लखनऊ। उत्तर प्रदेश में योगी सरकार अपने चार साल का सियासी सफर पूरा होने जा रही है और अभी से ही अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए राजनीतिक बिसात बिछाई जाने लगी है. योगी सरकार से मुकाबले के लिए साल 2022 में विपक्ष दलों के बीच उन्नीस-बीस की लड़ाई होती नजर आ रही है. सपा से लेकर बसपा और कांग्रेस के बीच सूबे में मुख्य विपक्षी दल बनने की होड़ लगी हुई है ताकि बीजेपी के मुकाबले कौन के सवाल का सियासी संदेश दिया जा सके.
सपा स्वाभाविक रूप से विपक्ष का दावेदार
सूबे की राजनीति को अगर आंकड़ों के हिसाब से समझने की कोशिश करें, तो अखिलेश यादव की अगुवाई वाली समाजवादी पार्टी स्वाभाविक रूप से मुख्य विपक्षी दल है. सपा 49 विधायकों के साथ विधानसभा में विपक्ष की सबसे बड़ी पार्टी है और बीजेपी के बाद दूसरी पार्टी है. सपा के पास उत्तर प्रदेश से 5 सांसद भी हैं. ऐसे में कोरोना काल में गायब रहने के बाद अखिलेश अब एक बार फिर से जमीनी स्तर पर सक्रिय हुए हैं. यूपी के तमाम मुद्दों पर सरकार को घेरने के साथ-साथ खुद को योगी के विकल्प के तौर पर पेश कर रहे हैं.
सपा प्रमुख ने अपने संगठन को दुरुस्त करने के साथ-साथ जमीन पर भी उतरकर अपने सियासी समीकरण को साधने की कवायद शुरू कर दी है. वो मंदिर से लेकर मजार तक जाकर माथा टेक रहे हैं. आजम खान को लेकर अभी तक चुप रहने वाली सपा ने अब उनकी रिहाई के लिए रामपुर से यात्रा निकाली. अखिलेश यादव किसान पंचायत के जरिए रैलियों को संबोधित कर रहे हैं. कृषि कानून के खिलाफ खुद भी लखनऊ की सड़क पर उतरे थे, जिसके लिए उन्हें गिरफ्तार भी किया गया था. इसके अलावा सूबे में हो रही घटनाओं को लेकर योगी सरकार को निशाने पर भी ले रहे हैं.
‘यूपी में योगी के विकल्प अखिलेश’
सपा के एमएलसी सुनील साजन कहते हैं कि यूपी में बीजेपी का विकल्प सपा ही है. मौजूदा सपा के विधायकों की संख्या भले ही कम हो, लेकिन जनता के मुद्दों को उठाने में सड़क से लेकर सदन तक में हम पीछे नहीं रहे है. पिछले चार सालों में हमने योगी सरकार की जनविरोधी नीतियों का पुरजोर तरीके से विरोध किया है. सूबे में जिन लोगों ने बीजेपी को 2017 में वोट देकर जिताया है वो आज अखिलेश यादव की सरकार को याद कर रहे हैं, क्योंकि तमाम घटनाओं और पीड़ितों के साथ सपा खड़ी ही नहीं बल्कि हर संभव मदद भी करने का काम किया है. 2022 में अखिलेश यादव के नेतृत्व में सपा ही सूबे की सत्ता से बीजेपी को बेदखल करने का काम करेगी. इस बात को दूसरी राजनीतिक दलों के नेता भी समझ रहे हैं और वो इसीलिए अखिलेश यादव के साथ जुड़ रहे हैं.
मायावती सोशल मीडिया पर उठाती रही आवाज
उत्तर प्रदेश की सियासत में 2012 के बाद से मायावती की पार्टी बसपा का ग्राफ नीचे गिरना शुरू हुआ और 2017 में सबसे निराशाजनक प्रदर्शन किया, लेकिन 2019 लोकसभा चुनाव नतीजे के आधार पर देखें तो बसपा की यूपी में मुख्य विपक्षी दल की दावेदारी बनती है. बसपा के 10 सांसद जीतकर आए तो लगा की सूबे में सपा को बेदखल कर मुख्य विपक्षी दल की जगह लेगी, लेकिन मायावती न तो सड़क पर उतरीं और न बीजेपी सरकार के खिलाफ उनके वो तेवर नजर आए जिनके लिए वो जानी जाती हैं.
हालांकि, मायावती तमाम मुद्दों पर बीजेपी सरकार को सलाह देने के साथ-साथ सोशल मीडिया के जरिए जरूर निशाने पर लिया, लेकिन अब यूपी के चुनाव को लेकर जरूर सक्रिय हुई हैं और साथ ही उन्होंने साफ कर दिया है कि 2022 के चुनाव में वो किसी भी पार्टी के साथ मिलकर नहीं लड़ेंगी बल्कि अकेले किस्मत आजमाएंगी. बसपा ने पंचायत चुनाव की तैयारी शुरू कर दी है और खुद मायावती ने पार्टी नेताओं की लखनऊ में बैठक लेकर दिशा निर्देश दिए हैं. इसके अलावा उन्होंने अपने संगठन में भी बड़े बदलाव किए हैं.
