नई दिल्ली। समलैंगिक विवाह को मंजूरी देने को लेकर आज केंद्र की मोदी सरकार ने अपना रुख दिल्ली हाईकोर्ट में साफ कर दिया है। केंद्र सरकार ने हिंदू विवाह अधिनियम के तहत सेम सेक्स मैरिज को वैध बनाने के मामले में दायर याचिकाओं पर जवाब देते हुए इसका विरोध किया है। केंद्र सरकार ने कहा कि सेम सेक्स के जोड़े का पार्टनर की तरह रहना, भारतीय परिवार नहीं माना जा सकता और इसे मान्यता देने का कोई मौलिक अधिकार नहीं है।
Central Govt has opposed in the #Delhi High Court petitions on validation of the same-sex marriage, asserting Indian family concept & legislative intent recognise a union only between a biological man & a biological woman.
It seeks dismissal of the pleas by @Iyervval & others.— Utkarsh Anand (@utkarsh_aanand) February 25, 2021
रिपोर्टों के अनुसार, केंद्र सरकार ने यह तर्क दिया है कि सेम सेक्स के जोड़े का पार्टनर की तरह रहना और यौन संबंध बनाने की तुलना भारतीय परिवार से नहीं हो सकती है। इस प्रकार मोदी सरकार द्वारा माँग की गई है कि अभिजीत अय्यर और अन्य द्वारा दायर याचिका खारिज कर दी जाए।
हिंदुस्तान टाइम्स के पत्रकार के अनुसार, उच्च न्यायालय में केंद्र सरकार ने कहा कि शादी दो व्यक्तियों के निजी जीवन का मामला हो सकता है जिसका असर उनके निजी जीवन पर होता है। लेकिन इसे निजता की अवधारणा में नहीं छोड़ा जा सकता है।
While a marriage may be between two
private individuals having a profound impact on their private lives, it cannot be relegated to merely a concept within the domain of privacy of an individual: Centre to Delhi HC opposing same sex marriages. @htTweets @utkarsh_aanand— Richa Banka (@RichaBanka) February 25, 2021
भारतीय परिवार इकाई से सेम सेक्स के लोगों के साथ रहने और यौन संबंध बनाने की तुलना नहीं की जा सकती है, जहाँ भारतीय परिवार इकाई में पति, पत्नी और बच्चे होते हैं। इस इकाई में एक सामान्य रूप से पुरुष तथा दूसरी सामान्य रूप से महिला होती है, जिनके मिलन से संतान की उत्पत्ति होती है।
केंद्र सरकार ने आगे कहा, “हमारे देश में, एक पुरुष और एक महिला के बीच विवाह के संबंध की वैधानिक मान्यता के बावजूद, विवाह आवश्यक रूप से उम्र, रीति-रिवाजों, प्रथाओं, सांस्कृतिक लोकाचार और सामाजिक मूल्यों पर निर्भर करता है।”
Central Government opposes plea for recognition for same-sex marriages. There is no fundamental right to seek recognition for same-sex marriage, Centre tells Delhi High Court.
Courts cannot give legal recognition to such marriages when statute does not allow it, Centre adds. pic.twitter.com/5hE1bFI2vq
— Live Law (@LiveLawIndia) February 25, 2021
गौरतलब है कि दिल्ली उच्च न्यायालय में सितंबर 2020 में, एक याचिका दायर की गई थी, जिसमें हिंदू विवाह अधिनियम के तहत समान लिंग विवाह को मान्यता देने की माँग की गई थी। यह याचिका अभिजीत अय्यर मित्रा, गोपी शंकर एम, गीति थडानी और जी ओरवसी द्वारा दायर की गई और इस मामले की सुनवाई मुख्य न्यायाधीश डीएन पटेल और न्यायमूर्ति प्रतीक जालान ने की थी।
याचिकाकर्ताओं ने दावा किया कि हिंदू विवाह अधिनियम किसी भी दो हिंदुओं को शादी करने की अनुमति देता है और इसलिए, समलैंगिकों को भी शादी करने का अधिकार होना चाहिए और उनकी शादी को मान्यता दी जानी चाहिए।
हालाँकि, याचिकाकर्ताओं का दावा निराधार है। धारा 5 (iii) में स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया है कि दूल्हे की उम्र 21 वर्ष और दुल्हन की न्यूनतम आयु 18 वर्ष होने पर ही दो हिंदुओं के बीच विवाह किया जा सकता है। यह एक स्पष्ट संकेत है कि अधिनियम केवल एक पुरुष और एक महिला के बीच विवाह को मान्यता देता है।
याचिका की पहली सुनवाई में 14 सितंबर को केंद्र सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि उन्होंने याचिका का विरोध किया। उन्होंने तर्क दिया कि समलैंगिक विवाह हमारे कानूनों और संस्कृति द्वारा मान्यता प्राप्त नहीं हैं। उन्होंने कहा कि हिंदू मैरिज एक्ट खुद समान सेक्स मैरिज को मान्यता नहीं देता है। कानून के अनुसार, विवाह केवल पति और पत्नी के बीच होता है।
कोर्ट ने यह कहते हुए जवाब दिया था कि सरकार को इस मामले को खुले दिमाग से देखना होगा न कि किसी कानून के अनुसार यह कहते हुए कि दुनिया भर में बदलाव हो रहे हैं। वहीं एसजी तुषार मेहता ने कहा कि याचिका हलफनामा दाखिल करने के लायक भी नहीं है।