमेंट दर्ज कराएगा। रजिस्ट्रार इसकी सूचना दूसरे पक्ष को देगा। अगर जोड़े में से एक कोई 21 वर्ष से कम उम्र का/की है तो उनके माता-पिता को भी इस बारे में सूचना दी जाएगी।
लिव-इन रिलेशनशिप की सूचना न देने पर रजिस्ट्रा को इस बारे में जानकारी मिलती है तो वो एक नोटिस जारी करेगा। इस नोटिस के जारी करने के 30 दिन के भीतर जोड़े को अपना स्टेटमेंट जमा कराना होगा और रजिस्ट्रेशन की प्रक्रिया को पूरा करना होगा। अगर ऐसा नहीं किया तो कानूनी कदम उठाए जा सकते हैं।
कानूनी कार्रवाई और दंड प्रक्रिया
1- लिव-इन रिलेशनशिप में रहने वाले जोड़े अगर एक माह के अंदर रजिस्ट्रेशन नहीं कराते हैं और ये दोष साबित हो जाता है तो उन्हें तीन माह की जेल और 10 हजार रुपए तक जुर्माना लगाया जा सकता है।
2- लिव-इन रिलेशनशिप के रजिस्ट्रेशन के दौरान जानकारी छिपाने जैसे मामलों में रजिस्ट्रार उनका रजिस्ट्रेशन भी रद्द कर सकता है। इसके लिए उसे तीन माह तक की जेल और 25 हजार रुपए तक का जुर्माना या दोनों दंड साथ दिए जा सकते हैं।
3-लिव-इन रिलेशनशिप में रहने वाले जोड़े अगर स्टेटमेंट दर्ज नहीं कराते हैं और नोटिस का भी जवाब नहीं देते हैं तो ऐसे लोगों को 6 माह की सजा और 25 हजार रुपए का जुर्माना या दोनों दंड लगाए जा सकते हैं।
लिव-इन रिलेशनशिप के बाद भरण-पोषण की जिम्मेदारी: अगर एक महिला को उसका लिव-इन पार्टनर छोड़ता है तो वो भरण-पोषण के खर्चे को क्लेम कर सकती है। इसके लिए वो तय नियमों के तहत कोर्ट का सहारा ले सकती है।
बता दें कि समान नागरिक संहिता विधेयक के ड्राफ्ट को पाँच सदस्यीय पैनल ने 2 फरवरी 2024 को उत्तराखंड सरकार को सौंपा था। इस पैनल की अध्यक्षता सुप्रीम कोर्ट की पूर्व जज रंजना देसाई कर रही थीं। इस विधेयक को पेश करने के साथ ही उत्तराखंड देश का पहला ऐसा राज्य बन गया है, जहाँ UCC कानून लाने की प्रक्रिया शुरू की गई है।