नई दिल्ली। पूर्व आप नेता और वर्तमान में स्वराज पार्टी के नेता द्वारा 7-पॉइंट एक्शन प्लान ट्वीट किया गया। जिसका उद्देश्य कोरोनावायरस महामारी से लड़ने में मदद करने के लिए था। इस एक्शन प्लान को ‘प्रमुख अर्थशास्त्रियों और बुद्धिजीवियों’ द्वारा स्पष्ट रूप से समर्थन का दावा भी किया गया।
इसमें कई दिक्कतें थीं। इनमें से एक खंड था, 7.1 जिसमें कहा गया था कि सभी निजी संपत्ति, जिसमें बॉन्ड, सोना, संपत्ति आदि शामिल हैं उन्हें महामारी से लड़ने के लिए राष्ट्रीय संसाधन के रूप में माना जाना चाहिए।
उन बुद्धिजीवियों में से एक थे रामचंद्र गुहा जिन्होंने इस बचकाने ‘7 पॉइंट योजना’ का समर्थन किया था। हालाँकि, बाद में इस योजना का सोशल मीडिया पर मज़ाक उड़ने के बाद गुहा ने यू-टर्न ले लिया और खुद को एक्शन प्लान से दूर कर लिया।
The Mission Jai Hind Statement that was sent to me had this broad statement of principle as clause 7.1, which I approved, namely:
“All resources within the nation are national resources, available for this mission.”
(1/3)— Ramachandra Guha (@Ram_Guha) May 23, 2020
बाद में रामचंद्र गुहा ने ट्विटर पर खंड 7.1 का जिक्र करते हुए कहा कि जो खंड चर्चा के दौरान प्रस्तुत किया गया था वह छपे हुए खंड से काफी अलग था।
गुहा ने कहा कि, उन्होंने जब मिशन के बयान को मंजूरी दी थी, तो खंड 7.1 में लिखा था, “राष्ट्र के भीतर सभी संसाधन राष्ट्रीय संसाधन हैं, इस मिशन के लिए उपलब्ध हैं।”
The published version had a radically different clause 7.1:
“All the resources (cash, real estate, property, bonds, etc) with the citizens or within the nation must be treated as national resources available during this crisis.”
I have not and do not endorse this.
(2/3)— Ramachandra Guha (@Ram_Guha) May 23, 2020
गुहा ने आगे कहा कि इस प्रकाशित संस्करण में कई हस्ताक्षरकर्ताओं की स्वीकृति नहीं है और उन्होंने “प्रस्तावित स्टेटमेंट में किए गए कई आवश्यक सुझावों पर ध्यान नही दिया है।”
उल्लेखनीय है कि यद्यपि राम चंद्र गुहा ने स्पष्ट रूप से कहा है कि यह खंड सही मायने में ठीक नहीं है, उन्होंने इस योजना से खुद को पूरी तरह से दूर करने से परहेज किया है। वो अभी भी बयान में कहे किए गए बाकी सुझावों का समर्थन करते है। योजना में किए गए कुछ अन्य सुझाव जिसमें ‘सभी के लिए रोजगार’, ‘सभी के लिए आय’ और ‘अर्थव्यवस्था के सही होने तक कोई इंटरेस्ट नही’।
तथाकथित प्रमुख ‘बुद्धिजीवियों’ द्वारा सुझाए गए उपाय अकल्पनीय हैं और इनमें से कई बुद्धिजीवी सोनिया गाँधी के नेशनल एडवाइजरी कॉउन्सिल में भी थे, जो यह सुनिश्चित करने के लिए राज्य में ज़मीनी स्तर पर काम कर रहे हैं ताकि वे निजी संसाधनों को अपने खजाने में भर सके।