श्रीलंका अब तक के सबसे बड़े आर्थिक संकट से जूझ रहा है. प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे के पद से इस्तीफा देने के बाद भी लोगों का गुस्सा शांत नहीं हो रहा और यह प्रदर्शन हिंसक हो गया है. हंबनटोटा में राजपक्षे परिवार के पैतृक घर को प्रदर्शनकारियों ने फूंक दिया. इसके साथ ही कई मंत्रियों और पूर्व मंत्रियों के भी घर जला दिए गए हैं. हिंसा में अब तक एक सांसद सहित आठ लोगों की मौत हो गई है और 250 से अधिक लोग घायल बताए जा रहे हैं. हिंसा को लेकर महिंदा राजपक्षे की गिरफ्तारी की भी मांग की जा रही है.
राजपक्षे परिवार की नीतियों और निरंकुशता जिम्मेदार?
साल 2010 में वो फिर से राष्ट्रपति चुने गए. सबसे बड़े भाई चमल राजपक्षे को भी सत्ता में महत्वपूर्ण स्थान दिया गया और वो कई बार मंत्री रहे. इसे लेकर राजपक्षे परिवार पर परिवारवाद, निरंकुशता और सरकारी संसाधनों के गलत इस्तेमाल के आरोप लगने लगे. एक वक्त कहा जाने लगा कि राजपक्षे परिवार देश की 70 फीसद बजट पर प्रत्यक्ष नियंत्रण रखता है.
इन्हीं आरोपों-प्रत्यारोपों के बीच साल 2015 का राष्ट्रपति चुनाव महिंदा राजपक्षे हार गए. लेकिन साल 2019 में फिर से राजपक्षे परिवार श्रीलंका के सबसे बड़े पद पर काबिज हुआ. इस बार महिंदा राजपक्षे के भाई गोटाबाया राजपक्षे राष्ट्रपति चुने गए. उनके सत्ता में आते ही भाई महिंदा राजपक्षे प्रधानमंत्री चुन लिए गए.
गोटाबाया के भाई बासिल राजपक्षे फिलहाल श्रीलंका के वित्त मंत्री हैं और चमल राजपक्षे कृषि मंत्री हैं. चमल साल 1989 से ही श्रीलंका के सांसद हैं. महिंदा राजपक्षे के बेटे नमल राजपक्षे श्रीलंका के युवा और खेल मंत्री हैं. राजपक्षे परिवार से लगभग 7 लोग श्रीलंका की सत्ता के शीर्ष पदों पर काबिज हैं, जिसे लेकर विपक्ष सहित लोगों में भी गुस्सा भरा है.
गोटाबाया राजपक्षे पर भी निरंकुशता के आरोप लगते रहे हैं. ऐसे भी आरोप हैं कि जो भी मंत्री उनकी नीतियों की आलोचना करते हैं, उन्हें अपने पद से इस्तीफा देना पड़ता है.
ऐसा ही एक मामला कुछ समय पहले श्रीलंका के प्रमुख सासंद विजेदास राजपक्षे को लेकर आया था. वो राजपक्षे सरकार में न्याय और शिक्षा मंत्री रह चुके हैं. वो श्रीलंका में चीन की कर्ज नीति और सरकार की खराब आर्थिक नीतियों के बड़े आलोचक रहे हैं. हॉन्गकॉन्ग पोस्ट की एक रिपोर्ट के मुताबिक, इसी कारण विजेदास को अपने मंत्रीपद से इस्तीफा देना पड़ा था. सासंद विजेदास अब भी सरकार की आलोचना करने से परहेज नहीं करते हैं. श्रीलंका में आपातकाल और विदेशी मुद्रा संकट के चलते केंद्रीय बैंक के प्रमुख ने भी अपना पद छोड़ दिया था.
