लखनऊ। लखनऊ में हुई हिन्दू वादी नेता कमलेश तिवारी की हत्या के मामले में यूपी एटीएस की जांच में आरोपियों का कबूलनामा चौंकाने वाला है. सूत्रों के अनुसार, यूपी एटीएस के सवालों के जाल में हत्यारोपी पूरी तरह से फंस चुके हैं और अपने गुनाहों की पूरी दास्तान बयान कर दी है. अशफाक और मोइनुद्दीन से पूछे गए सवालों के जो जवाब जांच एजेंसियो को मिले हैं, उससे काफी हद तक कमलेश तिवारी की हत्या का मकसद और उसके बाद की कहानी का पता चल गया है. अशफाक और मोइनुद्दीन ने एटीएस ने अपने गुनाह की पूरी कहानी बयान की है.
हत्यारोपियों का कबूलनामा
सवाल नंबर एक: यूपी एटीएस ने दोनों हत्यारोपी से पूछा कि क्या उनलोगो ने हत्या की है ?
जवाब: इस पर दोनों ही आरोपी थोड़ी देर खामोश रहे. फिर अशफाक ने कहा कि जो मैंने वादा किया था, वो पूरा करके दिखाया.
जवाब: इस पर अशफाक ने बताया कि 2015 के कमलेश तिवारी के बयान के बाद इस प्लान के तहत वो सूरत में ही कई लोगों से मिला था. इसके बाद मोइनुद्दीन ने बताया कि इसी प्लान के तहत वो इससे पहले भी 2018 में लखनऊ आ चुका है. तब उसके संपर्क में कोई नहीं आया था.
सवाल नंबर तीन: उन्होंने हत्या कैसे की ?
जवाब: अशफाक ने बताया कि उसने सबसे पहले पिस्टल से फायर किया था. लेकिन, एक गोली चलाने के बाद पिस्टल की गोली फंस गयी. इसके बाद कमलेश तिवारी उन दोनों पर हावी होने की कोशिश करने लगा. जिसके बाद मैंने और मोइनुद्दीन दोनों ने अलग अलग चाकुओं से कमलेश तिवारी पर वार किये और जब लगा की वो मर गया तो वहां से भाग गए. घर के थोड़ी दूर जाकर एक चाक़ू फेंक दिया. पिस्टल का जुगाड़ अशफाक और रशीद के एक साथी ने करवाया था. दो पिस्टल और गोलियां करीब 50 हजार रुपये में खरीदी गई थीं. इसके अलावा 3200 रुपये में चाकू का एक सेट खरीदा गया था.
सवाल नंबर चार: इतनी बेहरमी से हत्या करना उन्होंने कहीं से सीखा है ?
जवाब: अशफाक ने बताया कि उसने हत्या से पहले यूट्यूब पर चाकू से गला रेतने के कई वीडियो देखे थे. हालांकि, उसको आसिम ने हत्या करने की ट्रेनिंग दी थी कि हत्या कैसे करते है. अशफाक ने ये भी बताया कि वो जल्दीबाज़ी में सिखाया हुआ भूल गया था. इसीलिए जो उस वक़्त समझ में आया उसने वो किया.
जवाब: मोइनुद्दीन ने जवाब दिया कि सभी लोगों से संपर्क हो जाता है, जो इस काम में हमारे मददगार थे उनका शुक्रिया.
सवाल नंबर छह: हत्या के बाद का उनका क्या प्लान था ?
जवाब: अशफाक ने बताया कि उन लोगों को रशीद ने 70 हज़ार रूपए दिए थे और कहा था कि ये काम कर पाओगे न. काम ख़त्म होने के बाद जब हमने बताया कि काम हो गया, तब उन्होंने हमें हमारे मददगारों के पास जाने को कहा. वहां से जरुरत के और पैसे मिलने की बात भी कही गयी. हमसे ये भी कहा गया कि कर्नाटक से एक फोन आएगा और तुम्हारा सरेंडर वो करवा देगा, कोई दिक्कत नहीं होगी. लेकिन बरेली पहुंचते ही हमें मालूम चला कि हमारे मददगारों तक पुलिस की जांच पहुंच गई है. इसी डर से कई लोगों ने हमसे संपर्क ही नहीं किया, जिन्हें हमारी मदद करनी थी.
सवाल नंबर सात: हत्या के बाद वो कहां-कहां गए ?
जवाब: मोइनुद्दीन ने कहा कि आप लोगों को तो सब पता है. काश अशफाक ने अपनी पत्नी को फोन नहीं किया होता, तो हम पकड़े जाने की जगह सरेंडर करते. अगर आसिम नहीं पकड़ा गया होता, तो हम लोग नेपाल में ही रहते. लेकिन, आसिम पकड़ा गया इसलिए हमारे पास कोई और रास्ता नहीं था.
जवाब: अशफाक ने कहा कि जिगर वाले के काम के लिए कई मददगार सामने आये. वकील साहब (नावेद) के साथी तनवीर हमें नेपाल में पूरी मदद कर रहे थे. लेकिन, अचानक से उनका फोन बंद हो गया. जिसके बाद हम घबरा गए. हमें 10 हज़ार रूपये पलिया से भी मिले थे.
सवाल नंबर नौ: वो अपने मददगारों से संपर्क कैसे कर रहा था ?
जवाब: दोनों ने बताया कि शादाब नाम का व्यक्ति था, जो वाट्सएप्प के जरिये मैसेज करके उनसे आकर मिला. उसको पैसे और नया सिम दिलवाया था. उसी सिम से वो सभी लोगों से सम्पर्क कर रहे थे.
सवाल नंबर दस: आखिर 18 अक्टूबर को ही क्यों हत्या करने की प्लानिंग की ?
जवाब: मोइनुद्दीन ने कहा कि किसी न किसी दिन तो ये करना ही था.