काली कमाई का पहाड़… ED ने 3 महीने में जब्त किया 100 करोड़ कैश, अब क्या होगा इन रुपयों का?

नई दिल्ली। आपने प्रवर्तन निदेशालय (ED) का नाम बीते 3 महीनों में कई बार सुना होगा. बंगाल में पार्थ चटर्जी और अर्पिता मुखर्जी का मामला हो या शनिवार को कोलकाता के एक व्यापारी के ठिकानों पर छापे का, सभी में ईडी एक कॉमन फैक्टर है. वैसे ईडी की इन कार्रवाइयों को लेकर राजनीतिक दलों का अपना घमासान है, लेकिन यहां बात हो रही है इस दौरान पकड़े गए करीब 100 करोड़ रुपये के कैश की. सवाल ये है कि ईडी जब ये रुपया जब्त करता है, तो उसका क्या होता है? चलिए हम बताते हैं…

जब ED ने की अपनी सबसे बड़ी जब्ती

अब कुछ हफ्ते पहल चलते हैं, जब ED ने अपने इतिहास की सबसे बड़ी छापेमारियों में से एक को अंजाम दिया था. पश्चिम बंगाल सरकार के पूर्व मंत्री पार्थ चटर्जी जहां शिक्षक भर्ती घोटाले में फंसे हैं, तो उनकी सहयोगी अर्पिता मुखर्जी के घर से ईडी ने लगभग 50  करोड़ रुपये का कैश जब्त किया था. इसे गिनने में 24 घंटे से ज्यादा का वक्त लगा. हालत ये थी कि नोट गिनने का काम करने वाले बैंक कर्मचारी भी थककर चूर हो गए, और इससे कुछ दिन पहले ही झारखंड खनन घोटाले से जुड़े एक मामले में भी ईडी ने 20 करोड़ नकदी की जब्ती की थी. इसके अलावा सोना-चांदी, गहने, रत्न वगैरह अलग से जब्त किया गया है.

पकड़े गए कैश का क्या करती है ED?

अब सवाल ये है कि ईडी इतना ज्यादा रुपया पकड़ती है, तो उसका करती क्या है? हम आपको बता देते हैं कि कानून के हिसाब से ईडी कां रुपया जब्त करने की अनुमति तो है, ये पैसा उसके पर्सनल खाते (PD) में जमा भी होता है, लेकिन वो इसका इस्तेमाल नहीं कर सकती. दरअसल जब्ती के बाद आरोपी को पैसे के सोर्स और वैध कमाई होने के सबूत देने का मौका दिया जाता है. जब तक इससे जुड़ा केस चलता है, तब तक ये कैश ईडी के पास पड़ा रहता है. अगर आरोपी अपनी इनकम का सोर्स साबित कर देता है और कोर्ट उसे मामले मे बरी कर देती है तब तो उसे ये रकम मिल जाती है. वहीं अगर वो ऐसा करने में असफल रहता है, तब इस रकम को गलत तरीके से अर्ज किए गए धन के दायरे में रखा जाता है. हालांकि तब भी इस रकम पर ईडी का दावा नहीं होता. तो फिर किसका होता है? ये हम आपको आगे बताते हैं, पहले जानते हैं कि ईडी किसी कैश को जब्त कैसे करती है?

दर्ज होती है हर तरह के नोट की डिटेल

ईडी छापे में पकड़े गए कैश की जब्ती मनी लॉन्ड्रिंग रोकथाम कानून के तहत करती है. जब्ती के लिए ईडी भारतीय स्टेट बैंक (SBI) के अधिकारियों को बुलाती है. उनकी मौजूदगी में कैश की गिनती होती है. गिनती पूरी होने के बाद एक लिस्ट तैयार की जाती है, जिसे जब्ती मेमो (Seizure Memo) कहते हैं. इसमें बरामद की गई कुल रकम दर्ज की जाती है. साथ ही ये भी दर्ज किया जाता है कि 2000 के कितने नोट, 500 के कितने, 200 के कितने और 100 के कितने नोट हैं. ये वैसे ही होता है जब आप बैंक में कैश जमा करने जाते हैं, तब पर्ची पर नोटों की संख्या दर्ज करते हैं. इसके बाद एक स्वतंत्र गवाह की मौजूदगी में इस कैश को बक्से में भरकर सील कर दिया जाता है. इस कैश को स्टेट बैंक ऑफ इंडिया की स्थानीय ब्रांच में भेज दिया जाता है, जहां ये ED के PD में जमा कर दिए जाते हैं. एक तरह से समझें तो ये खाता केन्द्र सरकार का खजाना होता है. इस पैसे का इस्तेमाल ना तो ईडी, ना बैंक और ना ही सरकार कर सकते हैं. जब्ती का मुख्य मकसद आरोपी को उसका तत्काल इस्तेमाल करने से रोकना होता है.

जब्ती के बाद ईडी एक अस्थायी जब्ती आदेश जारी करती है. फिर इस जब्ती की पुष्टि की जाती है. अगर आरोपी इस कैश और आय का सोर्स नहीं बता पाता, तब इस रकम पर केन्द्र सरकार का दावा होता है और ये केन्द्र सरकार के खजाने में जमा हो जाता है.