आज देश में बेरोजगारी और आर्थिक मंदी विस्फोटक स्थिति में हैं। लेकिन इस पर कहीं चर्चा नहीं हो रही है। सरकार की उपलब्धियां तो बतायी जा रही हैं लेकिन आम आदमी जिस परेशानी के दौर से गुजर रहा है उससे उसे सबका साथ सबका विकास का नारा भोथरा साबित होता दिख रहा है। आज सरकार भले ही उपलब्धियों के झंडे पर लहरा रही हो पर आम आदमी के लिए अब दो वक्त की रोटी भी मुहाल हो गयी है। सरिता प्रवाह ने इसी सच्चाई को उजागर करने के लिए एक सीरिज शुरू की है जिसका मकसद सिर्फ सरकार को इस स्थिाति से अवगत कराना है और कुछ नहीं, सिर्फ उसे जगाना है । देखना है कि हमारी यह मुहिम कब रंग लगायेगी।
दस करोड़ लोगों को रोजगार देने वाला टेक्सटाइल सेक्टर दम तोड़ने के कगार पर
ऑटो इंडस्ट्री में नौ महीने में आई 31 फीसदी की गिरावट
राजेश श्रीवास्तव
लखनऊ । आज हम जिस जगह खड़े हैं वहां केंद्र की मोदी सरकार भले ही कहते रहे कि सब कुछ ठीक-ठाक है परंतु यह आधा सच भी नहीं है। लाखों कर्मचारी बेरोजगार हो चुके हैं। लाखों लोग नौकरियां जाने की आशंका में डूबे हुये हैं। छोटे कारोंबारियों ने तो पूरी तरह दम ही तोड़ दिया है। यह कोई राजनीतिक या आर्थिक समस्या नहीं है। भारतीय अर्थव्यवस्था में मंदी जिस तरह बढ़ रही है, वह मुख्यत: मानवीय समस्या है। इसकी भारी मानवीय कीमत चुकानी पड़ सकती है और ऐसा होना आरंभ भी हो चुका है।
यह मंदी की आहट का ही असर है कि अप्रैल से जून 2०19 की तिमाही में सोना-चांदी के आयात में 5.3 फीसदी की कमी आई है। जबकि इसी दौरान पिछले साल इसमें 6.3 फीसदी की बढ़त देखी गई थी। निवेश और औद्योगिक उत्पादन के घटने से भारतीय शेयर बाजार में भी मंदी का असर दिख रहा है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बाजार में आई सुस्ती को दूर करने और अर्थव्यवस्था को दुरुस्त करने के लिए अलग-अलग सेक्टर्स, उद्योग और आम आदमी को मंदी से राहत देने के लिए कई ऐलान किए. निर्मला सीतारमण भले ही दूसरे देशों से तुलना करके भारत की आर्थिक मंदी से ज्यादा न घबराने की बात कर रही हों लेकिन ग्राउंड पर आर्थिक मंदी के हालात दूसरी तस्वीर पेश कर रहे हैं। मंदी के बादल तेजी से काले और घने होते जा रहे हैं और इसका असर ऑटो, रियल एस्टेट, टेलिकॉम और बैंकिग से लेकर स्टील और टेक्सटाइल जैसे सेक्टरों पर दिखना शुरू हो गया है।
आर्थिक मंदी की अंतर्राष्ट्रीय वजह भी कई हैं जैसे पहली वजह तो अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की बढ़ती कीमतें हैं, जिसका असर महंगाई दर पर पड़ा है। दूसरी वजह डॉलर के मुकाबले रुपये की घटती हुई कीमत है, एक अमेरिकी डॉलर की कीमत 72 रुपये के आंकड़े को छू रही है। तीसरी वजह आयात के मुकाबले निर्यात में गिरावट से देश का राजकोषीय घाटा बढ़ा और विदेशी मुद्रा भंडार में कमी आई है। और चौथी वजह अमेरिका और चीन के बीच जारी ट्रेड वॉर की वजह से भी दुनिया में आर्थिक मंदी का खतरा तेजी से बढ़ रहा है, जिसका असर भारत पर भी पड़ा है। वैसे ये तो बाहरी वजह हैं, जो देश में आर्थिक मंदी को बढ़ावा दे रही हैं। लेकिन इसकी अंदरूनी वजह ज्यादा बड़ी हैं। जैसे कि अर्थव्यवस्था के महत्वपूर्ण औद्योगिक क्षेत्रों में गिरावट, डिमांड और सप्लाई के बीच लगातार कम होता अंतर और निवेश में मामूली कमी जैसी चीजें मंदी की तरफ इशारा कर रही हैं, जिसका असर अब दिखाई देने लगा है।
