लखनऊ। उत्तर प्रदेश में होने वाले 13 विधानसभा सीटों के उपचुनाव को लेकर सभी राजनीतिक दलों ने अपनी कमर कस ली है. इन सबके बीच समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) ने उपचुनाव में एक नया दांव खेलने का मन बनाया है. अखिलेश यादव विधानसभा उपचुनाव में एक नया प्रयोग करने जा रहे है. इस बार अखिलेश यादव छोटे-छोटे दलों को साथ लेकर बड़ी लड़ाई की तैयारी कर रहे हैं. कांग्रेस (Congress) और बीएसपी (BSP) जैसे बड़ी पार्टियों के साथ गठबंधन से सबक लेकर अखिलेश अब छोटी-छोटी पार्टियों पर दांव लगा रहे है. अखिलेश यादव के पिछले दो एक्सपेरिमेंट फ्लॉप हो चुके हैं. लिहाजा, इस तीसरे प्रयोग को लेकर भी सवाल उठ रहे है.
यूपी में उपचुनाव की आहट होते ही अखिलेश यादव ने अपनी सियासी प्रयोगशाला शुरू कर दी है. इसकी एक झलक आज पार्टी दफ्तर में दिखाई दी, जब बीएसपी के पूर्व मंत्री घूरा राम, वित्तविहीन माध्यमिक शिक्षक संघ, किसान यूनियन और फूलन सेना जैसे छोटे संगठनों और दलों के नेताओं ने समाजवादी पार्टी का दामन थामा. अखिलेश किसी बड़ी सियासी पार्टी से गठबंधन करने से बेहतर उस पार्टी के असंतुष्ट नेताओं को अपने को साथ जोड़ रहे हैं.
सोमवार को कुछ नेताओं ने समाजवादी पार्टी मे आस्था जताते हुए पार्टी ज्वाइन की. अखिलेश यादव का दावा है कि ये सिलसिला यूं ही चलता रहेगा. कुछ और नेता और छोटी पार्टियां सपा के साथ होंगी. हालांकि, ओम प्रकाश राजभर की पार्टी सुभासपा से गठबंधन के सवाल को अखिलेश यादव बड़ी ही सफाई से टाल गये.
सवाल चारों ओर से उठ रहे हैं. जिस कांग्रेस ने 2017 में साथ मिलकर विधान-सभा का चुनाव लड़ा था, वह भी अखिलेश पर सवाल खड़े कर रही है. वहीं, समाजवादी पार्टी को खड़ा करने वाले शिवपाल यादव की पार्टी पीएसपीएल भी अखिलेश की योग्यता और नेतृत्व पर सवाल उठा रही है. पीएसपीएल के प्रवक्ता सीपी रॉय मानते है कि इस तरह के प्रयोग अखिलेश के सियासी अपरिपक्वता और आत्मविश्वास दिखाते हैं.
यूपी की राजनीति की समझ रखने वाले भी मानते हैं कि अभी की समाजवादी पार्टी मुलायम सिंह यादव की बनाई गई पार्टी से बिल्कुल अलग हो चुकी है. अब अखिलेश के पास इस तरह के सियासी प्रयोग के अलावा कोई विकल्प नही बचा है. परिवार में विद्रोह और पार्टी के बड़े-नेताओं का एक-एक कर पार्टी छोड़ना, अखिलेश के लिए मुसीबत का सबब बनता जा रहा है. शायद इसी से बचने के लिए अखिलेश यादव इस तरह के प्रयोग कर रहे हैं. खैर यह कितना सफल होगा, ये तो चुनावी नतीजे ही बता पाएंगे.