नई दिल्ली। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) प्रमुख मोहन भागवत ने एक बार फिर आरक्षण पर चर्चा करने की वकालत की है. भागवत ने 2015 में बिहार विधानसभा चुनाव से पहले भी आरक्षण के मुद्दे को उठाया था. जिसे बाद में विपक्ष ने उछाला और बीजेपी को हार का सामना करना पड़ा था. अब तीन राज्यों के विधानसभा चुनाव से पहले आरएसएस प्रमुख ने आरक्षण पर फिर बयान दिया है. ऐसे में माना जा रहा है कि आरक्षण के मुद्दे को लेकर सियासी तापमान बढ़ सकता है.
भागवत ने रविवार को एक कार्यक्रम में कहा कि जो आरक्षण के पक्ष में हैं और जो इसके खिलाफ हैं, उन्हें सौहार्दपूर्ण वातावरण में इस पर विमर्श करना चाहिए. संघ प्रमुख ने कहा कि उन्होंने आरक्षण पर पहले भी बात की थी लेकिन तब इस पर काफी बवाल मचा था और पूरा विमर्श असली मुद्दे से भटक गया था. भागवत ने कहा कि जो आरक्षण के पक्ष में हैं, उन्हें इसका विरोध करने वालों के हितों को ध्यान में रखते हुए बोलना चाहिए. वहीं जो इसके खिलाफ हैं उन्हें भी वैसा ही करना चाहिए.
भारत में फिलहाल अनुसूचित जाति को 15 फीसदी, अनुसूचित जनजाति को 7.5 फीसदी, ओबीसी यानी पिछड़ी जातियों के लिए 27 फीसदी और गरीब सवर्णों को 10 फीसदी आरक्षण मिल रहा है. बाकी बची 40.5 फीसदी नौकरियां सामान्य जातियों के लिए हैं.
बता दें कि संघ प्रमुख मोहन भागवत ने 2015 में बिहार विधानसभा चुनाव से ठीक पहले आरक्षण नीति की समीक्षा करने की वकालत की थी और उन्होंने इसका तर्क दिया था कि यह वर्षों पुरानी व्यवस्था है. भागवत के इस बयान के बाद तमाम राजनीतिक दलों और जातीय संगठनों ने कड़ा विरोध किया था.
खासकर बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और आरजेडी के अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव ने संघ प्रमुख के बयान के जरिए सियासी माहौल को पूरी तरह बदल दिया था. लालू यादव अपनी हर रैली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और संघ प्रमुख पर सीधा निशाना साधते हुए कहते थे कि अगर किसी में हिम्मत है तो वह आरक्षण खत्म करके दिखाए. लालू के इन बयानों से आरजेडी और जेडीयू गठबंधन को जबरदस्त फायदा मिला था. वहीं, बीजेपी का बिहार में बना बनाया सियासी माहौल बिगड़ गया और करारी हार का समाना करना पड़ा था.
संघ प्रमुख ने एक बार फिर आरक्षण की समीक्षा की बात ऐसी समय की है जब हरियाणा, महाराष्ट्र और झारखंड में विधानसभा चुनाव होने हैं. लोकसभा चुनाव के नतीजों को देखते हुए बीजेपी इन तीनों राज्यों में काफी बेहतर स्थिति में नजर आ रही है. वहीं, विपक्षी दल हताश और निराश होने के साथ-साथ बिखरे हुए नजर आ रहे हैं. ऐसे में संघ प्रमुख का आरक्षण पर दिए गए बयान को विपक्ष एक बड़े हथियार को तौर पर इस्तेमाल कर सकता है.
महाराष्ट्र में मराठा और हरियाणा में जाट आरक्षण को लेकर कई बार आंदोलन हो चुके हैं. महाराष्ट्र और झारखंड में ओबीसी, दलित और आदिवासियों की बड़ी भागेदारी है तो हरियाणा में ओबीसी और दलितों की अच्छी खासी संख्या है. बिहार की तरह अगर विपक्ष दल भागवत के बयान को चुनावी मुद्दा बनाते हैं तो बीजेपी का बना बनाया सियासी खेल बिगड़ सकता है.
हालांकि नरेंद्र मोदी सरकार ने जम्मू-कश्मीर से धारा 370 को हटाकर माहौल को काफी हद तक अपने पक्ष में कर रखा है. ऐसे में देखना होगा कि बीजेपी के राष्ट्रवाद के खिलाफ क्या विपक्ष आरक्षण के मुद्दे को सियासी हथियार के तौर इस्तेमाल करेगा.