इन्फोसिस व्हिसल ब्लोअर केस: क्रिसिल ने कंपनी की रेटिंग को ‘निगरानी’ श्रेणी में रखा

व्हिसल ब्लोअर द्वारा इन्फोसिस के वरिष्ठ अधिकारियों की शिकायत के बाद कंपनी की मुश्किल कम होने का नाम नहीं ले रही. अब रेटिंग एजेंसी क्रिसिल ने इसकी रेटिंग को ‘निगरानी’ वाली श्रेणी में रख दिया है. गौरतलब है कि क्रिसिल ने इन्फोसिस को ट्रिपल ए (AAA) रेटिंग दी है, जो अब तक किसी कंपनी को दी गई सर्वोच्च रेटिंग है.

रेटिंग एजेंसी क्रिसिल ने एक बयान में कहा, ‘व्हिसल ब्लोअर (सचेतक) की शिकायत के बारे में इन्फोसिस के बोर्ड और ऑडिट कमिटी द्वारा क्या कदम उठाए जा रहे हैं, क्रिसिल ने इनको ध्यान में रखा है. क्रिसिल आगे भी हालात की निगरानी करेगी.’ कंपनी ने कहा कि एक बार जब ‘जांच के बारे में पर्याप्त स्पष्टता आ जाती है और इन्फोसिस के प्रबंधन से पर्याप्त अपडेट मिलता है, तो यह रेटिंग (निगरानी वाली) हटा ली जाएगी. कुछ भी महत्वपूर्ण पाया जाता है, और रेगुलेटर या सरकारी एजेंसियों के द्वारा कोई महत्वपूर्ण निष्कर्ष सामने आता है, तो रेटिंग के हिसाब से इस पर निगरानी रखी जाएगी.’

गौरतलब है कि जिस दिन इसका खुलासा हुआ है कि इन्फोसिस के कुछ कर्मचारियों ने स्टॉक एक्सचेंजों को लेटर लिखकर कंपनी के सीईओ और सीएफओ की शिकायत की है, उसी दिन इन्फोसिस के शेयरों में 17 फीसदी की गिरावट आ गई और इसके शेयरधारकों को एक दिन में 55,000 करोड़ रुपये का नुकसान हो गया.

 क्‍या है इन्‍फोसिस का मामला?

दरअसल, आईटी कंपनी इन्फोसिस के सीईओ सलिल पारेख और सीएफओ निलांजन रॉय पर कई गड़बड़ी आरोप लगे हैं. हाल ही में व्हिसल ब्लोअर के एक समूह ने इन दोनों पर कम समय में आय और लाभ बढ़ाने के लिए ‘अनैतिक व्यवहारों’ में लिप्त होने की शिकायत की है. इस समूह का दावा है कि आरोपों को साबित करने के लिए ईमेल और वॉयस रिकॉर्डिंग भी मौजूद हैं. इस बीच, कंपनी की ओर से कहा गया है कि हम मामले की जांच कर रहे हैं.

क्या हैं शिकायत

लेटर में आरोप लगाया गया है कि इन्फोसिस के सीईओ सलिल पारेख ने बड़े सौदों की समीक्षा रिपोर्ट को नजरअंदाज किया और ऑडिटर तथा कंपनी बोर्ड से मिली सूचनाओं को छिपाया. लेटर में कहा गया है कि ‘सलिल पारेख ने उनसे कहा कि मार्जिन दिखाने के लिए गलत अनुमान पेश करें और उन्होंने हमें बड़े सौदों के मसले पर बोर्ड में प्रजेंटेशन पेश करने से रोका.’

इन्फोसिस के सीएफओ नीलांजन रॉय पर यह आरोप भी लगाया गया है कि उन्होंने बोर्ड और ऑडिटर की जरूरी मंजूरी लिए बिना ‘निवेश नीति और एकाउंटिंग’ में बदलाव किए ताकि शॉर्ट टर्म में इन्फोसिस का मुनाफा ज्यादा दिखे.

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