सर्वेश तिवारी श्रीमुख
हप्ते भर पहले ही विद्यापति नगर से वह बर्बर तस्वीर आयी थी, जब घोर दरिद्रता के कारण एक ब्राह्मण परिवार ने दो छोटे छोटे बच्चों समेत सामूहिक फाँसी लगा ली थी। उस तस्वीर पर किसी को शर्म नहीं आयी। न सत्ता को, न विपक्ष को, न बौद्धिक जगत को… शायद उन लाशों में टीआरपी नहीं थी, जाति का गणित अनुकूल नहीं था, उनमें वोट खींच लेने की शक्ति नहीं थी। फिर कौन बोले? क्यों बोले? अंततः अब सबकुछ धन्धा ही तो है।
और अब यह तस्वीर आयी है। पोस्टमार्टम हाउस के कर्मचारियों से अपने बेटे का शव लेने के बदले में घूस देने के लिए इस विपन्न परिवार ने नगर में भीख मांगी।
यह मेरा बिहार है। वह बिहार, जो कागजी आंकड़ों में सबसे अधिक विकास दर होने का दावा करता है। वह बिहार, जो सबसे अधिक आईएस/आईपीएस देने का दावा करता है…
हमारे मुख्यमंत्री को राज्य की दरिद्रता व्यथित नहीं करती, वे अब अपनी हर सभा मे केवल शराब की बात करते हैं। शराब से अधिक शराबबंदी का नशा हावी है।
हमारा मुख्य विपक्षी दल भी सत्ता पक्ष से संतुष्ट है। वे इतने से ही खुश हैं कि जातिगत जनगणना होने जा रही है। जनगणना के बाद वे राज्य को बताएंगे कि चूंकि मेरी जाति की जनसंख्या सबसे अधिक है, इसलिए सत्ता पर मेरा अधिकार है। सत्ता पक्ष का लक्ष्य भी वही है।उन्हें भी उम्मीद है कि जनगणना के बाद उनकी जाति की संख्या ही सबसे अधिक निकलेगी… दोनों सत्ता पर अपना स्थाई दावा बनाने के लिए प्रयासरत्त हैं। इन सब के बीच जनता की पीड़ा किसी के लिए मुद्दा नहीं…
पर मैं तेजस्वी से प्रश्न क्यों पूछूँ? वे तो बीस वर्षों से सत्ता से बाहर हैं। मुख्यमंत्री पिछले बीस वर्ष से लालू परिवार का भय दिखा कर ही वोट लेते रहे हैं। फिर लालू परिवार से तो प्रश्न बनता ही नहीं। पर क्या यही है कथित सुशासन? पर पूछे कौन? मगध का बूढ़ा शासक अब प्रश्नों से चिढ़ कर तलवार खींच लेता है।
विकल्पहीनता का जितना अनुचित लाभ नीतीश ने उठाया, उतना भारत के इतिहास में और किसी ने नहीं उठाया। वे पिछले दस वर्षों से निश्चिन्त सो रहे हैं कि लालू यादव के जंगलराज को देख चुकी जनता अंततः मेरे ही पास आएगी। फिर आँख उठा कर प्रजा की ओर देखने का कष्ट क्यों उठाना…
मुख्यमंत्री इस विकल्पहीनता का और जितना लाभ उठा लें, पर भविष्य उन्हें इस राज्य के दुर्भाग्य के रूप में ही याद रखेगा। धिक्कार है…