सर्वेश तिवारी श्रीमुख
यदि आप भारत के सम्बंध में यह बात कहते हैं तो यकीन मानिये, आपने धर्म का ‘ध’ भी नहीं जाना। सनातन धर्म विज्ञान का विरोध नहीं करता, कभी नहीं करता। विज्ञान धर्म का विरोधी नहीं, बल्कि धर्म का हिस्सा है।
आज से लगभग दो हजार वर्ष पूर्व जब आर्यभट्ट ने कहा कि हमारी पृथ्वी अपने अक्ष पर निरंतर घूमती है, तो क्या उनका विरोध हुआ? नहीं हुआ। बल्कि उन्हें समाज ने ऋषि की प्रतिष्ठा दी। वराहमिहिर ने जब सिद्धांत दिया कि पृथ्वी के अंदर की शक्ति(गुरुत्वाकर्षण) हर वस्तु को उससे चिपकाए रखती है, तो क्या किसी ने इसे अधर्म कहा? नहीं। इन दोनों ही वैज्ञानिकों ने माना था कि पृथ्वी गोल है। आज से डेढ़ दो हजार वर्ष पूर्व के सामान्य जन के लिए यह बिल्कुल ही नई और अटपटी बात रही होगी कि पृथ्वी गोल है। पर क्या तब के धार्मिक समाज ने इसके लिए उन्हें अधर्मी बताया? नहीं।
वस्तुतः सारी गलतफहमी तब शुरू होती है जब हम धर्म का आकलन पश्चिमी मान्यताओं के आधार पर शुरू करते हैं। पश्चिम में आध्यात्म का जो स्वरूप है, वह भारतीय मान्यताओं के हिसाब से केवल एक सम्प्रदाय है, धर्म नहीं है।
अब प्रश्न है कि धर्म क्या है? प्रकृति और विश्व के कल्याण की भावना के साथ शास्त्रों में वर्णित धर्म के दसों गुणों (धैर्य, क्षमा, संयम, चोरी न करना, स्वच्छता, इंद्रियों को वश में रखना, बुद्धि, विद्या, सत्य और अक्रोध) को धारण कर के जीवन जीना धर्म है। यदि कोई व्यक्ति या सम्प्रदाय इन गुणों को धारण नहीं करता, तो वह अधर्मी है। तो भइया, इसमें विज्ञान का विरोध कहाँ है?
धर्म कोई जड़ विचार नहीं, वह चैतन्य है, लचीला है। विज्ञान का जो अनुसंधान जगत के हित में हो वह धर्म है, जो संसार के हित में न हो वह अधर्म। कई बार एक ही वस्तु उपयोग के आधार पर धर्म और अधर्म दोनों का हिस्सा हो सकती है। आतताइयों से अपने राष्ट्र की प्रजा की रक्षा करने के लिए सीमा पर खड़े सैनिक के हाथ की बंदूक धर्म का हिस्सा होती है, पर किसी राष्ट्र का नाश करने निकले आतंकी के हाथ में वही बंदूक अधर्म का हिस्सा!
अब तनिक चन्द्रमा पर अपनी मान्यताओं की बात कर लें। हमारे हिसाब से चन्द्रमा ग्रह है। पर विज्ञान के अनुसार चन्द्रमा ग्रह नहीं उपग्रह है। अब आप कहेंगे कि दोनों विरोधी बातें हो गईं। पर ऐसा नहीं है। हमारी परिभाषा के अनुसार ग्रह वे आकाशीय पिंड हैं जिनका प्रभाव धरती के जीवन पर पड़ता हो। अब यह विज्ञान भी मानता है न कि चन्द्रमा का प्रभाव पृथ्वी पर पड़ता है। पर विज्ञान की प्लैनेट को लेकर परिभाषा यह है कि जो पिंड सूर्य का चक्कर लगाता हो वह प्लैनेट है। इस परिभाषा के आधार पर चन्द्रमा प्लैनेट नहीं सिद्ध होता। तो यह केवल परिभाषा का अंतर है, इसमें विरोध तो कहीं नहीं है।
किसी ने कहा कि चन्द्रमा अब पूज्य नहीं रहे। यह नितांत मूर्खतापूर्ण बात है। हमारे लिए तो सृष्टि का कण कण पूज्य है। और फिर चंद्रयान या मनुष्यों के ही चन्द्रमा पर पहुँच जाने भर से पृथ्वी पर पड़ने वाला उसका प्रभाव तो कम नहीं हो जाता? पृथ्वी पर चन्द्र का प्रभाव बना ही रहेगा, और वे हमारे पूज्य भी बने ही रहेंगे।