श्रीलंका में ईंधन की भारी कमी है. पेट्रोलियम प्रोडक्ट्स की कमी होने से सरकारी यातायात ठप पड़ा है और लोग निजी वाहनों का भी इस्तेमाल नहीं कर पा रहे क्योंकि ईधन तेल न होने से कई पेट्रोल पंप बंद पड़े हैं. जहां तेल मिल रहा है वहां सेना की मौजूदगी है ताकि भीड़ के कारण किसी तरह की अव्यवस्था न पैदा हो. हाल ही में श्रीलंका में तेल की लंबी लाइन में खड़े दो लोगों की मौत हो गई थी जिसके बाद सरकार ने ये फैसला लिया है.
श्रीलंका के बिजलीघरों को भी पर्याप्त ईंधन नहीं मिल पा रहा है. श्रीलंका के लोगों को लगभग 13 घंटे अंधेरे में गुजारना पड़ रहा है. ईंधन की कमी से कई बिजलीघर बंद कर दिए गए हैं.
देश में जरूरी दवाइयों और मेडिकल सामानों की भी भारी किल्लत है जिसे देखते हुए कई अस्पतालों ने सर्जरी रोक दी है. इस कारण श्रीलंका में कई बीमार लोगों के जान जाने का खतरा भी पैदा हो गया है.
श्रीलंका में फिलहाल सभी जरूरी सामानों की भारी कमी है. एक किलो चावल के लिए लोगों को पांच सौ श्रीलंकाई रुपये देने पड़ रहे हैं और चीनी की भी यही हालत है. फल और सब्जियां निम्न और मध्यम वर्ग की पहुंच से दूर हो गई हैं. सब्जियों की कीमत हजारों रुपये तक पहुंच गई है.
ब्रेड इतने महंगे हो गए हैं कि गरीब लोग उन्हें खरीद नहीं पा रहे हैं और भूखे रहने को मजबूर हैं. श्रीलंका के कई लोग देश छोड़कर पड़ोसी देश भारत आ रहे हैं. गंभीर खाद्यान्न संकट के लिए विशेषज्ञों का मानना है कि सरकार की खराब नीति जिम्मेदार है.
अप्रैल 2021 में श्रीलंका की सरकार ने देश में जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों के आयात पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया था. कृषि में अचानक हुए इस बदलाव से उत्पादन बिल्कुल घट गया.
जैविक उर्वरकों का इस्तेमाल कर जिन किसानों ने खेती की, उनका उत्पादन भी बेहद कम हुआ. श्रीलंका के लगभग 90% किसान खेती के लिए रासायनिक उर्वरकों का इस्तेमाल करते हैं लेकिन सरकार के प्रतिबंध ने लोगों की खेती पर ग्रहण लगा दिया. फल, सब्जियों और अन्न का उत्पादन बिल्कुल कम हो गया और देश में सभी जरूरी खाद्यान्नों की किल्लत शुरू हो गई जो अब सबसे बुरी स्थिति में पहुंच चुकी है.
सवाल उठता है कि श्रीलंका सभी जरूरी सामानों का आयात क्यों नहीं कर रहा? दरअसल, श्रीलंका का विदेशी मुद्रा भंडार खाली हो चुका है और उस पर चीन, जापान, भारत जैसे देशों का कर्ज भी बढ़ता जा रहा है. श्रीलंका का विदेशी मुद्रा भंडार जनवरी से 70% तक गिर गया है. इस वजह से आयात रुक गया है.
चीन ने श्रीलंका में काफी निवेश किया है और कहा जाता है कि श्रीलंका की ये हालत चीन के कर्जजाल में फंसने के कारण हुई है. साल 2019 में सरकार ने अपनी विदेशी कर्ज की अरबों रुपये की किस्त चुकाने के लिए सभी जरूरी सामानों के आयात पर प्रतिबंध लगा दिया था. अब भी श्रीलंका पर कई देशों सहित अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष का भारी कर्ज है लेकिन वो कर्जों की किस्त तक नहीं दे पा रहा.
श्रीलंका की इस स्थिति के लिए कोविड महामारी को भी बड़ा कारण बताया जा रहा है. पर्यटन पर निर्भर श्रीलंका की अर्थव्यवस्था को कोविड ने पूरी तरह चौपट कर दिया और लाखों लोगों का रोजगार छिन गया.