आज देश का ऑटो सेक्टर रिवर्स गियर में चला गया है। ऑटो इंडस्ट्री में लगातार नौ महीने से बिक्री में गिरावट दर्ज हो रही है। जुलाई में कार और मोटरसाइकिलों की बिक्री में 31 फीसदी की गिरावट आई है। जिसकी वजह से ऑटो सेक्टर से जुड़े साढ़े तीन लाख से ज्यादा कर्मचारियों की नौकरी चली गई और करीब 1० लाख नौकरियां खतरे में हैं। कृषि क्षेत्र के बाद सबसे ज्यादा 1० करोड़ लोगों को रोजगार देने वाले टेक्सटाइल सेक्टर की भी हालत खराब है। नॉर्दनã इंडिया टेक्सटाइल मिल्स एसोसिएशन ने तो बाकायदा अखबारों में विज्ञापन देकर खुलासा किया है कि देश के कपड़ा उद्योग में 34.6 फीसदी की गिरावट आई है। जिसकी वजह से 25 से 3० लाख नौकरियां जाने की आशंका है।
इसी तरह के हालात रियल एस्टेट सेक्टर में हैं, जहां मार्च 2०19 तक भारत के 3० बड़े शहरों में 12 लाख 8० हज़ार मकान बनकर तैयार हैं लेकिन उनके खरीदार नहीं मिल रहे। यानी बिल्डर जिस गति से मकान बना रहे हैं लोग उस गति से खरीद नहीं रहे। आरबीआई द्बारा हाल में ही जारी आंकड़ों के मुताबिक बैंकों द्बारा उद्योगों को दिए जाने वाले कर्ज में गिरावट आई है। पेट्रोलियम, खनन, टेक्सटाइल, फर्टीलाइजर और टेलिकॉम जैसे सेक्टर्स ने कर्ज लेना कम कर दिया है। यह मंदी की आहट का ही असर है कि अप्रैल से जून 2०19 की तिमाही में सोना-चांदी के आयात में 5.3 फीसदी की कमी आई है। जबकि इसी दौरान पिछले साल इसमें 6.3 फीसदी की बढ़त देखी गई थी. निवेश और औद्योगिक उत्पादन के घटने से भारतीय शेयर बाजार में भी मंदी का असर दिख रहा है। सेंसेक्स 4० हजार का आंकड़ा छूकर अब फिर 37 हजार पर आकर अटक गया है।
केंद्रीय सांख्यिकी संगठन द्बारा जारी आंकड़ों के अनुसार 2०18-19 में देश की जीडीपी विकास दर 6.8 प्रतिशत रही जो बीते 5 सालों में सबसे कम है। जिसके बाद आरबीआई ने मंदी की आहट को भांपते हुए साल 2०19-2० के लिए विकास दर का अनुमान घटाकर 6.9 फीसदी कर दिया है। यह वो आंकड़े हैं जो आर्थिक मंदी से देश को खबरदार करते हैं। जिसके बारे में नीति आयोग के वाइस चेयरमैन राजीव कुमार ने भी देश को आगाह किया और आर्थिक मंदी को लेकर सरकारी नीतियों और फैसलों को भी कटघरे में खड़ा किया है।
यूपी में कर्ज से दबे किसान ने किया किडनी बेचने का ऐलान
सहारनपुर जिले के एक किसान ने कर्ज के बोझ से दबे होने का दावा करते हुए शहर में कुछ जगह पोस्टर लगाकर अपनी किडनी बेचने की घोषणा की है। जिले के सरसावा थाना क्षेत्र के तहत आने वाले सतरसाली गांव निवासी रामकुमार ने बताया कि उसने प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना के तहत डेयरी फाîमग का प्रशिक्षण लिया था। प्रशिक्षण का प्रमाण पत्र होने के बावजूद उसे किसी सरकारी बैंक से ऋण नहीं मिला। उन्होंने बताया कि बैंकों से लोन नहीं मिलने के बाद उसने अपने रिश्तेदारों एवं परिचितों से कर्ज़ा लेकर पशुओं को खरीदा और उनके लिए शेड बनवाया। उन्होंने दावा किया कि अब कर्ज देने वाले लोग उससे ब्याज सहित उनका पैसा मांग रहे हैं। रामकुमार ने दावा किया कि उसके पास कर्ज लौटाने के लिए धन नहीं है और दबाव में उसके पास अब अपनी किडनी बेचने के अलावा कोई रास्ता नहीं रह गया है। इसलिए उसने अपनी किडनी को बेचने संबंधी पोस्टर लगाये हैं।