लंदन। ब्रिटेन की महारानी एलिजाबेथ द्वितीय ने 1970 के आसपास सरकार पर बकिंघम पैलेस की संपत्ति को पारदर्शिता कानून से अलग रखने के लिए दबाव डाला था। राष्ट्रीय अभिलेखागार में रखे दस्तावेजों के हवाले से गार्जियन ने यह रिपोर्ट प्रकाशित की है। मामले पर बकिंघम पैलेस के प्रवक्ता ने कहा है कि संसदीय प्रक्रिया में महारानी की भूमिका औपचारिक है और वह संसदीय संप्रभुता का सम्मान करती हैं। रिपोर्ट में किए गए दावों में कोई दम नहीं है।
लामबंदी के लिए वकील को किया नियुक्त
अखबार के मुताबिक, क्वीन एलिजाबेथ द्वितीय ने इस सिलसिले में अपने दिग्गज वकील मैथ्यू फेरर को लामबंदी के लिए नियुक्त किया था। इसके बाद मैथ्यू ने सरकारी उच्चाधिकारियों और सांसदों पर राजमहल को छूट देने वाला विधेयक तैयार करने के लिए दबाव डाला था। इसके लिए उन्होंने ब्रिटेन के वित्तीय संस्थानों के जरिये भी आवाज उठवाई थी। अभिलेखागार में मौजूद पत्रों के मुताबिक, मैथ्यू कई अधिकारियों को लिखे पत्रों में राजमहल को छूट देने के सिलसिले में दबाव बनाते प्रतीत हो रहे हैं। उन्होंने लिखा कि महारानी की संपत्ति और विभिन्न कंपनियों में उनकी हिस्सेदारी से संबंधित सूचनाओं को गोपनीय रखा जाए।
बाद में शेल कंपनी बनाकर दशकों तक छिपाया गया निवेश
वामपंथी झुकाव वाले अखबार ने अपने मंतव्य को साबित करने के लिए कई पत्रों की प्रतिलिपि सार्वजनिक की है। राजमहल की संपत्ति को गोपनीय रखने की कोशिश में एक शेल कंपनी बनाने का प्रस्ताव भी चर्चा में आया, जिसमें होने वाला लेन-देन पूरी तरह से गोपनीय रखा जाए। यह मुखौटा कंपनी सरकार की जानकारी में होगी और राजमहल के निवेशों का प्रबंधन करेगी। दिखाने के लिए इस कंपनी को बैंक ऑफ इंग्लैंड के लिए वरिष्ठ कर्मचारी चलाएंगे। रिपोर्ट के अनुसार यह शेल कंपनी अस्तित्व में आई और इसे कई दशकों तक चलाया गया। बाद में 2011 में इसे बंद कर दिया गया। इसकी कोई भी जानकारी कभी भी जनता के बीच नहीं आई।