नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार (अगस्त 10, 2020) को वकील प्रशांत भूषण के खिलाफ 2009 का आपराधिक अवमानना मामला खारिज करने से इनकार कर दिया। 11 साल पुराने इस केस में कोर्ट ने प्रशांत भूषण की स्पष्टीकरण और खेद मँजूर करने से इनकार कर दिया है।
बता दें कि यह केस प्रशांत भूषण की ओर से तहलका पत्रिका को दिए गए इंटरव्यू को लेकर है। इसमें उन्होंने आरोप लगाया था कि भारत के पिछले 16 मुख्य न्यायाधीशों में से आधे भ्रष्ट थे। तरुण तेजपाल उस समय तहलका पत्रिका के संपादक थे। मामले की अगली सुनवाई 17 अगस्त को होगी।
न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा न्यायमूर्ति बीआर गवई और न्यायमूर्ति कृष्ण मुरारी की तीन सदस्यीय पीठ प्रशांत भूषण की याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें उन्होंने अदालत से 2009 के अपने बयान के लिए “खेद” स्वीकार करने का अनुरोध किया। उन्होंने अदालत में एक लिखित बयान दिया जिसमें कहा गया कि उनके कहने का मतलब भ्रष्टाचार नहीं था, बल्कि सही तरीके से कर्तव्य न निभाने की बात थी। अदालत ने याचिका को स्वीकार करने से इनकार कर दिया और कहा कि अवमानना के मामले में आगे सुनवाई की जरूरत है।
इस मामले की पिछली सुनवाई में कोर्ट ने कहा था कि फ्री स्पीच और कंटेम्प्ट के बीच बहुत बारीक लाइन है। अब मुद्दा ये है कि सिस्टम के सम्मान को बचाते हुए यह मामला कैसे निपटाया जाए?
कोर्ट ने प्रशांत भूषण के वकील राजीव धवन से कहा कि आप ही रास्ता बताइए। क्या आप इस तरह की अनाप-शनाप बातों को रोकने का तरीका बता सकते हैं? जवाब में धवन ने कहा कि प्रशांत भूषण पहले ही सफाई दे चुके हैं।
भूषण ने इस संबंध में शीर्ष अदालत में अपना स्पष्टीकरण पेश किया है, जबकि तहलका के संपादक तरुण तेजपाल ने माफी माँगी है। अदालत ने कहा कि वह इस मामले में विचार करेगा कि न्यायाधीशों के बारे में भ्रष्टाचार की टिप्पणी असल में अवमानना है या नहीं।
चार अगस्त को, शीर्ष अदालत ने भूषण और तेजपाल को स्पष्ट किया था कि वह मामले में अगर उनका स्पष्टीकरण या माफी स्वीकार नहीं करती है तो वह सुनवाई करेगी। वहीं, इससे पहले सुनवाई में भूषण ने 2009 में दिए अपने बयान पर खेद जताया था, लेकिन बिना शर्त माफी नहीं माँगी थी।
गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार (जुलाई 21, 2020) को स्वत: संज्ञान लेते हुए प्रशांत भूषण के खिलाफ अदालत की अवमानना का केस दर्ज किया था। अपने ट्वीट में प्रशांत भूषण ने कहा था, “जब भविष्य में इतिहासकार वापस मुड़कर देखेंगे कि किस तरह से पिछले 6 वर्षों में औपचारिक आपातकाल के बिना ही भारत में लोकतंत्र को नष्ट किया गया है, तो वे विशेष रूप से इस विनाश में सर्वोच्च न्यायालय की भूमिका को चिह्नित करेंगे, और पिछले 4 CJI की भूमिका को और भी अधिक विशेष रूप से।”
22 जुलाई को सर्वोच्च न्यायालय ने प्रशांत भूषण को नोटिस जारी कर पूछा था कि उनके खिलाफ अदालत की अवमानना का मामला क्यों नहीं चलाया जाना चाहिए।