जब धर्म विरोधी शक्तियां रस्सी को सांप बना कर समाज को तोड़ने का षड्यंत्र करें, तब हमें केवल और केवल प्रेम की बात करनी चाहिए

सर्वेश तिवारी श्रीमुख
जब धर्म विरोधी शक्तियां रस्सी को सांप बना कर समाज को तोड़ने का षड्यंत्र करें, तब हमें केवल और केवल प्रेम की बात करनी चाहिए। वे एक उदाहरण दे कर कहेंगे कि ठाकुर अत्याचारी होते हैं। मैं हजार उदाहरणों के साथ अड़ा रहूंगा कि आज भी असँख्य ठाकुर अपने समाज की आवश्यकता पर अपना सारा धन लुटाने के लिए तत्पर रहते हैं। ठाकुर अत्याचार के लिए नहीं बलिदान के लिए जाने जाते हैं।
वे किसी ईसाई मिशनरी से चन्दा खा कर कहेंगे कि दलित हिन्दू समाज के अंग नहीं हैं। मैं हजार बार कहता रहूंगा कि मेरे गाँव के छठ घाट पर डाला ले कर सबसे पहले मुसहरों की स्त्रियां ही पहुँचती हैं। वे हजारों वर्षों से इस व्यवस्था के बाजू हैं। उन्होंने देवताओं की मूर्तियां गढ़ी हैं, उन्होंने हमारे मन्दिरों के स्तम्भों पर धर्म उकेरा है। चंद्रशेखर बन कर बैठा कोई बहुरूपिया कालनेमि मात्र चन्द लोगों को चार दिन तक भरमा सकता है, उसके आगे नहीं…
वे बलात्कार के मामलों को लेकर देश और धर्म को कठघरे में खड़ा करते रहेंगे क्योंकि उन्हें इसके लिए पैसे मिलते हैं। मैं पूरी आस्था के साथ यह कहता रहूंगा कि मेरे देश में स्त्रियों के साथ अभद्रता करने वालों से लाखगुने अधिक हैं बेटियों को पूजने वाले। हाँ, लाख गुने अधिक… यह वही देश है जिसने बलात्कारियों को गोली मारने वाले पुलिसकर्मियों पर फूल बरसाया था। और इस देश को कठघरे में खड़ा करने वाले वे लोग हैं, जिन्होंने तब अपराधियों के पक्ष में आवाज उठाई थी।
वे धंधेवाले लोग हैं, उनकी व्यवसायिक मजबूरी है। वे बलात्कार को तबतक बुरा नहीं मानते जबतक वह किसी विशेष वर्ग की लड़की के साथ न हुआ हो। देश की मीडिया, वामपन्थी विचारक और “300क्लब” के लेखकों के लिए सवर्णों की बेटी बेटी नहीं होती, ओबीसी की बेटी बेटी नहीं होती। पर हमारे लिए हर बेटी बेटी है, चाहे किसी की भी हो… गाँव युगों से मानते रहे हैं कि बेटियां सारे गाँव की होती हैं। वे उनकी पीड़ा पर नहीं बोलते, पर हम बोलेंगे। यूपी पर भी, राजस्थान पर भी, छतीसगढ़ पर भी… किसी भी स्त्री की ओर बढ़ने वाला क्रूर हाथ काट दिया जाना चाहिए, चाहे वह किसी का भी हो…
परसो मैंने देखा एक मीडियाई नचनिया एक पुलिस वाले को बार बार धक्का दे कर कह रही थी कि “तुम मुझे नहीं रोक सकते, मेरा काम तुम्हारे काम से ज्यादा महत्वपूर्ण है।” क्या सचमुच उसका काम किसी पुलिसकर्मी के काम से अधिक महत्वपूर्ण है? नहीं! पुलिस खड़ी होती है सुरक्षा के लिए, वह आयी थी अपने धंधे के लिए… इस देश में लोगों की सुरक्षा के लिए ही हर साल सैकड़ों पुलिसकर्मी अपनी जान देते हैं। और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ने आजतक धंधा के अलावे कुछ नहीं किया है।
मुझे यह मानने में कोई आपत्ति नहीं कि समाज में बहुतों के साथ अन्याय होता है, पर टीआरपी का धंधा करने वाला कोई चैनल मुझसे सौ वर्षों में भी यह नहीं मनवा पायेगा कि अत्याचारी किसी एक जाति के ही होते हैं। मैंने खेत में बकरी पड़ जाने पर गाली खाते अनुसूचित जाति के लोगों को भी देखा है, और फर्जी sc/st एक्ट में फंस कर बर्बाद होते बाभनो ठाकुरों यादवों को भी देखा है।
हेलेना के बच्चों को चन्द्रगुप्त की मिट्टी से न कभी प्रेम था, न होगा… हम जानते हैं। पर हम यह भी जानते हैं कि हम उन्हें इतनी छूट कभी नहीं देंगे कि वे देश तोड़ सकें। कभी नहीं… तुम जितनी भी नौटंकी कर लो, तुम देश को दुबारा नहीं तोड़ सकते…