योगी के खिलाफ कांग्रेस सड़क पर करती रही संघर्ष
वहीं, कांग्रेस महासचिव व यूपी की प्रभारी प्रियंका गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस सिर्फ सक्रिय ही नजर नहीं आईं बल्कि लड़ती हुई भी नजर आई है. कोरोना संकट काल में कांग्रेस ने मजदूरों की घर वापसी का मुद्दा उठाया तो वहीं उत्तर प्रदेश की सड़कों पर उतरकर योगी सरकार को घेरती नजर आई हैं, इससे साफ जाहिर होता है कि कांग्रेस भी किसी तरह से राज्य मुख्य विपक्षी दल की भूमिका में आना ही चाहती है. कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष अजय लल्लू ने सड़क से लेकर सदन तक में योगी सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल रखा है.
सोनभद्र के नरसंहार से लेकर हाथरस और उन्नाव सहित तमाम मामलों में प्रियंका गांधी आक्रामक रहीं और घटना स्थल पर पहुंचकर योगी सरकार को घेरा. सीएए-एनआरसी के मुद्दे पर कांग्रेस खुलकर आंदोलनकारियों के साथ खड़ रही है. इतना ही नहीं प्रियंका गांधी सूबे में सीएए आंदोलन में मरने वालों के परिवारों से जाकर मुलाकात की थी. योगी सरकार ने भी कांग्रेस से इस हमले का जितनी तेजी से जवाब दिया, उससे भी लगा कि उत्तर प्रदेश में राजनीति कांग्रेस और बीजेपी के बीच सिमट रही है. वहीं, अब किसानों के मुद्दे को लेकर प्रियंका गांधी लगातार सूबे में किसान आंदोलन करके योगी सरकार के खिलाफ दो-दो हाथ कर रही हैं.
‘सड़क से सदन तक कांग्रेस आंदोलन करती रही’
यूपी कांग्रेस के प्रवक्ता अशोक सिंह कहते हैं कि प्रियंका गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस पिछले दो सालों से उत्तर प्रदेश की सड़कों पर लोगों से जुड़े हुए मुद्दों को लेकर आंदोलन कर रही है. यूपी में जनहित से जुड़े मुकदमें उठाने के लिए कांग्रेस नेताओं पर 70 से 80 मुकदमें दर्ज किए गए हैं और 12 हजार कांग्रेस कार्यकर्ताओं को जेल भेजा गया है. कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू को जनता के मुद्दों पर मुखर रहने के लिए गिरफ्तार किया गया. इसके बावजूद कांग्रेस सड़क पर आंदोलन करने से पीछे नहीं हटी है और न ही हटेगी. कांग्रेस के सिपाही पूरी ईमानदारी के साथ लोगों के साथ हैं.
‘अखिलेश-माया न तो सड़क पर उतरे न ही आवाज उठाई’
अशोक सिंह कहते हैं कि कोराना काल को या फिर सोनभद्र से लेकर हाथरस तक की घटना कहीं पर भी न तो सपा प्रमख अखिलेश यादव और न ही बसपा सुप्रीमो मायावती नजर नहीं आई जबकि प्रियंका गांधी हर जगह पहुंची हैं. सपा और बसपा यूपी में विपक्ष की भूमिका निभाने के बजाय बीजेपी सरकार के सुर में सुर मिलाती नजर आई है या फिर सलाह देती दिखी है. इस बात को प्रदेश की जनता भी समझ रही है और यह बात मान रही है कि सूबे में मुख्य विपक्ष दल के तौर पर कांग्रेस ही अपने कर्तव्यों का निर्वाहन कर रही है. पिछले तीस सालों में यूपी में जनता ने सपा-बसपा और योगी सहित तमाम गठबंधन की सरकार को देख चुकी हैं और हमें उम्मीद है कि 2022 में कांग्रेस को एक मौके देगी.
विपक्ष में कौन उन्नीस और कौन बीस?
ऐसे ही एनडीए से अलग होने वाले भारतीय सुहेलदेव पार्टी के प्रमुख ओम प्रकाश राजभर ने असदुद्दीन ओवैसी की AIMIM सहित तमाम छोटे दलों के साथ हाथ मिलाकर योगी सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल रखा है. विपक्ष की तरफ से कांग्रेस ने शुरुआती मजमा लूटा तो अब सपा ने अपनी सक्रियता दिखाई और जमीन पर उतरी है. वहीं, मायावती अब बी-टीम की छवि से बाहर निकल अपनी सियासी आधार तालश रही हैं. इससे साफ जाहिर होता है कि विपक्ष के इन सभी दलों के बीच खुद को एक दूसरे पर बीस साबित करने की कहीं न कहीं होड़ जरूर है. ऐसे में मुख्य विपक्ष की लड़ाई में कौन एक दूसरे के मुकाबले उन्नीस या बीस है, इसकी वास्तविक तस्वीर तो अब एक साल के बाद ही साबित हो सकेगी?