देहरादून। उत्तराखंड में तीरथ सिंह रावत के इस्तीफे के बाद एक बार फिर पहाड़ी राज्य में अस्थिरता का दौर शुरू हो गया है. राज्य को चार महीने पहले ही नया मुख्यमंत्री मिला था, लेकिन अब उन्हें भी विदाई दे दी गई है. उत्तराखंड के 21 साल के इतिहास पर नजर दौड़ाएं तो समझ आता है कि तमाम पार्टियों ने इस राज्य को ‘मुख्यमंत्री परिवर्तन’ की प्रयोगशाला बना दिया है. सीएम के खिलाफ नाराजगी तो इस्तीफा, भ्रष्टाचार के आरोप लगे तो इस्तीफा, चुनाव नजदीक तो भी इस्तीफा. सिर्फ मौके बदल जाते हैं लेकिन उत्तराखंड में मुख्यमंत्रियों का यूं बिना कार्यकाल पूरा करे बदलन जाने का सिलसिला नहीं थमता.
बीजेपी को कई बार उत्तराखंड में सरकार बनाने का मौका मिला है. अकेले बीजेपी ने ही राज्य में 6 बार अपने मुख्यमंत्रियों को बदला है, अब सातवीं बार फिर वे ऐसा कर नए सियासी समीकरण साधने का प्रयास कर रहे हैं. साल 2000 में जब उत्तराखंड को अलग राज्य घोषित किया गया था, तब बीजेपी के नित्यानंद स्वामी को सीएम पद दिया गया था. उन्होंने कुछ समय के लिए उस अंतरिम सरकार को संभाला भी, लेकिन फिर एक साल पूरा होने से पहले ही उनकी जगह भगत सिंह कोश्यारी को मुख्यमंत्री बना दिया गया. बताया जाता है कि 2002 के विधानसभा चुनाव को देखते हुए बीजेपी ने ये बड़ा फैसला लिया था.
2007 में बीजेपी ने बीसी खंडूरी को बनाया सीएम
एनडी तिवारी के बाद 2007 में एक बार फिर बीजेपी की उत्तराखंड में वापसी हुई और उन्हें लोगों द्वारा स्पष्ट जनादेश दिया गया. मुख्यमंत्री के रूप में मेजर जनरल बीसी खंडूरी को चुन लिया गया. अब उन्हें सत्ता को संभाले दो ही साल हो पाए थे कि खबरें चल पड़ीं कि कई विधायक खंडूरी से नाराज हैं. उस नाराजगी का परिणाम बीसी खंडूरी को अपनी कुर्सी खोकर चुकाना पड़ा. बीजेपी ने एक बार फिर अपना मुख्यमंत्री बदला और ब्राह्मण चेहरे के रूप में रमेश पोखरियाल निशंक को सीएम बना दिया. लेकिन क्योंकि 2012 के विधानसभा चुनाव करीब थे, ऐसे में बीजेपी को निशंक के नेतृत्व पर भी ज्यादा भरोसा नहीं रहा और राज्य में एक बार फिर जनरल बीसी खंडूरी की वापसी हो गई.
2013 ने कांग्रेस ने बदला अपना सीएम
लेकिन उत्तराखंड ने फिर साल 2002 वाली कहानी को दोहराया और बीजेपी के सीएम बदलने वाले पैंतरे को ही खारिज कर दिया. जब चुनाव परिणाम आए तब बीजेपी ने तो सत्ता गंवाई ही दी थी, इसके अलावा जनरल बीसी खंडूरी भी अपनी सीट नहीं बचा पाए. कांग्रेस को फिर राज्य की जिम्मेदारी मिल गई और विजय बहुगुणा को सीएम बना दिया गया. लेकिन मुख्यमंत्री बदलने की प्रथा कांग्रेस ने भी नहीं तोड़ी.
जब 2013 में केदारनाथ में भयानक बाढ़ आई, तब सीएम विजय बहुगुणा पर कई सवाल खड़े कर दिए गए. उनकी नीतियों को भी फेल बताया गया और उनकी कार्यशैली भी विपक्ष के निशाने पर रही. उसी नाराजगी को समझते हुए कांग्रेस ने विजय बहुगुणा को सीएम पद से हटा दिया और उनकी जगह हरीश रावत को उत्तराखंड की बागडोर सौंप दी गई. लेकिन हरीश रावत के लिए सीएम की कुर्सी स्थाई नहीं रही और दो साल बाद ही पार्टी नेताओं ने उनके खिलाफ बगावत कर दी. उनसे नाराज चल रहा एक धड़ा सीधे बीजेपी से जा मिला और राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया. बाद में सुप्रीम कोर्ट ने जरूर हरीश रावत को उस मामले में राहत दी, लेकिन उन्हें उनकी किस्मत का ज्यादा साथ नहीं मिला.
2017 में बीजेपी ने त्रिवेंद्र को बनाया मुख्यमंत्री
2017 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने फिर कांग्रेस के हाथों से सत्ता छीन ली और राज्य में अपनी पूर्ण बहुमत वाली सरकार बनाई. इस बार बीजेपी ने त्रिवेंद्र सिंह रावत को बतौर मुख्यमंत्री चुना और उन्होंने चार साल तक का सफर तय भी किया. लेकिन फिर दोबारा चुनाव से एक साल पहले त्रिवेंद्र से भी सीएम कुर्सी छीन ली गई. ऐसा कहा गया कि राज्य में कई बीजेपी नेता ही त्रिवेंद्र की कार्यशैली से खुश नहीं थे, ऐसे में उनका पत्ता काट दिया गया और तीरथ सिंह रावत को सीएम बनाने का फैसला हुआ.
अब तीरथ का इस्तीफा, कौन होगा नया सीएम?
लेकिन तीरथ सिंह ने सीएम बनते ही विवादों संग अपना ऐसा नाता रखा कि कई मौकों पर वे विपक्ष के निशाने पर भी आए और कई बार पार्टी को भी उनके बयानों पर सफाई पेश करनी पड़ गई. अब उनको सीएम बने चार ही महीने हुए थे कि उनका इस्तीफा भी राज्यपाल को सौंप दिया गया है. वजह बताई गई है कि अभी राज्य में उपचुनाव नहीं हो सकते हैं. इस वजह से संवैधानिक संकट खड़ा ना हो, इसलिए इस्तीफा दे दिया गया है.
अब फिर उत्तराखंड में चुनाव करीब है, राज्य को फिर नया सीएम मिलने जा रहा है, बीजेपी अपनी 10 साल की सत्ता में सातवीं बार किसी शख्स को सीएम बनाने जा रही है, ऐसे में फिर अस्थिरता के बीच पहाड़ी राज्य कई नाटकीय मोड़ का गवाह बनने जा रहा है. सीएम की रेस में सतपाल सिंह और धनसिंह रावत का नाम जोर पकड़ रहा है. अब किसकी ताजपोशी बीजेपी द्वारा की जाती है, ये आज साफ हो जाएगा.